कनोजरि / मेनका मल्लिक
गीता अएनाक सोझाँ ठाढ़ भऽ अपन वक्ष-स्थलक उभार देखि रहल छलि। हम खिड़कीक पर्दासँ अऽढ़ भऽ देखि रहल छलहुँ। ड्रेसिंग टेबुल पर राखल बिन्दीक पात उठौलकि आ अपन कपारमे लऽ जा कऽ साटऽ चाहलकि, मुदा साटलकि नहि। चूड़ीक डिब्बासँ चूड़ी निकालि कऽ देखलकि आ अपन हाथकें एकबेर निहारलकि। सिन्नुरक कीआ हाथमे लऽ कने बेसीए काल धरि निहारैत रहलि। हमरा मोन भेल जे टोकि दी, मुदा ओकर मनःस्थितिकें देखैत किछु नहि कहलहुँ।
एकदिन ओकर माय दुपहरियामे ओकरा लऽ कऽ हमरा ओतऽ आयलि रहैक। ओ काज ताकऽ आयल छलि। ओकर माय हमरा सभटा खेरहा सुनाबऽ लागलि-पनरहममे रहै तँ गीताक बियाह कऽ देने छलि। लड़िका बिजली मिस्त्राीक काज करैत छल। नवसिखुआ छल। एकदिन करेन्ट लागि गेलै। जा-जा लोक देखलक, बचाबऽ दौगल, ताबत ओकर खिस्सा खतम भऽ गेलै। एतेक बात कहैत-कहैत ओ भावुक भऽ गेलि।
हम देखलियै जे गीता एकटक देबाल दिस ताकि रहल छलि। गीताक माय दिस तकलहुँ। ओ बाजलि, "एकरा लए अनलियै। एकर ससुराइर के लोक आर संइखौकी नाम धए देलकै। साल भरि रखलियै। तकर बाद जइ मोम फैक्ट्रीमे हम्मे काम करैत रहियै, ओही जऽ हमरे जाति के एगो लड़िका काम करब करै। ओकरे जर दोबारा एकर बियाह कऽ देलियै। बेटी जाति, की करितियै रहए? छह महिना एही जऽ फैक्ट्रमे काम कैलकै। तकर बाद संगी आर के संग पंजाब चलि गेलै।" फेर गीता दिस संकेत करैत बाजलि, "ई मना कैलकै, मुदा मानलकै नइं। फेर छबे महिना होलै कि काम पर सऽ घुरब करैत रहै, कि।" आगाँ बाजि नहि सकलि ओ.
आँचरसँ अपन नोर पोछैत फेर बाजऽ लागलि, "ससुरा में एकर तेहन ने दुर्दसा कए देलकै जे। बुझथिन जे बैलाइए देलकै। आठ महिना के पेट रहै। लए आनलियै। एक महिना बाद बेटी होलै। जनमलै तऽ ठीके रहै, खूब सेवा कैलियै छौंड़ी के. बाप के निसानी रहै। एकदिन हकमऽ लगलै। डाक्दर सऽ देखैलियै। इहाँ के सभे डाक्दर बोललै जे पटना लए जाहो। पटना ओहिना नहि ने होइ छै। एही जऽ हेमोपेथी बला सुनिल डाक्दर सऽ देखाएब करियै आ भगमान के नाम लेब करियै। मुदा, बँचलै नइं छौंड़ी। छबे महिना बाद उड़ि गेलै।" कने थम्हैत फेर बाजलि, "भने मरि गेलै। रहितै तऽ..."
हम देखलहुँ। गीता नोर पोछि रहलि छलि।
ई सभटा खेरहा सुनलाक बाद हम गीताकंे राखबाक मोन बना लेलहुँ। हमरो काज करऽवालीक खगता छल। रंग उड़ल पुरान नूआ आ उज्जर सिउंथमे गीता दयनीय लागि रहलि छलि। हम कहलियै, "परसूसँ काज करऽ आबि जइहें।"
तेसर दिन भोरे-भोर गीता गेट ढकढ़कौलकि। हम गेट खोललहुँ। गीताक चेहराक भाव हमरा दोसरे रंगक लागल। पुछलियै, "की बात? चेहरा उड़ल लगै छह।"
ओसारा पर अबैत बाजलि, "होतै की? झटकल आएब करैत रहियै, पोखरि भीरा दू गो मनसा ठाढ़ रहै। एगो हमर हाथ पकड़ि अपना दिस घिचए चाहलकै। तखनिए हम्मे ओकरा जोर सऽ ठेल देलियै। ऊ धरफरैलै आ खसि गेलै। हम भागली।" बजैत गीता हँसऽ लागलि।
हम पुछलहुँ, "साँचे?"
