कंगना की पगडंडी, करण का राजपथ / जयप्रकाश चौकसे

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कंगना की पगडंडी, करण का राजपथ
प्रकाशन तिथि :25 अप्रैल 2017


कंगना रनौट और करण जौहर एक-दूसरे को सख्त नापसंद करते हैं,जबकि उनके निजी हित एक-दूसरे से कतई नहीं टकराते हैं। करण जौहर के सिनेमाई जलसाघर में कंगना रनौट के लिए कोई स्थान नहीं है और कंगना रनौट के सोच-विचार के आईने में करण जौहर किसी अदृश्य बिंब की तरह कभी आ नहीं सकते। दोनों भिन्न परिवारों और क्षेत्रों से आए हुए लोग हैं। करण जौहर के पिता यश जौहर स्थापित निर्माता थे और पोशाक निर्यात का उनका जमा-जमाया कारोबार भी था। कंगना पहाड़ की पृष्ठभूमि से आई हैं और मंुंबई में अपने संघर्ष के दिनों में फुटपाथ पर सोई हैं। फुटपाथ से 'क्वीन' होने तक का सफर उन्होंने अपनी प्रतिभा और साहस के सहारे तय किया है। वह पहाड़ी नदी की तरह कूल-किनारे तोड़कर बहती रही है और करण घर के बाथटब में थमे सुगंधित पानी की तरह है। करण जौहर हिंदुस्तानी फिल्म की पटकथा लंदन में रहकर लिखते हैं और कंगना 'सिमरन' अभिनीत करने के लिए न्यूयॉर्क जाती हैं।

कंगना रनौट और करण जौहर के पास एक-दूसरे को नापसंद करने के कोई कारण नहीं हैं। अकारण उदासी की तरह अकारण हिकारत भी पैदा हो सकती है। अब सोनू निगम के घर के पांच किलोमीटर के दायरे में कोई मस्जिद नहीं है परंतुु अपने वातानुकूलित शयनकक्ष में भी जाने कैसे अजान की आवाजें उन्हें परेशान करती हैं और मस्जिद के पास बने घर में कंगना को अजान में माधुर्य सुनाई पड़ता है। किसी और संदर्भ में जां पॉल सार्त्र ने 'एज ऑफ रीज़न' (तर्क का कालखंड) लिखी थी और आज हम तर्कहीनता के कालखंड में रह रहे हैं।

राकेश रोशन की 'कृष' शृंखला में कंगना रनौट खलनायक की रची रोबो है, जो विविध रूप धारण करके नायक को अपने मायाजाल में फंसाने के उद्‌देश्य से आती है परंतु स्वयं उससे प्रेम करने लगती हैं जैसे कोई शिकारी ही शिकार हो जाए। कंगना रनौट ताउम्र स्वयं से युद्धरत रहने वाली हैं, क्योंकि वह परिभाषाओं और सीमाओं को स्वीकार नहीं करतीं। अनुराग बसु की 'गैंगस्टर' एक बार बाला और एक अपराधी की प्रेम कथा थी, जिसमें गोलियों से छलनी प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए मांग का सिंदूर लाया है। लैला-मजनूं, शीरीं-फरहाद और रोमियो-जुलियट की दुखांत प्रेमकथा की तरह थी यह फिल्म।

'दुल्हनिया' के निर्माण के समय करण जौहर आदित्य चोपड़ा के सहायक निर्देशक रहे और उनके मृदुल व्यवहार के कारण शाहरुख खान और काजोल ने उनके पहले निर्देशकीय प्रयास में सहयोग का वचन दिया, जिसके परिणामस्वरूप 'कुछ कुछ होता है' बनी। इस फिल्म में एक हिंदू परिवार में जन्मी कन्या, एक जानकारी प्राप्त करने के लिए मुस्लिम बनकर एक मुस्लिम परिवार में प्रवेश करती है और नमाज़ भी अदा करती है। इस तरह फिल्मकार ने एक अबोध पात्र से उसकी मासूमियत छीन ली। यह विचार एवं विश्वास नहीं वरन सहूलियत का सिनेमा है। यह घर से मीलों दूर बनी मस्जिद की अजान से नींद में खलल की तरह की बात है। करण जौहर ने ऋषिकेश मुुखर्जी की 'आनंद' के विचार पर एक फूहड़ पैरोडीनुमा फिल्म भी बनाई थी। पैरोडी करना स्थायी विचार की तरह मस्तिष्क में जम जाए तो आप विक्रम सेठ की 'सूटेबल बॉय' की पैरोडी पर अपनी आत्मकथा का नाम 'अनसूटेबल बॉय' रख सकते हैं। जीवन के एक दौर में करण जौहर ने अपनी संपत्ति अपने अभिन्न मित्र एवं सखा शाहरुख खान की संतानों के नाम करने की बात की थी परंतु अब सरोगेसी द्वारा प्राप्त संतान के वे पिता है अत: विचार बदलना पड़ सकता है। 'सरोगेसी' के किराये की कोख आकल्पन पर शबाना आजमी एवं विक्टर बनर्जी अभिनीत फिल्म दशकों पूर्व बनी थी। किराये पर कोख देना मजबूरी हो सकती है परंतु कोखजाये से प्रेम तो स्वाभाविक है। सलमान खान, प्रीति जिंटा और रानी मुखर्जी अभिनीत एक फिल्म भी इस विचार से ही प्रेरित थी। निदा फाज़ली की एक रचना का भाव इस तरह है, 'बेसन की सोंधी रोटी पर खट्‌टी चटनी जैसी मां/ याद आती है चौका बासन, चिमटा फूंकनी जैसी मां/ बीवी, बेटी, बहिन, पड़ोसन थोड़ी थोड़ी सी सबमें मां/ बांट के अपना चेहरा, माथा, फटे पुराने एक एलबम में चंचल चंचल लड़की जैसी मां।'