कथा-दौड़ / बी.एल. माली 'अशांत' / कथेसर
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: कथेसर » | अंक: जुलाई-सितम्बर 2012 |
कथा लोक री उपज है। राजस्थानी ई नीं, भारतीय कथा जात्रा भी लोक मांय सूं सरू हुयी है, कहाणी अेक संभ्रांत लेखन है।
लोक अर संभ्रांत मांय अेक अकथित दूरी है। आं दोवां में सूं कुण बडो है, ओ तो ठीक-ठीक नीं कैयो जा सकै, पण लोक आपरी लुळताई सूं संभ्रांत नै आ कैय'र बडो कियो है कै- आप बडा लोग हो......। पण गैराई सूं बात नै परखी जावै तो संभ्रांत रा सै कीं लोक रै भीतर है, ग्यान-विग्यान आखो। वो लोक संू ई संभ्रांत बण्यो है।
कहाणी संभ्रांत लेखन है। कहाणी भी संभ्रांत री भांत कथा सूं (वात सूं) कहाणी बणी है। पण कहाणी नै पैलीपैल कथारूप में बात रै उनमान लोक ई कैयी है। कहाणी लोक में ई पळी-बडी हुई है, इणरो मिनख रै भीतर तांई पूगणै रो रचाव लोक में ई हुयो है। अर व्यापक विगसाव भी इणी भांत हुयो है। संभ्रांत इण व्यापक रै गैरै रचाव सूं चकित है-आज भी। कई गुणी पुरुष इण बात नै समझी है, कई संभ्रांत जन इण रै मरम नै जाण्यो है। अै कथावां लोक मांय संस्कारां रो निरमाण कियो है अर आपरी पीढी नै मिनखजमारै रा गुण-धर्म थाप'र दिया है। अै कथावां मिनख अर मिनखपणै रा आखा रूपां री बात रची, इणी कारण अै लोक री आपरी कथावां कैवायी अर इणी कारण अै बात कैवायी अर इणी कारण अै कथावां संभ्रांत में चावी हुयी है। संभ्रांत आं नै 'लोककथा' नांव दियो, इणरो कारण लोक अर संभ्रांत री अकथित दूरी है।
धरती पर पैलो कथाकार लोक में हुयो है। बीं कथेसर नै आपरै नांव रो लोभ नीं हो। वो कथावां रची अर आपरै आदम्यां नै सुणाई। जिण भांत वैदिक काल में सैंग रचाव ईसर रै निमित्त हुया, उणी भांत लोक में अै कथाकार आपरो आखो कथा रचाव लोक रै निमित्त कियो। नांव रो लोभ तो बाद में जाग्यो है। विजयदान देथा आं मांय सूं कीं कथावां लोक-कंठां सूं लेय'र कागज पर लिखी है अर वां नै आपरो नांव दियो है। ओ विजयदान देथा पर लोक रो करज है जिको उणनै आगलै जनम में चुकाणो है। क्यूंकै कहवत है- खच्चरगधी म्हारा दाम दे, पर का खाया अैस दे!
पैलां अै कथावां वात रूप में ही। जद लिपि आई अर कलम बणी तो अै 'लोककथावां' कहीजी। लोककथा आं नै संभ्रांत रो संबोधण है। संभ्रांत आपरी कथा रच'र उणनै कहाणी कैयी। अंगे्रजी में कोई इसो सबद नीं है। पण संभ्रांत रो रचाव बात जेहड़ो अजोड़ नीं है। अब वो कहाणी नै कथा कैवणो सरू कियो है। पैलां कहाणी ही, अब कथा है। पण कथा अर कहाणी पर्यायधर्मी सबद है। कहाणीकार बढिया सबद है, पण कथाकार बढिया नै ओपतो सबद है। फेर फरक भी के है- चाये मा रांड कारी कहद्यो चाये बाप कारी, बात तो अेक इज है नीं! विजयदान देथा इण फरक नै पैलीपैल समझियो। बो आपरी आखी कलम बात नै सूंप दीनी। स्यात वै बात रो मरम अर करामात नै गैराई सूं समझ परा ओ काम कियो हो। वां नै ठाह लागग्यो हो कै उण सरीसै आदमी नै कहाणी ऊपर नीं उठा सकै। वो राजस्थानी वातां रची। राजस्थानी वातां नै पढण सारू विद्वान पुरुस राजस्थानी भणी है। जद वै आं नै पढी तो वां नै ठाह पड़्यो कै ओ खजानो तो लोक रै माणक-मोतियां सूं भर्यो है। अै बातां पढ'र विद्वान पुरुसां कहाणी री बात भूलग्या अर आखै देस में विजयदान-विजयदान हुयग्यो। आ बातां री करामात है।