"तऽ भोरे-भोर हम्मे झूठ बोलबनि।"
"एत्ते भोरे आबऽ के कौन खगता? कने दिन उठितै, तखन अबितह।"
"माइ बोललै जे भैया सबेरे जाइ छथिन टरेन पकड़ऽ। जाहीं सबेरे, तइं अइलियै।"
"भने ठेलि देलहो।" हम बजलहुँ।
हमरा गीताक प्रति स्नेह बढ़ि गेल। ई बात हम अपन पतिकें सेहो कहलियनि। ओहो गीताक प्रशंसा कयलनि। बजलाह, "जँ ई बात साँच छैक, तँ गीताक प्रतिकार नीक बात। ओना ओकरा कहि दियौ जे ओतेक भोरे नहि आबय। नीक जकाँ फड़िच्छ भऽ जाइक, तखन आबय।"
गीता अबैत रहलि, समय बीतैत रहल आ हमरो आराम भेटैत रहल।
एहि बीच गीता एकटा आर घरमे काज धऽ लेलक।
हमर पुत्रक बियाह हेतु घटक आ कन्यागत सभक आयब-जायब शुरुह भऽ गेल छल। भोरे-साँझे पहुँचि जाइत छलाह। एक तरहें फिरीसान भऽ होइत रही। दिन-दिनक चाह-जलखै आ समय। अंततः ओकर बियाह निश्चय कयलहुँ।
एकदिन बरण्डा पर बैसल चाह पीबैत रही कि गीता पुछलकि, "भौजी, नुनू के बियाह फाइनल होलै?"
"हँ, मुदा डेट तय नहि भेलैए."
"जितेनदर भैया के बेटी के सेहो बरतू लागब करै छै। अपने में बोलब करथिन जे अइ दा होइ जेतै फाइनल।"
"नीक बात।" हम बजलहुँ, "से कहि दैत छियह। बियाहक समय तोरा एतहि रहऽ पड़तह। जितेन्द्र जीक ओहिठामसँ छुट्टी लेबऽ पड़तह। रामबालककें सेहो कहि देलियैए. बहरिया काज ओकरे पर रहतै।"
"से डेट फाइनल होतऽ तब ने।" गीता बाजलि, "जितेनदर भैया के कहबै जे दस दिन के आगाँ-पाछाँ फाइनल करए."
बियाहक दिन तय भऽ गेल आ हमरा सभक समय घड़ीक सुइया जकाँ नाचऽ लागल। काज सभक लिस्ट बनाबऽमे आ आन-आन काजमे व्यस्त भऽ गेलहुँ। पतिदेव ऑफिससँ अयलाक बाद मात्रा काजक समीक्षा करथि। एही क्रममे एक दिन रामबालककंे कहलियैक जे उलावसँ गहूम आनि कऽ धो लिअय, सुखा लिअय। गीताकें कहलियैक जे कुम्हैन आ डोमिनकें बजा कऽ नेने आबय।
एकदिन कपड़ा लत्ता सभक लिस्ट बनबैत रही। गीता सेहो लगेमे बैसलि छलि। हमरा मुँहसँ बहरा गेल, "गीता! तोरा कौन रंग पसिन छह? जे पसिन हेतह, ताही रंगक नूआ तोरा लेल कीनब।"
गीता बाजलि, "कोनो रंग नइं भौजी."
"धुर बताहि। कोनो एकटा रंग तँ हेबे करतै ने। उजरा किएक पहिरबह?" हम बजलहुँ।
गीता बाजलि, "हमरा जीवनमे कोनो रंग कहाँ छिकै भौजी?"
