कद नापने के तरीके / सुशील यादव
उसे इंची टेप के साथ लोग हमेशा देखते रहे। पहले वो बढ़ाई-गिरी याने कारपेंटरी का काम किया करता था।
‘गिरी’ आजकल का फैशन नुमा शब्द है, जो अचानक ‘बापू’ के नाम के साथ फिल्मी तरीके से जुड गया है।
“कुछ चुपचाप से करो मगर,हल्ला ज्यादा मचे”, वही‘गांधी-गिरी’ के नाम से चल निकला है, इनदिनों।
‘बापू’ कभी सपने में नहीं सोचे होगे कि वो इक्किसवीं सदी में सादा-‘गिरी’में अव्वल जाने जायेंगे।
‘सादागिरी’ और ‘दादागिरी’ के मिसाल के तौर पर मोहल्ले में दो लोग फेमस हैं। एक तो अच्छन मियाँ , जो जैसा पहले बताया कि, बढाई हुआ करते थे, बाद में मेहनत ज्यादा, आमदनी कम देख दर्जीगिरी अपना बैठे, इंची टेप से मुहब्बत जो ठहरी ,साथ नही छोड़ पाए।
उनका कहना था, आजकल के लडके नए-नऐ फैशन के कपडे सिलवाते रहते हैं, सो काम बारो-महीने मिलता है। धंधा खूब चल जाता है, उनके गले में ‘इंची-टेप’ टाई-बतौर लटकी रहती, हरदम।
अच्छन-मियाँ धंधे के सख्त पाबन्द, सिलाई मशीन को सुबह आठ से रात आठ तक आराम ही नहीं करने देते। उनके कारिंदे, उन्हें ‘दुश्मनो की तबीयत खराबी’ का वास्ता देकर, इतनी मसरूफियत से बाज आने को कहते, मगर उनको काम में किसी का दखल जायज नही लगता।
अच्छन-मियाँ के शेरवानी या सूट पहने बिना कोई भी निकाह या शादी फीकी सी लगती।
धंधे के उसूल के मुताबिक जिसे जिस वक्त का वादा किए होते. उनको उसी मुहूर्त में वे कपडे थमा देते।
अपनी तरफ से उस दिन पूरी कोशिश के बावजूद अच्छन –मियाँ मोहल्ले के सबसे बड़े टपोरी का काम नही दे पाए। ’टपोरी-भाई’ को दोस्त की शादी में शेरवानी पहन के जाना था। चेताया था कि टाइम पे काम होने का। मगर चूक हो गई। कारीगर बीमार हो गए। काम नही हुआ। अच्छन-मियाँ का कालर पकड़ लिया गया।
दादा-गिरी जो उस दिन अच्छन–मियाँ ने देखी, उसी दिन से गले से टेप उतार के रख दी। लोगो ने लाख समझाया मगर टस के मस नही हुए। वे घुलते रहे।
टपोरी की ‘दादागिरी’ के काट ढूढने में उन्होंने मानो रिसर्च ही कर डाला।
एक ही उसूल पर थे, कि ‘कालर का बदला कालर’।
उनसे सूट-शेरवानी की लोग मिन्नत करते मगर वे दूकान पर कभी फटके ही नही। कारिन्दो और बच्चो के हवाले दूकान कर वे मुड कर नही देखे।
अच्छन-मियाँ ने टपोरी के ‘टपोरी-गिरी’ पर ‘अन्ना-गिरी’ की नजर रखना चालु कर दिया।
उसके कारनामो का सुराग लगाने में ज्यादा मशक्कत नही करनी पड़ी। कुछ तो जग-जाहिर थे मसलन किस नजूल जमीन को घेर रखा है,किस ठेके वाले के लिए काम करता है। किस साहब को जुए का हप्ता पहुचाता है वगैरा –वगैरा। कुछ कारनामे छिपे हुए थे ,फिरौती का काम बड़े बाश-नुमा लोगों के कहने पर कर चुका था।
अच्छन-मियाँ छुप-छुप के अर्जी देने लगे। सुराग यूँ पुख्ता देते कि साहबानों को ‘नहीं’ की गुंजाइश नही होती। टपोरी के होश फाख्ता होते रहे।
टपोरी हिल-सा गया।
मोहल्ले-पडौस में खामुशी सी छा जाती जब टपोरी दहाड़ कर जाता कि, देख लेंगे जिस माई के औलाद ने उनको छेडा है।
टपोरी की नींद पुलिस वालो ने उस दिन हराम कर दी जब पूरे मोहल्ले वालों ने उस पर बहु –बेटियों के मुहल्ले में अश्लील गालियाँ देने और लोगों को जान से मारने-धमकाने का इल्जाम लगा के, धरना दे डाला।
वो लोगों के सामने खूब पिटा। पुलिस टपोरी को कालर पकड के खींचते ले गई।
अच्छन–मियाँ घर के अंदर घुसे,किसी खूंटी पर टंगे ‘इंची-टेप’ को बहुत दिनों बाद बहुत सादगी के साथ बाहर निकाल गले से टाई नुमा फिर बाँध लिए।
उन्हें लगा वे टपोरी का ‘कद’ ‘सर से पांव तक’ नाप चुके हैं।