कंगना रानाउत: गुडिय़ा या गन ! / जयप्रकाश चौकसे

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कंगना रानाउत: गुडिय़ा या गन !
प्रकाशन तिथि : 09 जुलाई 2013


कंगना रानाउत मनाली में एक मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुईं और बचपन में जब उनके पिता उनके भाई के लिए प्लास्टिक की गन और उनके लिए गुडिय़ा खेलने के लिए लाते तो वे अपने पिता से इस भेदभाव के लिए लड़ती थीं। बेटों को हथियार और बेटी को सिर पर लटकती तलवार मानने वाले समाज में गुडिय़ा फेंकने वाली बच्ची को अजीब मानते हैं। समाज में सर्वत्र व्याप्त हिंसा की गंगोत्री क्या बचपन से बंदूक और पिस्तौलनुमा खिलौनों में निहित है? मामला इस साधारणीकरण से कहीं अधिक गहरा है।

बहरहाल, आजकल कंगना रानाउत 'रिवॉल्वर रानी' नामक फिल्म कर रही हैं और 'क्वीन' नामक फिल्म के कुछ हिस्से देखकर रणबीर कपूर अैर अनुष्का शर्मा ने उनकी प्रशंसा की तथा अनुष्का शर्मा ने कहा कि शराबी का दृश्य उन्होंने उसी विश्वसनीयता से किया है जैसा मीना कुमारी ने 'साहब बीवी और गुलाम' में किया था। बेचारी मीना कुमारी गुडिय़ा से खेलने की उम्र में घर में चूल्हा जले इसलिए बाल कलाकार की भूमिकाएं करती थीं और ताउम्र खोए हुए बचपन की तलाश में भटकती हुई स्वयं गुडिय़ा बनकर रह गईं। वह चौथे और पांचवें दशक की बात थी। 21वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में मनाली की 16 वर्षीय कन्या, जो हमेशा अपने पिता से लड़ती रहती थी, दिल्ली में मॉडलिंग करते हुए मुंबई पहुंची और महेश भट्ट ने उसे अनुराग बसु के निर्देशन में बनने वाली 'गैंगस्टर' में नायिका के लिए चुन लिया। यद्यपि उसकी कमसिन उम्र नायिका की भूमिका के लिए कम थी, परंतु अनुराग बसु को यकीन था कि वह उस कठिन भूमिका का निर्वाह कर लेगी। बसु की 'बर्फी' कमाल की फिल्म थी, परंतु 'गैंगस्टर' जैसी प्रेम कहानी को उनका अब तक का श्रेष्ठ काम माना जा सकता है। दरअसल, उस प्रेम कहानी का टाइटिल 'गैंगस्टर' होने की वजह से कई लोगों की धारणा गलत बन गई। वह तो ऐसी अद्भुत ट्रैजिक लव स्टोरी थी, जिसका नायक पेशेवर अपराधी है और नायिका बार गर्ल है और वर्षों साथ रहकर भी वे एक-दूसरे के शरीर को स्पर्श नहीं करते और जब किसी के बहकावे में आकर नायिका नायक को अनजाने में ही पुलिस के चंगुल में फंसा देती है तो गोली से घायल नायक उसे सिंदूर की डिबिया देता है और उसी क्षण उसे सच्चे प्रेम का आभास होता है। यह एक विलक्षण फिल्म थी और कंगना रानाउत ने कमाल का अभिनय किया था।