"एना नहि बाजी. तोहर दुख हम बुझैत छी। एहेन-एहेन दुख एतबे बयसमे भेलह तोरा। मुदा..." हम बजलहुँ, "मुदा, आब दुखकें घोंटह आ प्रसन्न रहबाक प्रयास करह।"
"से हिनकर सिनेह सऽ हम्मे..." गीता आगाँ नहि बाजि सकलि।
"बजलह नहि। कौन रंग?"
कनेकाल चुप रहि गीता बाजलि, "सरिसो फूल सन पीरा रंग।"
"वाह।" हमरा प्रसन्नता भेल। फेर पुछलहुँ, "यैह रंग किएक?"
गीता नीचाँ जमीन दिस तकैत बाजलि, "हमर पहिलुक्का के ई रंग पसिन रहै। बोलब करै जे।" गीताक गारा बाझि गेलैक।
कने थम्हैत गीता फेर बाजलि, "एगो बात बोलिअऽ भौजी?"
"बाजह।"
"हम्मे पीरा साड़ी केना पिन्हबै? लोक आर की बोलतै?"
"जेना पहिरै छै, तेना पहिरबह। बाजऽ दहक लोक सभकें। केओ किछु कहतह तँ हमरासँ गप करऽ कहियहक।"
कने थम्हैत गीता फेर बाजलि, "भौजी! हमरा साड़ी नहि देबहो तऽ की होतै? साड़ी के बदला कोनो निसानिए दए दहो।"
हम कहलियै, "नूआ तँ देबे करबह। निशानियो देबह, मुदा एखनि नहि।"
हम सोचलहुँ, एखनि नवे-नवे काज पकड़ने अछि, आर बेसी दिन होयतै तँ।
बियाहक दिन सरिसोक फूूल सनक रंग बला नूआ पहिरने गीता दिव्य लागि रहल छलि। ओकरा चेहरा पर एकटा संकोचक भाव सेहो देखने रही हम। घरक काते-कोने रहऽ चाहैत छलि। हम ओकर स्थितिकें बुझलहुँं। घरमे सभकें कहने रहियैक जे गीताकें ई नूआ पहिरने देखि कोनो तेहन सन बात नहि बाजय। हम गीताकें कहलियै, "गीता! छत पर जाह। धोती जे रंगल गेल रहै, से सूखि गेल होयतै। नेने आबह।"
गीता रंगल धोती लऽ कऽ आयलि। धोती कोंचिअबैत हमरा कहलकि, "भौजी, एगो बात कहिअऽ।"
"की?"
"छत पर लोग आर नइं रहितै तऽ हम्मे धोती लऽ अनितियै।"
"आ, एखनि आनलह तँ की भऽ गेलै?"
"रामबालक छते पर रहथिन।" गीता बाजलि, "ऊ हमरा देख कऽ मुँह दाबि कऽ हँसब करथिन।"
"चुपचाप अपन काज करह। एहि सभ पर ध्यान किएक दैत छहक।"
"एगो बात पुछियऽ।" गीता बाजलि, "रामबालक धोती नइं पिन्हने छथिन। हुनको धोती देने हेबहो ने। आ हुनका कनियानि के सेहो नूआ भेटल होतै?"
"रामबालक के कनिया नहि छै।" हम बजलहुँ, "ओ बरियाती जाइ काल धोती पहिरत।"
तखनहिं हमरा केओ बजाबऽ आयल आ हम गीताकें ई कहैत जे घरक बाकी काज सभ देखैत रहय, दोसर कोठरीमे चलि गेलहुँ।
बियाह-दान सम्पन्न भेल। मुदा ई की? किछुए दिनक बाद गीता काज करऽ आयब बन्न कऽ देलक। हमरा चिन्ता भेल। ओकर मायकें फोन कयलियै। ओकर मोबाइल स्वीच ऑफ रहैक। मोनमे कतोक प्रकारक शंका उपजऽ लागल। हम ओकरा घर दिस गेलहुँ। बाटमे धोबिन भेटि गेल। बाजलि, "अपने इम्हर?"
