कतरे पंख / सुधा भार्गव
टंटा कॉलोनी में तैयार पचास हजार फ्लैट ---केवल -- केवल गरीबों के लिए!
इस खबर ने बस्ती वालों के दिलोदिमाग में खलबली मचा दी।
गेंदा की तो नींद उड़ गयी। उसकी तीन पीढ़ियाँ स्लम एरिया में एक झोंपड़ी में गुजारा करती थीं। खुद के न सोने का पता न जागने का। गेंदा और उसके बेटे ने रातों रात एक कर झोंपड़ी में तख्ते लगाकर उसके तीन भाग कर दिये जिससे समझा जाए कि तीन परिवार कैसे सिकुड़कर नरक सी ज़िंदगी काट रहे हैं।
दूसरे दिन तीन फ्लैट के लिए आवेदन पत्र भी नई कॉलोनी के कार्यालय में फुर्ती से दाखिल हो गये।
तकदीर चमक उठी। मिल गया मालिकाना हक़ तीन फ्लैटों पर। बूढ़ा जवान की तरह तनकर चलने लगा। जवान बच्चे की तरह उछलकूद मचाने लगे।
उनके मलीन चेहरे ठीक से खिल भी न पाए थे कि हफ्ते भर बाद ही बिजली चली गई और फिर तो ऐसी आँख मिचौनी चली कि रात एक घंटे ही बिजली दर्शन देती।टंकियों में पानी चढ़ना बंद हो गया। पानी भरी बाल्टी लेकर सीढ़ियों पर चढ़ने से दम अलग फूलने लगा। बरसात होने पर छत का ढलान ठीक न होने पर पानी रुक गया और दीवारों पर सीलन उतर आई ।रसोई की छत चुचाने लगी। गेंदा के बेटे का मिजाज चढ़ गया।
-सुन रहे हो न, सामने से टपटप, इससे तो अच्छे जुग्गी-झोंपड़ी में थे। कचरे की दीवार पर घास -कीचड़ डालकर सूराख तो बंद कर लेते थे। कितनी बार तो टीन की छत पर कागज का ढेर ही लगा दिया। भला हो कागज का --सारा पानी सोख लिया।
-क्यों खीज रहा हैं। गंदगी में पैदा हुआ,नंगे –भूखे रहकर बड़ा हुआ। तुझमें उड़ने की चाह कब –कब में पैदा हो गई। हमारे तो आप जान कर पंख कतर दिये जाते हैं ताकि गरीब अपने को गरीब ही समझे।