बहरहाल, परदे के परे कंगना का रहन-सहन और साफगोई ऐसी थी कि उन्हें बड़े फिल्मकारों ने किसी युवा नायक के साथ कोई प्रेम कहानी नहीं दी। अनुराग बसु ने ही अपनी 'काइट्स' में उन्हें समानांतर भूमिका दी और फिल्म के दरमियान ऋतिक रोशन से उनकी अच्छी दोस्ती हो गई। आज भी वह ऋतिक से नियमित रूप से बातचीत करती हैं और उन्हें अपना सच्चा दोस्त भी मानती हैं। यह इत्तफाक की बात है कि सोमवार को ही ऋतिक रोशन का ऑपरेशन हिंदुजा अस्पताल में हुआ है। विगत कई दिनों से उन्हें सिरदर्द की शिकायत है और जांच से ब्लडक्लॉट की बात मालूम हुई। कॉलम लिखे जाने तक ऑपरेशन के सफल होने की बात सामने आई है। कंगना रानाउत कुछ दिन पूर्व पेरिस में थीं, जहां से वे एक कुकिंग कोर्स करके आई हैं और भविष्य में दक्षिण अफ्रीका में पहाड़ों पर ट्रेकिंग करने की तैयारी कर रही हैं। यह शौक सफल सिने सितारों के नहीं हैं वरन् क स्वतंत्र सोच वाली तथा अनसोचा करने का साहस रखने वाली स्त्री का है। वह मनमौजी हैं और इस मामले में वे अपने दूसरे मित्र सलमान खान की तरह हैं। टेलीविजन शो 'दस का दम' में वे आई थीं और उन्होंने अपनी बिंदास साफगोई से सलमान का दिल जीत लिया। वह एक तरह से सलमान खान का फीमेल स्वरूप हैं।

कुछ दिन पूर्व राकेश रोशन की 'कृश-3' के कुछ हिस्से देखे। उसमें कंगना ने कमाल किया है तथा जॉर्डन में फिल्माए एक गाने में वे अत्यंत सुंदर व अरमान जगाने वाली लगती हैं। वह 'उंगली', 'आई लव न्यू ईयर', 'रज्जो' और 'रिवॉल्वर रानी' में अभिनय कर रही हैं। दरअसल, आनंद राय की 'तनु वेड्स मनु' में उनके बिंदास अभिनय को पसंद किया गया। इस फिल्म की अगली कड़ी भी बनने जा रही है। यह सही है कि अभी तक उन्हें 'कृश-3' छोड़कर कोई बड़ी फिल्म नहीं मिली है और उन्होंने शिखर सितारों के साथ भी काम नहीं किया है। इस तरह की सफलता के लिए बहुत दुनियादार और मिलनसार होना पड़ता है, परंतु मनाली के पहाड़ों के बीच पली यह लड़की महानगरीय तौर-तरीके नहीं जानती और माया नगरी में सात वर्ष बिताने के बाद भी उनके तौर-तरीकों से अनजान है। कई निर्माता उनके मूडी होने के कारण भी हिचकते हैं। ज्ञातव्य है कि अपने प्रारंभिक दौर में रेखा भी ऐसी ही थीं और उनका कायाकल्प अमिताभ बच्चन से मित्रता के बाद हुआ है। अमिताभ बच्चन के अपने अभिनय कीर्तिमान के अतिरिक्त उन्हें इसका भी श्रेय जाता है कि उन्होंने अल्हड़, फक्कड़ रेखा को उमराव जान अदा बना दिया। अब कंगना के लिए दूसरा अमिताभ कहां से लाएं, परंतु सच तो यह है कि कंगना शायद ही कभी बदलें। बचपन में अपने पिता से गुडिय़ा के बदले गन के लिए लडऩे वाली कंगना रानाउत इतने स्वतंत्र विचार की हैं कि उनका बदलना नामुमकिन है और फिर वह बदले क्यों? पहाड़ बदल जाएं तो वे पहाड़ नहीं कहलाते।

'तनु वेड्स मनु' के एक गीत की एक पंक्ति है कि 'खाकर अफीम रंगरेज पूछे यह रंग का कारोबार क्या है'। कंगना अफीम नहीं चखतीं, परंतु कारोबार भी नहीं जानतीं। कहीं कोई स्वाभाविक है यह जानकार अच्छा लगता है।