"हँ, तीन-चारि दिनसँ गीता काज करऽ नहि आबि रहल अछि। ओकर मायक मोबाइल सेहो स्वीच ऑफ छै। तें सोचलहुँ जे देखि अबियै जे की बात छै।" हम बजलहुँ।
"एन्ने तऽ दोसरे-दासरे हल्ला होब करै छै।" धोबिन बाजलि, "सुनलियै हन जे भैबा बड़ मारि मारलकै हन।"
हम डेग नमहर कयलहुँ। ओकर आँगनक लग पहुँचितहिं ओकर माय देखि लेलकि। भीतरसँ मचिया आनि कऽ आँगनेमे धऽ देलक। हम बैसि गेलहुँ। गीता ओसारा पर राखल खरौआ जौड़क खाट पर बैसल छलि। हमरा देखितहिं कानऽ लागलि। सौंसे देहमे चोटक चेन्ह छलैक।
हम ओकर मायसँ पुछलहुँ, "की भेलैए एकरा?"
"होतै की? भाइ मारलकै हन। कूटि देलकै हन।" गीताक माय बाजलि, "ऊ तऽ बुझथिन जे हम्मे घर में रहियै, नहि तऽ जिबए नइं दितै।"
"मुदा, मारलकै किएक?"
"ओकरा गितिया के बारे में कोइ उन्टा-सीधा कहि देलकै। टोला-मोहल्ला में सेहो गलते बात छिड़िया गेलै। छौंड़ा के लोक आर कहब करै जे बहिनियाँ उराँत होइ रहलौ हन।" गीताक माय बाजलि, "आ तै ले छौंड़बा कूटि देलकै।" बजैत-बजैत गीताक माय कानऽ लागलि, "कैसन भाग लए कऽ ई छौंड़ी अयलै हन, से नइं जानी। आब इहे कहथुन जे हिनका हियाँ एतना दिन सऽ काम करब करै छै। कहियो एकर लच्छन खराप देखलखिन हन? ई छौंड़ी चोरनी-छिनारि सन बुझयलनि हन हिनका?"
"चुप रहह। की बजै छह?" हम बजलहुँ, "गीताक बारेमे एहन बात हम पतिआइए ने सकै छी।"
हम गीता दिस तकलहुँ। ओ एकटक देबाल दिस ताकि रहल छलि। हमरा मोने अछि। एकबेर हमर कानक झुमका कतहु घरेमे खसि पड़ल छल। बहुत तकलहुँ, नहि भेटल। दू दिनक बात गीता ताकि कऽ देलकि। घर बढ़ारऽ काल केबाड़क दोगमे भेटल रहै ओकरा।
हम गीतासँ पुछलहुँ, "बताबह गीता। असल बात की छै?"
नहुएँसँ गीता बाजलि, "हम्मे हियाँ रहै छियै तकर किराया लै छै हमर भाइ. पछिला तीन महिना सँ हम्मे किराया देब बन्न कए देलियै। घरके खर्ची दैते छियै तऽ किराया कथी लेऽ देबै। रूपा जे नइं मिललै, तकरे खाहिंस रहै। बात दोसर उठा देलकै। हिनका एकदा कहने रहियनि ने जे पोखरी पर हमरा जे।"
गीता चुप भऽ गेलि। हम बजलहुँ, "हँ, से की? बाजह ने।"
"आइ काल्हि उहे आर हमर भाइ के नया जौराती होलै हन। उहे आर उन्टा-सीधा बोलि कऽ चढ़ा देलकै आ..."
हम बजलहुँ, "चिन्ता नहि करह। एहन-एहन स्थिति तँ तोरा संग भऽ सकैत छह। अपने मजगूत रहऽ पड़तह।" ओकर मायक हाथमे एक हजार टाका दैत हम कहलियैक, "नीक जकाँ एकर दबाइ-बीरो करा दहक। ठीक भऽ जेतह तऽ पठा दियहक। चिन्ता नहि करह।"
बाट भरि हम गीताक बारेमे सोचैत रहलहुँ। एक मोन कहलक जे की हर्ज, ओकरा अपने ओहिठाम राखि ली। हमहूँ तँ दुइए गोटें छी। दोसर मोन कहलक जे हमर पति एकर अनुमति नहि देताह। हम बूझै छी जे ओ हमरा सन भावुक नहि छथि। आइधरि भावुकतामे कोनो निर्णय नहि लेलनि अछि।
एक सप्ताहक बाद गीता काज करऽ आयलि। हम हालचाल पुछलियैक। ओ बाजलि, "हँ, ठीके छिकियै।"
गीता बाढ़नि उठा कऽ घर बहारऽ लागलि। गीता शान्त छलि। चुपचाप। ओहिदिनक घटनासँ उबरि नहि सकलि छलि शायद।
काज समाप्त भेलाक बाद हम गीताकें बजौलहुँ। कहलियैक "गीता! तोरासँ एकटा गप करबाक अछि।"
ओ डेराइत बाजलि, "बोलहो ने भौजी. कौन बात?"
