कच्चा लिंबू और टेकनोलॉजी कि इमली / जयप्रकाश चौकसे
कच्चा लिंबू और टेकनोलॉजी कि इमली
प्रकाशन तिथि : 23 फरवरी 2011
सागर बल्लारी की फिल्म 'कच्चा लिंबू' चुनिंदा सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई है और शायद यह सिताराविहीन फिल्म आज के सितारा केंद्रित बाजार से अनदेखी ही चली जाएगी। अपने नाम के अनुरूप फिल्म कच्ची है। परंतु कमसिन उम्र पर बनी 'उड़ान' की बहुत चर्चा हुई और उसे न जाने कैसे इतने अधिक पुरस्कार भी मिले, कि फरहा खान को समारोह में कहना पड़ा कि नृत्य श्रेणी में 'उड़ान' के नामांकित नहीं होने के कारण ही वह पुरस्कार पा सकीं। एक अनुभवी कैमरामैन ने 'उड़ान' को फोटोग्राफी का इनाम मिलने पर आश्चर्य प्रकट किया, क्योंकि 'गुजारिश' का छायांकन अत्यंत उच्च श्रेणी का था। दरअसल 'कच्चा लिंबू' सहारा द्वारा बनाई गई है और 'उड़ान' बनाने वाली संस्था जमकर मार्केटिंग करती है और पुरस्कारों को प्रभावित करने की ताकत भी रखती है। उनके जोश की प्रशंसा करनी होगी।
'उड़ान' का नायक, 'कच्चा लिंबू' के नायक की तरह कमसिन उम्र का बच्चा है। दोनों ही फिल्मों के नायक अपने पिताओं से खफा हैं। 'कच्चा लिंबू' में तो पिता सौतेला भी है। उम्र का यह नाजुक दौर बहुत ही रहस्यमय है, जब जवानी का प्रकाश आने को है परंतु बचपन की रात पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। थोड़ा-थोड़ा सा अंधेरा है, थोड़ी-थोड़ी रोशनी, यह अलसभोर है। उपरोक्त पंक्तियां राज कपूर की 'मेरा नाम जोकर' के पहले और श्रेष्ठ भाग से ली गई हैं। कमसिन उम्र का यह क्लासिक चित्रण था। पूरा भाग कविता की तरह प्रस्तुत हुआ था।
हॉलीवुड की फिल्म 'समर ऑफ 1942' को इस श्रेणी की फिल्मों में अन्यतम कृति माना जाता है। विश्व युद्ध के समय सोलह बरस का बच्चा अपने से बड़ी युवती के आकर्षण में बंधा है और फिल्म का प्रभाव कुछ ऐसा है कि लंबे समय तक रोजमर्रा की भाषा में कमसिन उम्र के विषय में कहा जाता था कि हर किसी के जीवन में 'समर ऑफ 1942' आता है। इसी थीम पर बनी 'ग्रेजुएट' भी क्लासिक का दर्जा रखती है।
दरअसल कमसिन उम्र पर बनी अजर-अमर फिल्मों के दौर में 'हैरी पॉटर' नामक भयावह हादसा भी हुआ है और बॉक्स ऑफिस पर इस शृंखला को इतनी सफलता मिली कि कविता सी प्रस्तुत उम्र जादू के मायाजाल में उलझ गई और यह पूरा षड्यंत्र बाजार की ताकतों ने रचा था। इनके लेखन से फिल्मों के संपादन तक का कार्य इतनी सफाई से किया गया कि कचरे को साहित्य का दर्जा मिला। यह लुगदी साहित्य की विजय पताका फहराने का खेल था। इस खेल में 'पॉटर' जैसा महान शब्द भी घसीट लिया गया। कुम्हार और मिट्टी के खिलौने तथा मूर्तियों के साथ एक मासूम-सी दार्शनिकता भी जुड़ी रही है और दुनिया बनाने के महान सृजन का यह लघु रूप कितने विचार जगाता रहा है। कबीर की पंक्तियां अवचेतन में हमेशा के लिए अंकित हैं-'माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदंूगी तोहे।'
बहरहाल टेक्नोलॉजी ने कमसिन उम्र को अत्यंत फिसलन भरा बना दिया है और बहकने के खतरे, भटकने की संभावनाएं असीम हो गई हैं। अब तो थके-मांदे माता-पिता के सोते समय भी टेक्नोलॉजी जागती है और कमसिनों के अवचेतन में पैंठ सकती है। संकेत स्पष्ट है कि टेक्नोलॉजी कमसिन उम्र के लिए पोर्नोग्राफी के गुहा द्वार को कभी भी खोल सकती है।