कई गायक व कोरस आज कहीं लापता हैं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 18 फरवरी 2021
न्यायालय से फैसला आया है कि फिल्म संगीत की बिक्री और किसी भी माध्यम द्वारा प्रसारण किए जाने से प्राप्त धन संगीतकार, गायक, साजिंदों और कोरस में हिस्सेदारों में बांटा जाएगा। दरअसल कुछ वर्ष पूर्व जावेद अख्तर ने इस तरह के कानून के बनाए जाने की पहल की थी। प्राय: टेलीविजन कार्यक्रमों में फिल्मी गीतों का प्रयोग होता है। किसी भी गीत का प्रयोग 17 सेकंड तक मुफ्त में किया जा सकता है। हर नियम से बचने के लिए हम पतली गली खोजने में प्रवीण रहे हैं। अत: 16 सेकंड बाद कुछ अनावश्यक संवाद बोले जाने के बाद उसी गीत का अगला भाग बजाया जाता है। लोगों के अधिकार में सेंध मारने में हमें महारत है। संगीत रॉयल्टी के मामले पर कुछ कलाकारों का कहना है कि उनके अभिनय को भी गीत की लोकप्रियता का श्रेय जाता है, अत: वे भी हक़दार हैं। अवाम को भी रॉयल्टी में हिस्सा मांगना चाहिए कि उन्हीं के द्वारा बार-बार सुनने के कारण लोकप्रियता मिलती है। एक अलग क्षेत्र में तालियां बजाने वालों को धन दिया जाता है।
फिल्म गीतों के रिकॉर्ड बनाने एवं बेचने का काम करने वाली कंपनी एच.एम.व्ही रॉयल्टी देती रही है। इस क्षेत्र में एक जूस बेचने वाले ने अपनी कंपनी बनाई। यह कंपनी निर्माता को शूटिंग पूर्व एकमुश्त धन देती है, जिसके बाद कोई हिसाब-किताब नहीं दिया जाएगा, ऐसा अनुबंध कर लेती है। कुछ वर्ष बाद इसी कंपनी के मालिक ने अपना संगीत बैंक बनाया। शादी, मिलन, विरह इत्यादि समय पर गाए जाने वाले गीत-संगीत बैंक से ही निर्माता लेगा, ऐसे करारनामे बने। इसने नई प्रतिभा के लिए द्वार बंद कर दिए।
इसी कंपनी के जन्मदाता ने वर्जन रिकॉर्डिंग प्रारंभ की। मूल रचना में थोड़े परिवर्तन से बनी रचना को मौलिक कहा जाने लगा। प्रतिभाशाली गायक सोनू निगम ने सबसे अधिक वर्जन गीत गाए हैं। सोनू रफी-किशोर सहित कई बड़े गायकों की शैलियों में गाते हैं। इसी तरह एक युवा गायिका अपने लोकप्रिय कार्यक्रम में लता मंगेशकर के गाए हुए गीतों को प्रस्तुत करती रही है। उन्होंने अपने कार्यक्रम में हास्य का अंश भी शामिल किया। कहते हैं कि लता इससे बहुत खफा हुईं परंतु कहीं उन्होंने अपनी नाराज़गी कभी अभिव्यक्त नहीं की। लता ने अपने जीवन में कड़ा संघर्ष किया है और सबसे ज्यादा गीत गाए हैं। रॉयल्टी में अपने हक के लिए सबसे पहले लता ने अपना अधिकार मांगा। जिस कारण कुछ समय के लिए मोहम्मद रफी से मतभेद हुआ। रफी का विचार था कि निर्माता रिकॉर्डिंग का पूरा खर्च उठाता है और गायक को भी मुंहमांगा धन देता है, अत: रॉयल्टी पर उसी का अधिकार है। रफी साधू स्वभाव के सरल व्यक्ति रहे। किसी भी अधिनियम का क्रियान्वयन नहीं किया जाना हमारी विशेषता रही है। मार्ग पर लिखा होता है कि इस क्षेत्र में वाहन की गति 40कि.मी/घंटे से अधिक नहीं हो। प्राय: गाड़ी चलाने वाले इसे पढ़ने के बाद अपनी गति बढ़ा देते हैं। अधिकांश सड़क दुर्घटनाएं इसी लापरवाही और स्वभाव में अकारण जन्मे विद्रोह से होती है। मुंबई के सायन-चेम्बूर मार्ग का एक हिस्सा अंग्रेजों ने सीमेंट का बनाया था। वह सड़क आज भी जस की तस कायम है। हमारी मिलावटी सड़को के बनते ही उनमें गड्ढे पड़ जाते हैं। वर्तमान में चल रहे एक आंदोलन को रोकने के लिए व्यवस्था ने ही सड़क पर गड्ढा खोद दिया है, जिसमें नुकीली कीलें भी ठोक दी गई हैं। प्राय: आंदोलन में, बस दुर्घटना में कुछ लोग लापता हो जाते हैं। यह सिलसिला कुरुक्षेत्र में लड़े गए युद्ध के समय से ही चल रहा है, जिसमें 24 हजार 165 लोग लापता थे। संदर्भ विष्णु खरे की कविता।
आज कई गायक व कोरस लापता हैं। कुछ लोगों का जीवन उस सड़क की तरह होता है, जिस पर सारे समय मरम्मत चलती रहती है परंतु आवागमन भी जारी रहता है। गुलजार का गीत है, ‘ओ राही तू बढ़ता चल, राहों के दीए आंखों में लिए चलता चल।’