कड़ी दर कड़ी / मनीषा कुलश्रेष्ठ

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उस दिन विशेषतौर पर अर्पिता को सास जी ने फोन कर बुलवाया था‚ सुबह बेटी का स्कूल छुड़वा‚ छुट्टी लेकर तुरन्त वह और आशुतोष कार से कानपुर भागे थे। छोटी ननद को लड़के वाले देखने आ रहे थे। अर्पिता ने छोटी ननद को तैयार किया‚ और लड़के वालों के सामने ले जाने लगी तो उसे हिदायत दी गई‚

“बहू तुम मत जाओ‚ मीनू की और तुम्हारी हाईट का कम्पेरिज़न हो जाएगा। तुम रसोई देखो।"

वह रसोई में थी और उसे ड्रॉईंगरूम की हलचलों का आभास था‚ गाना सुना गया‚ सैण्डिल उतरवा कर लम्बाई देखी गई। दस सवाल जवाब और आखिर में लड़की के सामने ही सौदेबाजी भी।

“हाँ तो बहन जी‚ देखिये लड़का इन्जीनियर है‚ कार तो टुच्चे से टुच्चा सरकारी नौकर पा जाता है। फिर देखिये हमारी कोई डिमान्ड तो है नहीं जो कुछ आप देंगे अपनी बेटी को देंगे। सैन्ट्रो कार‚ दो लाख कैश और अच्छी शादी बस।"

सास तो विधवा हैं‚ उनके पास क्या बचा है‚ जो था बड़ी ननद की शादी में दे दिया। वैसे भी जब से ब्याह कर आई है उसे सुना सुना कर कहा जाता रहा है कि ' बहू अब छोटी तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।' यहाँ तक कि उसकी शादी का सारा सामान उसकी छोटी ननद के लिये उठा कर धर दिया गया।

इतने में गुस्से में तनतनाती छोटी ननद रसोई में आ गई।

"हद है कैसे सौदेबाजी कर रहे हैं। कैसे बेतुके सवाल कर रहे हैं। दहेज के लालची कहीं के‚ ऐसों की तो पुलिसस्टेशन में शिकायत करनी चाहिये।"

वह क्या कहती चुपचाप चाय कपों में उंडेलने लगी। मन ही मन उसे अपना वक्त याद आ गया। यही ननद जो कि अविवाहिता होने पर भी दहेज की रकम और समान में खूब रुचि ले रही थी। अब अपना वक्त आने पर कैसे नियम कानून याद आ रहे हैं।

“बेटा मेरा अफसर है‚ कुछ तो स्तर होना चाहिये ना। पांच लाख से कम की आजकल तो चपरासी की भी शादी नहीं होती।”माताजी ने मेरे ही सामने कहा था।

“आंटी आप तो कैश दे देना‚ सोफा‚ डबलबेड‚ ड्रेसिंगटेबल मैं अपनी पसन्द से खरीदूंगी। और आंटी मेरे और दीदी के लिये पार्टी साड़ीज़ ही भेजियेगा।”ये ही ननद रानी उछल कर मेरी मां से बोलीं थीं।

अर्पिता सोच रही थी‚ मां के घर से मिला वो तो गया ही इन ननद के लिये‚ पतिदेव की गृहस्थी में काट काट कर जोड़ा पैसा भी इन छोटी ननद को कार देने में और शादी कराने में लग जाएगा‚ चाहे हम खुद सैकेण्ड हैण्ड फियेट में चलें पर इन्हें सैन्ट्रो देनी ही है। मैं तो दोनों ही तरफ से हानि में रही।

तभी आशुतोष आ गये रसोई में‚ “अर्पिता बात जम नहीं रही। दस कमियां निकाल रहे हैं। तीन चार बार देख के‚ खा पी गये हैं। डिमाण्ड्स भी …"

“अच्छा ही तो है‚ दहेज के लालचियों से क्या करनी शादी। कहीं तो ये कड़ी टूटे…दहेज देते और लेते जाने की…” अर्पिता का स्वर तेज था और चेहरा तमतमा रहा था‚ आशुतोष और मीनू हैरत से उसे देख रहे थे।