कंगना रनोट : सेक्सी नानी? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :08 जून 2017
कंगना रनोट अपनी नानी के जीवन से प्रेरित फिल्म बनाना चाहती हंै, जिसमें वे स्वयं अपनी नानी की भूमिका अभिनीत करेंगी और उनकी भूमिका कोई पांच वर्षीय लड़की करेगी, क्योंकि वे अपनी नानी की उन्हीं यादों से प्रेरित हैं, जब वे स्वयं पांच वर्ष की थीं। सिनेमा संसार में यह घटना अपने ढंग की निराली बात होगी। कंगना रनाेट अनपेक्षित करने में प्रवीण रही हैं। उनकी हंसल मेहता द्वारा निर्देशित 'सिमरन' के बॉक्स ऑफिस परिणाम पर बहुत कुछ निर्भर करता है, क्योंकि विशाल भारद्वाज की 'रंगून' की असफलता से कंगना की सितारा हैसियत पर बहुत प्रभाव पड़ा है। इसके साथ ही ऋतिक रोशन के साथ हुआ उनका विवाद भी सुर्खियों में रहा है।
ऋषि कपूर ने पड़दादा की भूमिका के लिए मेकअप का सहारा लिया, जिसके लिए करण जौहर ने अमेरिका से विशेषज्ञों को आमंत्रित किया था। दर्शक के लिए ऋषि कपूर को पहचान पाना कठिन था। उस मेकअप के लिए चार घंटे का समय लगता था और मेकअप के बाद उन्हें भोजन नहीं करने की हिदायत थी। केवल स्ट्रॉ द्वारा वे जूस पी सकते थे। अब यह कल्पना करना तो कठिन है कि क्या दर्शक नानी की भूमिका में कंगना को ही नहीं पहचान पाएंगे और ऐसे में क्या वे फिल्म देखना पसंद करेंगे? दुर्गा खोटे, लीला चिटणिस, निरुपा राय, रीमा लागू, कामिनी कौशल इत्यादि कभी नायिकाएं रहीं, वे मां, दादी व नानी की भूमिकाएं कर चुकी हैं। तनूजा ने 'सन ऑफ सरदार' में अजय देवगन की दादी की भूमिका अभिनीत की थी, जबकि उनकी सुपुत्री काजोल अजय देवगन को ब्याही हैं। दादी और नानी से बचपन में हम सबने कहानियां सुनी हैं। मजे की बात यह है कि वे कहानियां दोहराती थीं और हम सबको लगता था कि कहानियां नई हैं।
कथा कहते समय दादी-नानी के चेहरे पर एक चमक आ जाती थी और शायद वही हमें बहुत अच्छी लगती थी। उनकी जिद थी कि हम सुनते हुए हुंकारा भरें ताकि वे जान सकें कि हम सोए हैं या जागे हुए हैं। तर्कहीनता का उत्सव मनाने वाली 'बाहुबली' भी शायद इसीलिए पसंद की गई कि वह दादी और नानी की कहानी की तरह पुरानी है। दादी-नानी के चेहरों की झुर्रियों में भी एक इतिहास दर्ज होता है। उम्रदराज लोगों को बचपन की यादें मौत के खौफ से मुक्त कराती होंगी। कभी-कभी किसी सुहानी याद से उनके चेहरे पर लुनाई आ जाती है और किसी याद से वे लजा भी जाती हैं। जवानी में किया गया इश्क, भले ही वह एकतरफा रहा हो, भुलाए नहीं भूलता। इस बात को एकता कपूर से क्षमा याचना सहित कह सकते हैं कि 'सास भी कभी बहू थी' गोयाकि दादी-नानी कभी युवा रही हैं और उन्होंने भी प्रेम किया है। यूरोप की एक फिल्म में उम्रदराज पत्नी अपने बूढ़े पति को उस दिन बेहरमी से पीटती है, जिस दिन वह अपनी युवा अवस्था की प्रेमिका की तस्वीर को चोरी छुपे निहारता है। यह डाह, यह तथाकथित 'सौतन' के प्रति आक्रोश अपने भीतर पैठे अतृप्त प्रेम के सुषुप्त ज्वालामुखी के आग उगलने की तरह है। यह एक विज्ञान सम्मत तथ्य है कि फूटे ज्वालामुखी से निकला लावा जम जाता है अौर कालांतर में इसे खाद के रूप में खेत में डालने पर फसल अच्छी होती है। इसी तरह पुराने प्रेम के उजागर होने पर पत्नी जमकर पिटाई करती है परंतु बाद में प्रखर गति से प्रेम होता है, जिसे लावे के खादस्वरूप ही मानना चाहिए।
सारे प्रेम संबंध कमोबेश गुरिल्ला युद्ध की तरह होते हैं, जिसमें एक-दूसरे पर आक्रमण करके अपने अवचेतन की पहाड़ियों में छिपा जाता है। बचपन में खेला छिपाछाई का खेल एक किस्म का प्रशिक्षण है। खोजने वाला जानता है कि दूसरा खिलाड़ी कहां छिपा है परंतु वह खोजने का प्रहसन करता है। यही खेलने का तरीका है और यही उसका अलिखित नियम भी है। कुछ इसी शैली में सत्तासीन सरकार अौर विपक्ष भी 'राजनीति राजनीति' खेलते रहते हैं। बहरहाल, कंगना रनौट प्रस्तावित नानी फिल्म में वृद्धा दिखते हुए भी कंगना ही बनी रहना चाहेंगी ताकि दर्शक उन्हें खोजते ही नहीं रह जाएं। सच्चाई तो यह है कि कुछ उम्रदराज लोग अपने 'जादू' को बनाए रखते हैं। उम्र का शेर उन पर गहरी चोट देने वाला पंजा नहीं मारता। वह उनके लिए सर्कस के शेर की तरह होता है। जंगल के शेर का पंजा घातक होता है। वह अपनी चोट की गहराई नहीं अपितु अपने नाखूनों में जमा मैल की जगह से मनुष्य को मारता है। जानवर पैडीक्योर अर्थात हाथ-पैर की सफाई नहीं कराते र उनमें संचित मैल में ही मारक इन्फेक्शन होता है। पैडीक्योर शहरी शिगूफा है और इसके विशेषज्ञ होते हैं। लोग डेटॉल डले गरम पानी में पैर भिगोए रखते हैं और नाखून के पर्याप्त नरम होने पर काटे जाते हैं। इसके बाद क्रीम से मालिश की जाती है।
बहरहाल, नानी अभिनीत करते हुए भी कंगना रनौट 'तनु' (फिल्म तनु वेड्स मनु) ही बनी रहेंगी। नानी के गेटअप में कंगना अधिक कातिलाना लग सकती हैं। शायद इसीलिए पत्नी के चुनाव के समय उसकी मां को देखना चाहिए। यह समझने के लिए 'जब हम होंगे साठ साल के और तुम होगी पचपन की, बोलो प्रीत निभाओगी क्या तब भी अपने बचपन की।' यह रणधीर कपूर की 'कल आज और कल' का गीत है।