कछुआ क्यूँ जीता? / इन्द्रजीत कौर
खरगोश और कछुआ आज मॉल में एक साथ बैठे हुये थे। बहुत दिनों बाद दोनों में मुलाकात हुयी थी। दरअसल दोनों में जब दौड़ हुयी थी तो कछुआ पहले मंजिल तक पहुँच गया था। खरगोश बाद में पहुँचा तो बहुत गुस्से में था। कमर पर हाथ रखकर उसने कछुये से ‘देख लूंगा’ कहकर वहाँ से दनदनाते हुये चला गया था। काफी समय तक दोनों की मुलाकात नहीं हुयी थीं । आज मॉल में जैसे ही सफेद रंग के खरगोश ने अपने साथियों के साथ प्रवेश किया, उसकी नजर जमीन पर पड़े एक कोने में कछुये पर पड़ी। वह पहले से बहुत कमजोर हो गया था। खरगोश ने बड़ी मुश्किल से पहचाना। कछुये के लिये यही बहुत बड़ी बात थी कि उसने पहचान लिया था। खरगोश को समझ में नहीं आया कि बचपन में रेस जीतने वाले कछुये की यह हालत कैसी हो गयी है? वह उसे उठाकर बर्गर खिलाने ले गया। फिर शुरु हुआ बातों का सिलसिला जो आपके सामने प्रस्तुत है-
खरगोश - यार हमें लगा कि तुमने काफी अच्छा कैरियर बना लिया होगा। अभी तक तुम सरक ही रहे हो। कहीं र्इमानदार सरकारी बन्दे तो नहीं हो गये हो?
कछुआ- हाँ, कुछ ऐसा ही है। तुम?
खरगोश - तुम सरकारी बन्दे हो , मैं सरकार में हूँ।
कछुआ- मतलब?
खरगोश - यानि कि तुम नौकरी लेने वालों में हो और मैं देने वालों में। लेकिन तुम तो बहुत मेहनती रहे हो, मैं तो बीच में ही सो गया था।
कछुआ- तुम सो गये थे तभी तो मैं जीत गया था। आज के खरगोश सोते कहाँ हैं? वो हम जैसे लोगों पर से कूद कर निकल जातें हैं। हम बूंद-बूंद घड़ा भरतें हैं तुम घड़ी-घड़ी घड़ा भरते हो। हम काले से कालेतर होते जा रहें हैं और तुम सफेद से सफेदतर।
खरगोश - अमां यार इसी से तो पूरा जलवा है पर तुम क्यूँ जल कर लावा बनते जा रहे हो?
कछुआ- नहीं, बस यूं ही। हाँ, तुम्हें तो गाजर पसन्द थी, बर्गर क्यूँ खा रहे हो?
खरगोश - वो दिन लद गये जब हमलोग गाजर खाया करते थे। अब तो सबके सामने बर्गर खातें हैं और पीछे से लॉकर।
कछुआ- लॉकर? लॉ कुछ नहीं कहता?
खरगोश - कहता है पर तब तक हमारा लॉकर बैंक का आकार ले चुका होता है। समुद्र से दो बूंदे निकलती हैं तो क्या फर्क पड़ता है यार?
कछुआ- और जेल?
खरगोश - शरीर 70-80 की उम्र में थक चुका होता है अत: जेल मिलती भी है तो हमारे लिये यह खेल होता है। अपनी जिन्दगी तो जी ही चुके होते हैं। बरगद की एक टहनी काट लेने से क्या होता है। अपना वजूद तथा अपनी ही छांव में एक गाँव तो बना ही लेते हैं। सजा तो वो होती है जो पौधेपनें में ही हमें जड़ से हटा दे।(हँसते हुए)... वो तो होने से रहा। सो यार, लॉ की बात तो न ही कर। कछुआ- अच्छा उस समय का क्या जब तुम रेस में हार गये थे? तुमने आकर मुझे ‘देख लूँगा भी ‘ कहा था।
खरगोश - उस घटना पर मत जाओ। उसका तो राज ही कुछ और है?
कछुआ - क्या?
खरगोश - वो चुनाव का समय था। मैं तुम्हें जिताने के लिये छिप गया था ताकि तुम अपने आप को राजा समझ सको। बाकी समय तो वही होना था जो आज देख रहे हो। तुम कोने में छिपे पडे़ हो और मैं...।