कछुए की बहिन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
कछुआ तालाब से निकला और धीरे–धीरे सरक कर खेत की मेंड़ पर आकर बैठ गया । उसे तालाब से बाहर का संसार बहुत ही प्यारा लगा । स्कृल से लौटते खिलखिलाते बच्चों को देखकर उसका मन मचल उठा । उसने सोचा– मैं भी बच्चों की तरह खिलखिलाता । कन्धे पर बस्ता लटकाकर स्कूल जाता ।
उसने अपना सिर निकाल कर बच्चों की तरफ देखा। दो शैतान बच्चों ने उसको देख लिया । फिर क्या था-दोनों उसे बारी–बारी से ढेले मारने लगे । कछुए ने अपने हाथ ,पैर, सिर सब एकदम समेट लिये । खोंपड़ी पर लगातार ढेलों की मार से उसे लगा कि वह मर जाएगा । लड़कों के साथ एक छोटी लड़की भी थी । वह चिल्लाई–‘‘ क्यों मार रहे हो ? इसने तुम्हारा कया बिगाड़ा है ?’’
‘‘ तुम्हें बहुत दु:ख हो रहा है । यह तुम्हारा भाई है क्या ?’’ एक शैतान लड़के ने कहा ।
‘‘ इसे राखी बॉंध देना ’’ -दूसरा लड़का कछुए को ढेला मारकर बोला ।
लड़की की आँखों में आँसू आ गए -‘‘ यह मेरा भाई हो या न हो , पर यह दुश्मन भी नही है ।’’
‘‘अरे, ओ कछुए की बहिन ! अपने घर चली जा ’’–दूसरा बोला ।
सभी–बच्चे ‘कछुए की बहिन , कछुए की बहिन ! कछुए की बहिन!’ कहकर जोर–जोर से हॅंसने लगे । उन दोनों शैतान लड़कों ने कछुए को उल्टा करके ढेलों की बीच में रख दिया ।
लड़की चुपचाप अपने घर चली गई ।
घर पहुँचने पर उसका मन बहुत उदास हो गया । वह सोचने लगी– बेचारा कछुआ ! कब तक उल्टा पड़ा रहेगा ?
उसे लगा -जैसे वह सचमुच उसका भाई ही हो । वह चुपचाप घर से निकली और तालाब के किनारे जा पहुँची । कछुआ उल्टा पड़ा हुआ था । वह सीधा होने के लिए छटपटा रहा था । लड़की ने चारों तरफ देखा । आसपास कोई नहीं था । वह उसे उठाकर तालाब की तरफ दौड़ी । उसने कछुए को तालाब के पानी में छोड़ दिया ।
कछुए ने अपनी लम्बी गर्दन निकाली । चमकती छोटी–छोटी आँखों से लड़की की तरफ प्यार से देखा और फिर गहरे पानी में उतर गया।
लड़की खुश होकर घर की तरफ दौड़ी । अब उसे कोई ‘कछुए की बहिन’ कहे तो वह नहीं चिढ़ेगी ।
कछुए ने भी फिर कभी तालाब से निकल कर घूमने की हिम्मत नहीं की ।