कंकाल / चतुर्थ खंड / भाग 4 / जयशंकर प्रसाद

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कृष्णशरण की टेकरी ब्रज-भर में कुतूहल और सनसनी का केन्द्र बन रही थी। निरंजन के सहयोग से उसमें नवजीवन का संचार होने लगा, कुछ ही दिनों से सरला और लतिका भी उस विश्राम-भवन में आ गयी थीं। लतिका बड़े चाव से वहाँ उपदेश सुनती। सरला तो एक प्रधान महिला कार्यकर्त्री थी। उसके हृदय में नयी स्फूर्ति थी और शरीर में नये साहस का साहस का संचार था। संघ में बड़ी सजीवता आ चली। इधर यमुना के अभियोग में भी हृदय प्रधान भाग ले रहा था, इसलिए बड़ी चहल-पहल रहती।

एक दिन वृन्दावन की गलियों में सब जगह बड़े-बड़े विज्ञापन चिपक रहे थे। उन्हें लोग भय और आश्चर्य से पढ़ने लगे-

भारत संघ

हिन्दू-धर्म का सर्वसाधारण के लिए

खुला हुआ द्वार

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों से

(जो किसी विशेष कुल में जन्म लेने के कारण संसार में सबसे अलग रहकर, निस्सार महत्ता में फँसे हैं)

भिन्न एक नवीन हिन्दू जाति का

संगठन कराने वाला सुदृढ़ केन्द्र

जिसका आदर्श प्राचीन है-

राम, कृष्ण, बुद्ध की आर्य संस्कृति का प्रचारक

वही

भारत संघ

सबको आमंत्रित करता है।

दूसरे दिन नया विज्ञापन लगा-

भारत संघ

वर्तमान कष्ट के दिनों में

श्रेणीवाद

धार्मिक पवित्रतावाद,

आभिजात्यवाद, इत्यादि अनेक रूपों में

फैले हुए सब देशों के भिन्न प्रकारों के जातिवाद की

अत्यन्त उपेक्षा करता है।

श्रीराम ने शबरी का आतिथ्य ग्रहण किया था,

बुद्धदेव ने वेश्या के निमंत्रण की रक्षा की थी;

इन घटनाओं का स्मरण करता हुआ

भारत-संघ मानवता के नाम पर

सबको गले से लगाता है!

राम, कृष्ण, और बुद्ध महापुरुष थे

इन लोगों ने सत्साहस का पुरस्कार पाया था

'कष्ट, तीव्र उपेक्षा और तिरस्कार!'

भारत संघ भी

आप लोगों की ठोकरों की धूल

सिर से लगावेगा।

वृदावन उत्तेजना की उँगलियों पर नाचने लगा। विरोध में और पक्ष में-देवमन्दिरों, कुंजों, गलियों और घाटों पर बातें होने लगीं।

तीसरे दिन फिर विज्ञापन लगा-

मनुष्य अपनी सुविधा के लिए

अपने और ईश्वर के सम्बन्ध को

धर्म

अपने और अन्य ईश्वर के सम्बन्ध को

नीति

और रोटी-बेटी के सम्बन्ध को

समाज

कहने लगता है, कम-से-कम

इसी अर्थ में इन शब्दों का व्यवहार करता है।

धर्म और नीति में शिथिल

हिन्दुओं का समाज-शासन

कठोर हो चला है!

क्योंकि, दुर्बल स्त्रियों पर ही शक्ति का उपयोग करने की

उसके पास क्षमता बच रही है-

और यह अत्याचार प्रत्येक काल और देश के

मनुष्यों ने किया है;

स्त्रियों की

निसर्ग-कोमल प्रकृति और उसकी रचना

इसका कारण है।

भारत संघ

ऋषि-वाणी को दोहराता है

'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता'

कहता है-स्त्रियों का सम्मान करो!

वृदावन में एक भयानक हलचल मच गयी। सब लोग आजकल भारत संघ और यमुना के अभियोग की चर्चा में संलग्न हैं। भोजन करके पहल की आधी छोड़ी हुई बात फिर आरम्भ हो जाती है-वही भारत-संघ और यमुना!

मन्दिर के किसी-किसी मुखिया को शास्त्रार्थ की सूझी। भीतर-भीतर आयोजन होने लगा। पर अभी खुलकर कोई प्रस्ताव नहीं आया था। उधर यमुना के अभियोग के लिए सहायतार्थ चन्दा भी आने लगा। वह दूसरी ओर की प्रतिक्रिया थी।