कट्टरपंथी / राहुल शिवाय
मैं और मेरा मित्र मानस दीपावली की छुट्टियों में घर आ रहे थे। मानस पूरे रास्ते ट्रेन में उपस्थित लोंगों के साथ राजनीति और आतंकवाद पर चर्चा कर रहा था। उसकी बातों में मुस्लिम सम्प्रदाय के प्रति गहरा रोष था। उसकी बातों से कट्टरता की झलक मिल रही थी। मैं मानस को अच्छी तरह जानता था, वह कितनी भी बातें बना ले पर वह लडाई-झगडे व सक्रिय राजनीति से हमेशा दूर रहता था। देखते ही देखते बरौनी स्टेशन आ गया और हम प्लेटफार्म पर उतर गये।
हम दोनो को बेगूसराय जाना था। अतः हमने बाहर आकर जीप पकड ली। जीप में काफी भीड थी पर हम दोनो को सीट मिल गई थी। जीप बरौनी से खुल चुकी थी। एक नौ-दस साल का मुस्लिम बच्चा सर पर टोपी पहने बीच में खडा था। जीप जितनी बार उछलती उसके सर पर चोट लग जाती। जब मानस ने देखा तो उस बच्चे को अपनी गोद में बिठा लिया पर उसकी टोपी उतार के उसके हाथों में दे दी। मानस यह करने के बाद मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था। मैं मन ही मन सोचने लगा, मनुष्य क्या है और क्या बनने का प्रयास करता है? मानस यह दिखाना चाहता था कि वह एक कट्टर हिन्दू है पर वास्तविकता यह थी की वह एक नेक इंसान था। जिसके भीतर इंसानियत जिन्दा थी।