कठफोड़वा / एक्वेरियम / ममता व्यास
"तुम मेरे तने पर कितनी देर से चोट कर रही हो, क्या खोद रही हो?" बूढ़े बरगद ने कठफोड़वे से पूछा।
"कुछ खोद नहीं रही बस एक सूराख बना रही हूँ ताकि मैं तुम्हारे तने में अपना घर बना सकूं।"
"लेकिन सभी चिडिय़ा घौंसला बनाती हैं, फिर तुम क्यों मेरे भीतर रहना चाहती हो?"
"मुझे संसारभर की चीजें एकत्र करके खुले में घोंसला बनाना पसंद नहीं। मुझे तो तने के सीने पर चोट करके उसके भीतर घर बनाना पसंद है।"
"ओह...मुझे घायल करके मेरे भीतर ही रहना चाहती हो, बड़ी अजीब हो।"
"चलो मेरा दु: ख छोड़ो, अपनी...अपनी चोंच तो देखो कितनी लहू-लुहान हुई है।"
"हाँ, लेकिन देखो तो कितना सुन्दर 'कोटर' बनाया मैंने, बहुत मजबूत और गहरा।"
"तुम्हारे तने के भीतर मैंने घर कर लिया है। जैसे देह पर बने होते हैं गोदने और मन पर उकेरे होते हैं जज़्बात।"
"पर मैं इस कोटर को कभी देख नहीं सकूंगा बस उसकी उपस्थिति को महसूस करूगां लेकिन इसे बनाने में तुमने जो पल-पल मुझे जितनी चोटें दी हैं उनके अहसास हमेशा मेरे मन में रहेंगे।"
"सिर्फ अहसास ही नहीं मैं भी हमेशा रहूंगी तुम्हारे भीतर।"
"सच?"
"बिलकुल जैसे देह पर बने गोदने और मन में छपी यादें हमेशा रहती हैं वैसे ही तुम्हारे तने पर मेरा कोटर हमेशा रहेगा।" वह हंसने लगी।
"कोई अन्य चिडिय़ा ऐसा अनोखा घर कभी नहीं बना सकेगी लेकिन"
"लेकिन क्या...?"
"लेकिन...जब कभी चली जाऊंगी तब दूसरी चिडिय़ा मेरे बनाये कोटर में रहेगी, तुम्हारा दिल कभी वीरान नहीं होगा।" वह उदास हो गयी।