कंगना खनके, मनाली महके / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 09 जुलाई 2018
कंगना रनौत 'मेंटल है क्या?' की शूटिंग लंदन में पूरी करने के बाद कुछ दिन मनाली में बने अपने बंगले में अपने परिवार के साथ बिताना चाहती हैं। वे इस बंगले में केवल ग्रह प्रवेश के पूजा-पाठ एवं हवन के लिए ही गई थीं। अपने घर के सपने की तरह बनाया यह बंगला उन्हें बेहद पसंद है। वर्षों पूर्व अपने परिजनों की इच्छा के विरुद्ध विद्रोह करके कंगना अभिनय के लिए मुंबई आई थीं, जहां संघर्ष के दिनों में उन्हें फुटपाथ पर भी सोना पड़ा। फुटपाथ पर सोने वाले लोग प्राय: अपने मकान के सपने देखते हैं।
अनगिनत लोगों में किसी एक का सपना साकार होता है। सपने बेचने वाले नेता जरूर सत्तासीन होकर मनमानी करते हैं। रोटी, कपड़ा, मकान साधनहीन लोगों के स्थायी सपने हैं, जिनकी खातिर वे मर-मरकर जीवित बने रहते हैं। कुछ सपने अांसुओं के साथ बह जाते हैं। संसार की सारी प्रगति अर्थहीन-सी लगती है, जब हम साधनहीन व्यक्ति की खस्ता हालत देखते हैं। अंतरिक्ष के रहस्य को खोजा जा रहा है परंतु धरती के दर्द को हम महसूस नहीं करते। दूरबीन से दूर की चीजें नज़दीक से नज़र आती है। दूरबीन के दूसरे सिरे से कभी जीवन को देखने का प्रयास करें तो अन्याय और समानता आधारित व्यवस्था की सड़ांध महसूस करते हुए दिल चाहता है कि गुरुदत्त से सुर मिलाकर हम गाएं, 'ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।'
कंगना रनौत को आनंद एल राय की तनु वेड्स मनु से सितारा हैसियत मिली, जिसे उन्होंने अपनी फिल्म 'क्वीन' द्वारा पुख्ता किया। अब आनंद एल राय ऐसा ही कुछ करिश्मा अपने करियर की ढलान पर तेजी से लुढ़क रहे शाहरुख खान के लिए फिल्म 'जीरो' द्वारा करने का प्रयास कर रहे हैं। कंगना रनौत और आनंद एल राय के संबंध अब पहले जैसे नहीं रहे। सफलता मनुष्य को बड़बोला बनाती है और कोई छोटा-सा वाक्य रिश्ते की दीवार में दरार पैदा कर देता है। दरारों में कीड़े पड़ने लगते हैं। कंगना ने अपने मेंटर आनंद एल राय को आहत किया है और अपनी भूल का अहसास होते ही वे उनसे क्षमा याचना कर चुकी हैं परंतु घाव भर जाने पर भी बदनुमा दाग बन जाते हैं। कंगना की रानी लक्ष्मीबाई की शूटिंग पूरे हुए कई महीने हो गए हैं। प्रदर्शन का दिन पहले 15 अगस्त तय किया गया था किंतु छुटि्टयों से भरे इस महीने में अनेक फिल्मों के प्रदर्शन की तैयारी की जा रही है। सारे फिल्मकार तीज त्यौहार और छुट्ट्यिों वाले सप्ताह में प्रदर्शन करना चाहते हैं। जीवन ही सप्ताहांत छुट्टियों में सिमट गया है। कार्यक्षेत्र की चक्की मनुष्य को बड़ा महीन पीसती है। कुछ देशों में तो व्यक्ति की अंतिम यात्रा भी सप्ताहांत तक के लिए स्थगित रखी जाती है। शव को जस का तस बनाए रखने के लिए विशेष वातानुकूलित कमरे में रखा जाता है। अमीर व्यक्ति का शव जितने जतन से रखा जाता है उसका न्यूनतम भी आवाम को जीवित बनाए रखने के लिए नहीं किया जाता। सनकी व्यक्ति को बोलचाल की भाषा में मेंटल कहवी जाने कब प्रारंभ हुआ। यह चलन संभवत: सलमान खान अभिनीत 'तेरे नाम' एवं 'क्योंकि' से प्रारंभ हुआ। फिल्म तेरे नाम में अपने केमिकल लोचा से पूरी तरह मुक्त होने के बाद भी नायक महसूस करता है कि समझदारों की दुनिया में उसके लिए कोई स्थान नहीं है तो पगला जाने का अभिनय करके पुन: पागलखाने चला जाता है। फिल्मकार रमेश तलवार की फिल्म बसेरा में शशि कपूर की पत्नी राखी को पागलखाने भेजा जाता है। राखी की बहन रेखा बच्चों की परवरिश की खातिर उनके घर रहने लगती हैं। समय बीतने पर शशि कपूर और रेखा में प्रेम हो जाता है और वे विवाह कर लेते हैं। कुछ समय बाद राखी पूरी तरह से ठीक होकर घर आती है, तो उसे लगता है कि उसके लौटने से एक सुखद व्यवस्था भंग होने जा रही है तो वह पागलपन का स्वांग करके उस व्यवस्था से दूर चली जाती है। गुलजार की फिल्म खामोशी में नर्स वहीदा अपने प्रेममय व्यवहार से पागल मरीजों को ठीक करती है। मरीज ठीक होने पर उस प्रेम को भूल जाते। इस प्रक्रिया से बार-बार गुजरने के बाद स्वयं नर्स वहीदा अपना दिमागी संतुलन खो देती है। कमल हासन श्रीदेवी अभिनीत सदमा भी इसी तरह की फिल्म थी। इसी तरह के हालात देखकर निदा फ़ाज़ली ने लिखा था 'या मौला सोच समझ वालों को थोड़ी सी नादानी दे, नन्हें बच्चों को थोड़ी-सी गुड़धानी दे।' इन दिनों आत्महत्या के अनेक प्रसंग प्रकाश में आ रहे हैं। हर आत्महत्या समानता व न्याय आधारित व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाती है। भाषा में प्रश्न चिह्न की बनावट पर गौर करें कि वह कितना टेढ़ा-मेढ़ा है। कोलन, सेमीकोलन और फुलस्टॉप से कितना जुदा है प्रश्न चिह्न। अपनी फिल्म 'मेंटल है क्या?' में कंगना रनौत अभिनय का नया शिखर छू सकती हैं, क्योंकि वह खुद तथाकथित सामान्य लोगों से बेहद जुदा है कलाकारों में लाल पान की बेगम ने हमेशा काले पाने के इक्के को काले पान का इक्का ही कहा।