धरती पर कथा री जात्रा बात सूं सरू हुयी है। अर कथा सूं कहाणी री अेक छोटी जात्रा है। कथा अर वात मांय अेक ऊंचै दरजै रो सहसंबंध (कोरेलेशन) है अर अन्तर्संबंध भी। बात अर कथा लोक रो रूप है अर कहाणी संभ्रांत रो रूप अर कथन। कथन सूं ई कथेसर सबद बणियो है। जिका रचनाकार बात नै गुण'र कहाणी नै भण'र कथा लिखी वां मांय कथा जात्रा रो अेक पड़ाव है। कथा रा कई रूप है पण कहाणी रो अेक ई रूप है- बहोत अजोड़ नै बेजोड़ नीं, अबोट भी नीं। कहाणी नै बात सरीखी ख्याति प्राप्त करणी है। अर बात जितरो चालणो है। इण इलेक्ट्रोनिकी सूं पार पाड़णो है। वा आज हांपती निजरां साम्हीं आवै, बात तो कितरा समदर पीया है, कितरा-कितरा जुग जीयनै आज भी जीवंत है। संभ्रांत खुद आं नै जीवण रा जाम दिया है। अै बात लोक रो तप है। कहाणी नै आपरै भीतर तप हाल सांचरणो है। ....कथेसर तपैला नीं तो तप कीकर सांचरैला?
बात रच'र बात रा रचेता वां नै आपरो नांव नीं दियो। जद कथाकार इण बात नै गुण'र रमता जोगी बणता तो बात अलायदी होती पण अब बात अलग है। पैली बात अलग ही अर आज बात अलायधी है। पैली बात आगै ही आज आदमी आगै है। ओ बात सूं कहाणी रो मोटो बणतो फरक है। पैली आदमी बात रचता अर लोक रै कंठां पर लिखता। अै कथावां चावी हुय'र लोककंठां पर बहोत लंबी जात्रा करी है- बहोत लंबी। कहाणी री बात अलग है! बात लारै अर आदमी आगै। इणसूं अेक नुंवी बात उपजी है, जिणनैं कथा-दौड़ कहीज सकै है। आ दौड़ कथा रै परबारै सरू हुयी है।
दौड़ अेक खेल है, पण कथा नीं। कथा-दौड़ मांय दौड़णिया कथेसर नीं कहीज सकै। राजस्थानी में आ दौड़ कहाणी रा बड़ा बुरा भाग रचिया है। असल में आ दौड़ कथाकारां रै बीच सरू नीं हुयी है, कथा धावकां सरू करी है। इणरो परिणाम कथेसरां रै साम्ही ऊभो है। इण दौड़ मांय अेक सोवणी दौड़ 'बोरी दौड़' और है। जिकी अलग ई कहाणी कैवती दीखै। इण बोरी दौड़ मांय पग बोरी में राख'र उछळ-उछळ'र दौड़ीजै। इण दौड़ रा दौड़णियां धावक रै रूप में नीं हुय'र अेक कथेसर रै रूप में है। उछळणो-कूदणो कथेसरां रो काम नीं है। पण 'बोरी दौड़' री मजबूरी! आं 'कथाकार धावकां' नै इण भांत दौड़णो पड़ै क्यूंकै इण दौड़ रा नेम-कायदा ई अै ईज है। बोरी-दौड़ मांय कथा-कलम बोरी मांय सूं बारै निसरै। हिन्दी मांय थापीजिया कथेसर आपरी हिन्दी कहाणी नै राजस्थानी में रच'र पूजीजै। इणरै दूजै रूप में राजस्थानी में हांफ'र कलम कथेसर हिन्दी में सांग रच'र राजस्थानी में ओप बढावणै रा जतन करै। अै सै सांग है। कथा नीं लिखै तो कथाकार भी पिछड़ जावै, 'अभ्यास' बिना धावकां री भांत। पण धावकां नै तो पिछड़्यां सर जावै, कथेसरां नै नीं। कथाजात्रा अर कथादौड़ में ओ ईज फरक है।
राजस्थानी कथाजात्रा 1904 में सरू हुयी है, पण अबतांई आवता-आवता कथा जात्रियां साम्हीं कथा धावक इणनै अेक अलग रूप दे दियो है। 'बोरी दौड़' घातक नीं है पण कथादौड़ तो इसड़ी नीं है! कथाजात्रा इण धरती रो तप है। इण रज रो जाप। कथादौड़ तप अर जाप हीणी है। इण रज में कथा धावक नीपज जावैला, इण बात नै तो कोई सोची ई नीं ही! आं नै अर आं नै नीपजावण अर धावक बणावणियां नै सौ-सौ बर धिक्कार!