"हम चाहैत छी जे तोरा बियाह कऽ लेबाक चाही।" हम बजलहुँ, "तों बियाह करबह?"
गीता अवाक्।
"साँचे कहै छियह। हँसी-ठट्ठा नहि बुझह।"
कने काल बाद गीता बाजलि, "हमरा सऽ के करतै बियाह? हमर नाम तऽ सइंखौकी रखने छै टोला-मोहल्ला के लोक आर."
"लोकक बात छोड़ह। तों अपन बात कहह।"
गीता बाजलि, "जनपिट्टा के रूपा नहि भेटलै, तइ लेऽ एते खेला-बेला पसारलकै। अखनो घर सऽ भगबऽ लेल किसिम-किसिम के चालि चलब करै छै। ऊ तऽ माइ छै, जे..."
"हमरा मोनमे जे बात आयल, से कहलियह। विचारि लैह। मइयोसँ पूछि लैह।"
गीताक आँखिसँ ढबढ़ब नोर खसऽ लगलैक। ओ अपन नूआक कोरसँ नोर पोछैत बहरा गेलि।
रातिमे हम एहि बारेमे अपन पतिसँ पुछलहुँ। ओ एहि पर कोनो विशेष टिप्पणी नहि कयलनि।
दोसर दिन गीता काज-धंधा पूरा कयलकि, तँ हम ओकरा चाह बनाबऽ कहलियैक। ओ चाह बनौलकि। चाह पीबैत हम पुछलियैक, "काल्हिक बात के जवाब नहि देलह।"
ओ बाजलि, "हम्मे की कहियऽ भौजी? अइ दुनिया में दुइए गो लोक छिकै जे हमरा लेल नीक सोचब करै छै। एगो हमर माइ आ दोसर तोंए."
गीता बिनु किछु कहने चलि गेलि।
मुदा हम फेर अगिला दिन पुछलियैक, "तों जवाब नहि देलह गीता।"
ओ लजाइत बाजलि, "पहिने बतबहो जे ऊ के छिकै जे जानि-बूझि कऽ हमरा जरे बियाह करतै?"
"से सभ हमरा पर छोड़ह।" हम बजलहुँ, "ओकरा सभ बात बुझल छैक। हम ओकरासँ गप कयने छी। ओ मोनसँ तैयार अछि।"
"के?"
"रामबालक।" हम बजलहुँ, "ओकरो पत्नी नहि छैक। एसगरे रहैए. दुनू गोटे कमइहह, खइहह आ संग रहिहह।"
गीता चुप।
हम पुछलहुँ, "रामबालक पसिन नहि छह?"
"नइं, से बात नइं। आदमी तऽ खराप नइं छिकथिन।" मन्द-मन्द मुस्किआइत गीता बाजलि, "मिलनसार लोक छिकथिन-मनलग्गू। बियाह समय में हुनका सऽ गप आर होलै, तइ सऽ कहलियह भौजी." कने थम्हैत फेर बाजलि, "जाइ छियऽ भौजी. गेट लगा लहो।"
गीता पोछा लगा रहलि छलि आ हम मोबाइल पर गप कऽ रहल छलहुँ। केओ गेट ढकढ़कौलक। हम संकेतसँ गीताकें गेट खोलऽ कहलियैक। ओ गेलि आ चोट्टे घुरि आयलि। कहलकि, "भौजी, तोहीं जाहो। हमरा..."
हम मोबाइलक गप सठबैत पुछलियैक, "की तोरा? के छैक?"
गीता लजाइत बाजलि, "वैह छिकथिन-रामबालक।"
गीता अपन नूआक कोर मुँह पर राखि लेने छलि। तैयो, हम देखिये लेलहुँ जे ओकर दुनू गालक ढिबकी कने उठि गेल रहैक।