कथा भैंस के डंडा मारने की / गिरिराजशरण अग्रवाल
पड़ोसी अपनी आदत के अनुसार आज फिर दीवार के उस पार से चिल्लाया-'क्यों जी, तुमने हमारी भैंस के डंडा क्यों मारा?' हमने उसकी आदत के अनुसार उसका यह वाक्य सुना और अपनी आदत के अनुसार अपना यह परम प्रिय वाक्य दोहराया, 'नहीं जी! हमने तुम्हारी भैंस के डंडा नहीं मारा है। हम डंडा मार ही नहीं सकते। हम जानते ही नहीं, डंडे का प्रयोग कैसे किया जाता है? तुम ही दिन देखो न रात, जब भी तुम्हारा छेड़ने का मूड होता है, छेड़ करने को अपनी भैंस खूँटे से खोलते हो और हमारे खेतों की तरफ़ हाँक देते हो। तुम तो उलटा चोर कोतवाल को डाँटे वाली कहावत पर अमल कर रहे हो। हमने तुम्हारी भैंस के डंडा नहीं मारा। नहीं मारा।'
'तुम बिलकुल सफ़ेद झूठ बोल रहे हो जी, बिलकुल सफ़ेद झूठ।' पड़ोसी पहले से भी ज़्यादा तनतनाकर बोला, तुमने हमारी भैंस के डंडा मारा है, मारा है और हमें लगता है कि तुम आगे भी अपना डंडा हमारी भैंस के मारते रहोगे। '
हमने बड़े प्यार से अपने पड़ोसी को समझाया कि हे हमारी जान से प्यारे कटखने पड़ोसी, होश में आओ, हुड़दंग मत मचाओ। हम चोटमार आदमी नहीं हैं, यानी डंडा मार आदमी नहीं हैं। तुम भले आदमी हो, भले आदमी की तरह दिखो, अच्छे पड़ोसी की तरह रहना सीखो। हमारे-तुम्हारे बीच कुछ और नहीं है, विभाजन की यह इकलौती दीवार है। इसके उधर तुम हो, इधर हम। सच जानो, हम इस दीवार की सौगंध खाकर कहते हैं कि हमने तुम्हारी भैंस के डंडा नहीं मारा है। '
हमने देखा कि पड़ोसी पर हमारे इतने लंबे व्याख्यान का कोई असर नहीं हुआ है। वह लगातार चिल्ला रहा है, 'तुम मानो या न मानो, पर हम मानते हैं और जानते हैं कि तुमने हमारी भैंस के डंडा अवश्य मारा है और यह डंडा तुमने आज ही नहीं मारा, पिछले सत्तर साल से मारते आ रहे हो।'
हमने सुना तो कानों पर हाथ धरते हुए बोले, 'पड़ोसी भाई, अल्लाह से डरो। झूठ मत बोलो, तुम तो ख़ुद पिछले सत्तर वर्ष से अपनी भैंस खूँटे से खोलकर हमारे खेतों में हाँकते चले आ रहे हो। हम विरोध करते हैं तो तुम उलटे हमें ही धौंसियाते हो। कहो यह कहाँ की शराफ़त है।'
पर हमने देखा कि पड़ोसी पहले की तरह आज भी हमारी बात नहीं सुन रहा है। एक ही रट लगाए जा रहा है कि तुमने हमारी भैंस के डंडा मारा है और तुम आगे भी हमारी भैंस के डंडा ज़रूर मारोगे।
हमने पुन: प्यार से पड़ोसी को समझाने की कोशिश की। उससे कहा कि देख भाई पड़ोसी, हम झंडे में विश्वास रखते हैं, डंडे में नहीं। तुम्हारा भी झंडा ऊँचा रहे, हमारा भी झंडा ऊँचा रहे। भाईचारा सीखो, हमारा चारा अपनी भैंस को मत खिलाओ। '
हमने अपने परमप्रिय पड़ोसी से यह भी कहा कि देखो भाई पड़ोसी, तुम भी यह रहस्य जानते हो, हम भी जानते हैं कि झगड़े का कोई सिर-पैर नहीं होता। धाँधली ही करनी हो तो 'आ बैल मुझे मार' का नारा मारकर भिड़ जाओ अगले से। इसमें क्या देर लगती है भाई।'
'समस्या बैल से स्वयं को मरवाने की नहीं, डंडे से भैंस को मारने की है।' पड़ोसी इतना सब समझाने के बावजूद अपनी वर्षों पुरानी तोता-रट पर जमा रहा। तुमने डंडा मारा है हमारी भैंस के और तुम यह डंडा, आगे भी मारोगे।
हमने देखा कि पड़ोसी ने शोर मचा-मचाकर इधर-उधर के लोगों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया है। पर हमने धैर्य की डोर हाथ से नहीं छोड़ी। बोले, 'पड़ोसी भाई, तुम हमें नहीं जानते। थोड़ा जानने-समझने की कोशिश करो। हम शांतिप्रिय हैं, शांति के लिए सक्रिय हैं। डंडे से हमारा क्या लेना-देना। हमारे पास डंडा नहीं है, झंडा है और उस पर तुम देख सकते हो, सदा एक सफ़ेद कबूतर बैठा रहता है। तुमने ही उस सफ़ेद कबूतर को परकैंच करने का प्रयास किया है सैकड़ों बार। अब उलटा हमे डाँट रहे हो कि तुम्हीं ने हमारी भैंस के डंडा मारा है।'