राजस्थानी कथा जात्रा रा पैला जात्री शिवचंद्र भरतिया है अर वां रै कालखंड कथेसर। वै आ कथा जात्रा बंग भौम सूं सरू करी यानी राजस्थान सूं बारै। वै सगळा मरूभौम रा जाया-जलम्या हा। वां री कथावां मांय सामल देस री सांतरी सांतरी बातां रची-बसी है। वै 'सांत' हुयग्या तो अेकर इण जात्रा रो बोल्याळो बंद हुयग्यो। 35-36 साल बाद आ जात्रा फेरूं सरू हुयी। अबकाळै आ मरूभोम पर पग मेलिया। इणरै पछै आ जात्रा कदे नीं रुकी, लगोतार चाल रैयी है। अब आ जात्रा कदे नीं थमैला। मुरलीधर व्यास नै इण जात्रा रो जस है। बीकानेर इण जस री जसधारी है। पैलीपैल कथा लिख'र सुणावा रो सिलसिलो बीकानेर में ई सरू हुयो। 1956 ई. में अेक धूअींतारो राजस्थानी रै कथा अकास में चमकियो। उणरी कथा 'रातवासौ' इण कथाजात्रा में हरावळ बणी। इणरै पछै बडा-बडा तारां इण अकास में सोभायमान हुया। आं री चमक सूं राजस्थानी कहाणी आज प्रकासित है। इणरै पछै राजस्थानी कथाजात्रा और सरूप रूप में बगती.........गयी। मुरलीधर व्यास, नृसिंह राजपुरोहित, अन्नाराम सुदामा, श्रीलाल नथमल जोशी, बैजनाथ पंवार, मूळचंद प्राणेश अमर नांव है। आं री कलम सूं कथा जस लियो है। रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत रजवाड़ी राज री कथावां रची अर इण तेज नै प्रकासित कर'र पद्मश्री प्राप्त करी। पण कहाणी रो जिको दौर 1904 में सरू हुयो वो दौर विजयदान देथा री लोगां सूं सुण-सुणनै भेळी कर लिखी कथावां सूं अर राणीजी री रजवाड़ी कथावां सूं अलायदो हो। वो दौर ई आगै बध्यो है, आज भी गतिमान है। इण कालखंड में कितराई विद्वान कहाणियां लिखी। आं मांय सूं डॉ. मनोहर शर्मा अर नानूराम संस्कर्ता रो नांव सिरै रूप में साम्हीं आवै। कथेसर बणणै रो सरेव ब्रजमोहन जावळिया, किशोर कल्पनाकांत, दामोदर शर्मा अर बीजा-बीजा कई-कई लिखारा कियो है पण आं री सोनेरी साहित्य पाघ मांय बीजो साहित्य सरूप सोहवै। सौभाग्यसिंह शेखावत भी इसड़ा सीमित लोगां में है। अै भी कहाणी लिखी है, रची है।
पण कहाणी रो भोत सोवणै दौर रो सरूप प्रतिष्ठित पीढी मांय रामेश्वरदयाल श्रीमाळी, सांवर दईया, भंवरलाल भ्रमर, यादवेन्द्र शर्मा 'चंद्र', अमोलकचंद जांगिड़, करणीदान बारहठ, हरमन चौहान, रामपालसिंह राजपुरोहित आद-आद बहोत प्रखर रूप में साम्हीं आवै। अै कथाजात्रा रा कथापुरुस है। राजस्थानी कहाणी इण कालखंड में भारतीय स्तर पर आ ज्यावै। इण कालखंड रा कथा-लेखक भारतीय श्रेष्ठ साहित्यिक पत्र-पत्रिकावां में आपरी राजस्थानी कहाणी साथै प्रकासित हुवै। 'कहानी', 'कादम्बिनी', 'नवनीत', 'सारिका', साप्ताहिक हिन्दुस्तान, धर्मयुग, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक ट्रिब्यून, दैनिक सन्मान, समकालीन भारतीय साहित्य, वागर्थ जैहड़ी राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकावां में राजस्थानी कहाणी आपरै अनुवाद रै साथै छपै। जद टेलीफिल्म री बात कहाणी में सरू हुवै तो भी राजस्थानी कहाणी आगीवांण बणनै साम्हीं आवै। 