कंधे पर लाश / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'

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विक्रमादित्य ने पेड़ से शव को उतारा, उसे कंधे पर लादा और अपनी राह पकड़ ली। तभी शव में स्थित बेताल ने अट्टहास किया और विक्रमादित्य को कहानी सुनाने लगा

"सुनो विक्रम! यह घटना अगस्त 2016 की है। ओडिशा के कालाहांडी के एक सरकारी अस्पताल की। दाना माँझी नाम के तृणमूल स्तर के एक व्यक्ति की पत्नी का देहांत हो गया। अस्पताल ने उसका शव ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं दी तो उसने उसे कपड़े से लपेटा और कंधे पर लादकर चल दिया। पीछे-पीछे उसकी बारह बरस की बेटी भी थी। रो-रोकर उस बच्ची की आँखें सूज गई थीं और लोग...? लोग तो 'कंधे पर लाश' का वह दृश्य किसी तमाशे की तरह आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे विक्रमादित्य!"

विक्रमादित्य चुप थे। कंधे पर लाश को लेकर वे सरपट चले जा रहे थे।

तभी एक अस्पताल-कर्मी ने आगाह किया, "दाना, तुम्हारी पत्नी को टी.बी. की बीमारी थी। टी. बी. छूत की बीमारी...!"

"सबसे बड़ी छूत की बीमारी तो गरीब होना, गरीबी में भी नीच जात और नीच जात में भी आदिवासी होना है बाबू।" कहते हुए दाना अस्पताल से बाहर हो गया।

बाहर एक पत्रकार ने उसका रास्ता रोका और बोला, "भैया, एक फोटो।"

अब दाना का गला भर्रा गया। भर्राई आवाज में बोला, "कणऽ भाई? अपणकरऽ पत्नीरऽ शबऽ काँधरे बसाईनेलऽ कोणसी आदिवासीरऽ एकणऽ प्रथमऽ फोटो हेबऽ की? (क्यों भाई, अपनी पत्नी का शव कंधे पर लिये किसी आदिवासी का यह पहला फोटा होगा क्या?)"

कहते-कहते उसकी आँखों से आँसू झरने लगे। एक हाथ से आँसू पोंछते हुए वह आगे बढ़ चला। उसे 60 कि।मी। लंबी दूरी तय करनी थी।

"अब बोलो, विक्रम! अपनी पत्नी की लाश कंधे पर लिये किसी आदिवासी का यह पहला फोटो था क्या?"

"नहीं।"

विक्रमादित्य ने मुँह खोला और उसके मुँह खुलते ही वह लाश फुर्र हो गई।