'हाँ-हाँ मारा है, मारा है।' पड़ोसी फिर् ग़ुर्राया। हमने अपने झंडे पर बैठे सफ़ेद कबूतर की सौगंध खाकर कहा, 'हम हलफ़ से कहते हैं कि ऐसा कोई डंडा हमारे पास है ही नहीं, जिसे हम तुम्हारी भैंस के मार सकते हों। हम डंडे का प्रयोग नहीं करते, झंडे का प्रयोग करते हैं, जिस पर सफ़ेद कबूतर बैठा है। तुम जानते हो कि यह सफ़ेद कबूतर शांति का दूत है, पड़ोसियों को डराने वाला भूत नहीं। इतना कहकर हमने' ओम शांति ओम शांति' का अपना पुराना जाप शुरू कर दिया।
शांति-शांति का जाप सुनकर पड़ोसी भ्राँति-भ्राँति चिल्लाया। वह दुनिया को बताना चाहता था कि हम शांति की आड़ में भ्रांति फैला रहे हैं और भ्रांति की आड़ में दराँती बना रहे हैं। हमारा इरादा नेक नहीं है। '
डंडे और भैंस की यह तकरार हममें और हमारे पड़ोसी में कोई एक-दो दिन से नहीं, वर्षों से चल रही थी। वह चिल्लाने से बाज नहीं आता था, हम समझाने से बाज नहीं आते थे। जब-जब मौक़ा मिलता अपनी भैंस खूँटे से खोलता और हाँक देता हमारे खेतों की ओर। भैंस खेत खाने से ज़्यादा उसे रौंदती। हम देखते और भैंस को फिर पड़ोसी के थान की ओर खदेड़ देते। भैंस जैसे ही अपने थान पर पहुँचती, पड़ोसी आ धमकता दीवार के पीछे और फिर वही रटी-रटाई धमकी दोहराने लगता, 'क्यों जी, तुमने हमारी भैंस के डंडा क्यों मारा?'
कभी-कभी हम भी थोड़ा बनावटी ग़ुस्सा दिखाते। बोलते, 'हमने डंडा-वंडा तो नहीं मारा है तुम्हारी भैंस को, यह बताओ कि तुम अपनी भैंस हमारे खेतों में छोड़ते ही क्यों हो?'
पड़ोसी ढिठाई से उत्तर देता, 'तुम्हारा खेत खाना हमारी भैंस का मूल अधिकार है। जब तक तुम्हारा खेत है और हमारी भैंस है, वह खेत खाती रहेगी और हम उसके इस अधिकार को अपना पूर्ण समर्थन देते रहेंगे।'
'लेकिन हमारे डंडे को?' हम थोड़ी दिल्लगी के साथ पड़ोसी से पूछते। वह ग़ुर्राकर उत्तर देता, 'तुम डंडे की बात करते हो, डंडे के लिए समर्थन माँगते हो। शर्म नहीं आती है तुम्हें। तुम तो लाखों बार अपने-आपको डंडा-रहित घोषित कर चुके हो।'
'हाँ! डंडा-रहित तो हम हैं। इसीलिए तो बार-बार तुम हमसे डरा करते हो।'
'नहीं! डंडा-रहित तुम नहीं हो, झूठ बोलते हो तुम! डंडा-रहित होते तो हमारी भैंस के डंडा क्यों मारते। पेट भरकर बल्कि मन भरकर अपना खेत खा लेने देते उसे।'
'वाह, भाई वाह! यह भी अच्छी रही, अपना खेत खा लेने दें और तुम्हारी भैंस को उसके थान तक भी न खदेड़ें। यह तो वही हुआ कि चित्त भी अपनी, पट भी अपनी।'
'हम चित्त-पट को नहीं जानते। अगर अबके तुमने हमारी भैंस के डंडा मारा तो अच्छा नहीं होगा, समझे?' पड़ोसी ने धमकाते हुए हमसे कहा।
'अच्छा तो हो ही नहीं सकता, जब तुम्हारे पास भैंस है।' हमने उत्तर दिया।
'और तुम्हारे पास?' पड़ोसी घुडक़ते हुए बोला।
हमने चुप साध ली।
पहले के लाखों बार की तरह आज फिर जब टूटी दीवार के पीछे से पड़ोसी हमें ललकारते हुए बोला, 'क्यों भई, तुमने हमारी भैंस के डंडा क्यों मारा?' तो हमने सचमुच का देसी तेल पिलाया हुआ डंडा दीवार की मुँडेर से ऊपर लहराया। बोले, 'देखते हो यह क्या है? अपनी भैंस को रोको। हमारे खेत को अपना नहीं, हमारा खेत समझो, रोज़-रोज़ का यह टंटा बंद करो।'
पड़ोसी हमारे हाथ में डंडा देखकर कुछ घबराया भी, कुछ चिल्लाया भी। उसने शोर मचाया, 'इसे रोको, इसे रोको, इसके हाथ में डंडा है।'
हमने डंडे को झंडे की तरह ऊँचा किया और पुन: 'ओम शांति-ओम शांति' का पाठ शुरू कर दिया। हमें लगा जैसे शक्ति ही शांति को सार्थक बनाती है।
पड़ोसी शोर मचा ही रहा था कि अख़बारों में यह धाँसू ख़बर छपी, 'भारत ने परमाणु बमों के पाँच सफल धमाके किए...अब वह दुनिया की छटी आणविक शक्ति बन गया।'
हमने यह अख़बार और अपना झंडा एक साथ लहराया और पुन: पुराना जाप शुरू कर दिया, 'ओम शांति-ओम शांति।'