'जसोदा' रो प्रसारण राष्ट्रीय स्तर माथै हुयो है। यादवेन्द्र शर्मा 'चंद्र' री कहाणियां दूरदर्शन रै परदै माथै दूर-दूर तांई प्रसारित हुई है। 'काजळ री हत्या' आंचळ फिल्म द्वारा स्वीकारीजी है। हबीब कैफी जेहड़ा राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित कथा पुरुस 'गुदड़ी रो दरद' जेहड़ी कहाणियां नै प्रकासित करी है। अेहड़ा बड़ा-बड़ा नांव है। इण काळखंड री कहाणियां मांय 'म्हनै भीखू री चिंता है' जेहड़ी इसड़ी कहाणियां है जिण मांय इण प्रदेस रो अर इण भासा रो नीं, आखै देस रो नक्सो है। राजस्थानी कहाणी सौ रूप लेयनै अेक जिल्द मांय अेक लेखक रो किरतमान देश साम्हीं मेलै। बात 'अशांतÓ री नीं है राजस्थानी कहाणी री है, अेक कथाकार री नीहै, अेक राजस्थानी ओप री है।
राजस्थानी कहाणी आपरै नुंवै रूप में अेक सोवणो पांवड़ो भरती तद दीखै जद रामस्वरूप किसान सरीसा किसान पुरुष इण जात्रा रा कथा जात्री बण'र साम्हीं आवै। अठै सत्यनारायण सोनी रो प्रखर रूप आपनै साव दिखैला। मदन सैनी कहाणी रचता आपनैं साव दिखैला। भरत ओळा अर मेजर रतन जांगिड़ कथादौड़ रा धावक है! पण कथायात्रा रा जात्री मनोहरसिंह राठौड़, श्याम जांगिड़ अलायधी बात कैवता दिखैला। राजस्थानी कहाणी आपरै रचाव रै साथै बहोत सांतरा-सांतरा नांव आगै किया है। इण जात्रा में 'फुरसत' कहाणी अेक बात कैवती दिखैला, 'आ फोटू अठै कियां' बहोत ई दूसरी बात कैवती निजरां साम्हीं आवैला, 'दलाल' कहाणी मांय जिको परस किसान दियो है, वो अबोट नै अजोड़ है। 'हाडाखोड़ी' री खोड़ अबोट है। इणरै अलावा चैनसिंह पडि़हार, मीठेस निर्मोही, अशोक जोशी 'क्रांत' सिरै रूप में साम्हीं है कथा साम्हीं है।
राजस्थानी कहाणी जात्रा धर मजलां-धर कूंचा आपरी मधरी चाल सूं चाल रैयी है। कथादौड़ इण मांय नुंवी बात है। कथा जात्री धरमजलां चाल रैया है, कथा दौड़ रा धावक हांफरड़ै चढ मेल्या है, कई बैठग्या है अर कई आपरी दौड़ी दौड़ रैया है। इण दौड़ नै दौड़ावणियां री सीटी अब राजस्थानी खोस लेवैला ताकि अै धावक कथा जात्री बण'र कथा जात्रा में सामिल हुय जावै। कथादौड़ रो रूप कोई चोखी बात नीं है। ओ रूप राजस्थानी कहाणी में, पण आय ऊभो हुयग्यो। कथेसर हैरान है अर साहित्य हाको-बाको! बिना कथा अव्वल आवणै रो ओ रूप कथाकारां नै भांड नांखैला। मालिक म्हारै कथाकारां नै बुरीगारां सूं बचावै। कथा नै खतरो है अर बुरीगार खड़-खड़ हांस'र मुंडो बिगाड़ रैया है। पण राजस्थानी कथा जात्रा इणां सूं प्रभावित नीं हुवैला। आ मंथरी चाल रैयी है, जीवंत रूप में भारतीय कथा जात्रा मे मिल जावैला। पतियारो है। म्हानै पतियारो है।