कंगना रनोट के लिए पैरिस क्या है? / जयप्रकाश चौकसे

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कंगना रनोट के लिए पैरिस क्या है?
प्रकाशन तिथि : 30 सितम्बर 2014


कंगना रनोट आैर उनकी 'रिवॉल्वर रानी' के लेखक-निर्देशक साई कबीर की 'डिवाइन लवर्स' की शूटिंग पैरिस में होगी आैर यह फिल्म फ्रांस के सहयोग से बन रही है। ज्ञातव्य है कि केतन मेहता आैर दीपा शाही की 'माया मेमसाब' जो फ्रेंच उपन्यास 'मैडम बॉवरी' से प्रेरित थी भी फ्रांस के सहयोग से बनी थी। दरअसल आजादी के पहले भारतीय इंग्लैंड जाते थे आैर वहां की जीवन शैली आदर्श लगती थी जिसके कारण छद्म विक्टोरियन 'शर्म-हया' ने भारतीय उदात संस्कृति की व्याख्या बदल दी आैर आजादी के बाद देश अमेरिका आैर हॉलीवुड के मोहजाल में उलझ गया तथा उनकी जीवन शैली 'आदर्श' मान ली गई जबकि फ्रांस की संस्कृति आैर जीवन शैली हमारे ज्यादा निकट है। बहरहाल हम 'बाहर' ताकते-ताकते, भीतर झांकना ही भूल गए। कंगना रनोट की 'क्वीन' की शूटिंग पैरिस में हुई थी आैर उनके अभिनय ने सबको अचंभित कर दिया। 'क्वीन' ने केवल कंगना रनोट को सफलता दिलाई वरन् कंगना रनोट को खुद के भीतर झांकने का अवसर दिया। इसी फिल्म के बाद उसने पटकथा लेखन की शिक्षा ली आैर भविष्य में फिल्म निर्देशन का निर्णय लिया। पैरिस की यात्रा उसके लिए 'अलकेमिस्ट' की यात्रा की तरह रही। प्रीति जिंटा भी 'लव इन पैरिस' बना चुकी हैं परंतु फिल्म असफल रही।

राज कपूर ने 1962 में 'संगम' के लिए कुछ दिनों पैरिस में शूटिंग की थी आैर एफिल टॉवर को बखूबी प्रदर्शित किया था। टॉवर पर चढ़कर 'टॉप ऑफ वर्ल्ड' की भावना उनके हृदय में इस तरह समाई कि 'जोकर' में अपना सब कुछ झोंक दिया। पैरिस की यात्रा में कुछ अनोखा घटता है। शहर के पुराने ऐतिहासिक क्षेत्र में आप किसी तरह का वाहन नहीं ले जा सकते, वहां सब पैदल ही चलना होता है। अपनी ऐतिहासिक इमारतों को प्रदूषण से बचाने के लिए यह किया गया है। पैरिस में कार पार्क से अधिक जगह साइकिल रखने के लिए है क्योंकि वहां का आवाम उसी से सफर करना पसंद करता है।

पैरिस के ही एक होटल के इंडिया सलून नामक कक्ष में लुमिएर बंधुआें ने सिनेमा का पहला प्रदर्शन किया था। उन्हाेंने 'इंडिया सलून' को शायद यूं ही चुन लिया परंतु सिनेमा की कुंडली में इंडिया ऐसे विराजा की आज अधिकतम फिल्में भारत में ही बनती हैं आैर इस विद्या के सबसे अधिक दर्शक भी भारतीय ही हैं। इस विद्या के अाविष्कार के उस महान दिन दर्शक दीर्घा में कोई भारतीय मौजूद नहीं था। जादूगर जॉर्ज मेलिए मौजूद था आैर उसका विश्वास था कि सिनेमा विद्या फंतासी फिल्में रचने की विद्या है जबकि लुमिएर बंधुआें का यकीन था कि यह यथार्थ दिखाने के लिए। बहरहाल जॉर्ज मेलिए ने 47 फंतासी फिल्में रचीं आैर उनकी 'जर्नी टु मून' पहली विज्ञान फंतासी है। उन्होंने अपने जादू के तमाशों में भी इस विद्या का उपयोग किया। भारत की मौलिकता यह रही कि हम यथार्थ को भी फंतासी के चश्में से देखते आैर दिखाते हैं तथा फंतासी में यथार्थ खोजने का प्रयास करते हैं।

बहरहाल साई कबीर की 'डिवाइन लवर्स' के प्रति जिज्ञासा स्वाभाविक है। इसका नाम कुछ जगमोहन मूंदड़ा नुमा फिल्म का आभास देता है परंतु साई कबीर अच्छे फिल्मकार हैं आैर किसी सनसनी मात्र फैलाने वाली फिल्म की रचना वे नहीं करेंगे।

प्रेम तो आध्यात्मिकता लिए ही होता है, शरीर के माध्यम के बावजूद उसका वह दिव्य भाव समाप्त नहीं होता आैर शरीर की संकुचित परिभाषा ने भी भ्रांतियां फैलाई हैं, अगर उसमें आत्मा, परमात्मा का वास है तो वह अपवित्र कैसे हो सकता है। अपरिभाष्य प्रेम ही मनुष्य की असीमित शक्तियों को उजागर करता है। हृदय की प्रयोगशाला में प्रेम रासायनिक प्रक्रिया का कैटेलैटिक एजेंट है। दरअसल प्रेम के खिलाफ बहुत से संगठन हैं आैर उन्हें सचमुच प्रेम से परहेज नहीं है परंतु वे जानते हैं कि प्रेम के प्रकाश से मनुष्य का जीवन उजियारा हो जाता है आैर उसे ठगे जाना कठिन हो जाता है क्योंकि प्रेम स्वतंत्र विचार शैली का मार्ग प्रशस्त करता है।

नसीरुद्दीन शाह ने कविता से प्रवाह वाला विशुद्ध अंग्रेजी ग्रंथ रचा है आैर सही अंग्रेजी बांचने के मोह के लिए भी दोबारा पढ़ी जा सकती है। यह किताब मानवीय कमजोरियों का एपिक है आैर 'लार्जर देन लाइफ' पात्रों के अभ्यस्त देखें कि हकीकत कितनी भव्य हो सकती है।