कटी नाक / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

Gadya Kosh से
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संभलपुर छोटा सा गाँव था । इसमें दस घर ठाकुरों के थे , पांच ब्राह्मणों के एवं बीस घर चमारों के थे । गाँव में चर्चा रहती कि इस गाँव से अभी कोई सरकारी नौकरी में नहीं है। सभी चाहते कि इस गाँव का कोई बालक भी सरकारी नौकर बने ताकि गाँव की नाक ऊँची हो।

उस दिन ठाकुर राम सिंह अपने चबूतरे पर बैठे पंडित शुकदेव के साथ बातों में मशगूल थे कि बुद्धा चमार प्रसन्न मुद्रा में वहां आया। उसने दोनों से हाथ जोड़कर राम राम की एवं साथ ही सूचना दी कि गाँव वालों के आशीर्वाद से उसका लड़का मास्टर हो गया है।

बुद्धा की बात सुनकर दोनों ने कहा -- "बहुत अच्छा। बड़ी ख़ुशी की बात है।"

जब बुद्धा चला गया तो पंडित शुकदेव ने ठाकुर राम सिंह से कहा -- "ठाकुर साहब , यह तो गाँव की नाक कट गयी। कोई ठाकुर या ब्राह्मण का लड़का होता तो और बात थी। साला चमार मास्टर बन गया।"

फिर दोनों खामोश होकर एक दूसरे को ऐसे देखने लगे, जैसे सोच रहे हों कि कटी नाक लेकर कहाँ जायें?