कपूर खानदान में नदी की तरह बहती रहीं ‘कृष्णा’ / जयप्रकाश चौकसे

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कपूर खानदान में नदी की तरह बहती रहीं ‘कृष्णा’
प्रकाशन तिथि : 01 जनवरी 2022


01 जनवरी 1930 को श्रीमती कृष्णा कपूर का जन्म एमपी की तत्कालीन रीवा रियासत में हुआ। पिता स्टेट पुलिस के आला अफसर थे। उन्हें पुत्री कृष्णा, पुत्र प्रेमनाथ व राजेंद्रनाथ हुए। कुछ समय पश्चात उन्होंने दूसरा विवाह किया। पुत्र नरेंद्रनाथ का जन्म हुआ, जिसे नरेंद्र बेदी की फिल्म ‘खोटे सिक्के’ में अभिनय का अवसर मिला। ‘खोटे सिक्के’ ‘शोले’ का कम बजट में बना चलताऊ संस्करण थी। सभी फिल्मों की प्रेरणा अकीरा कुरोसावा की ‘सेवन समुराई’ रही है। प्रेम चोपड़ा की पत्नी भी कृष्णा जी की सौतेली बहन हैं। बहरहाल रीवा जैसे कस्बे में जन्मी कृष्णा कपूर ने स्वयं को इतना विकसित किया कि प्रतिभाशाली लोगों के परिवार की वह मेरूदंड बनीं। परिवार में किसी भी सदस्य में अनबन होने पर कृष्णा जी ही संबंधों में सुधार लातीं। गीता बाली की मृत्यु के बाद शम्मी कपूर टूट गए और शराबनोशी में सुख का छलावा खोजते रहे। तब श्रीमती कृष्णा कपूर ने ही उनका विवाह नीला देवी से कराया जो सामंतवादी परिवार से थीं। नीला देवी ने शम्मी कपूर को स्थिरता दी और उनके जीवन में सार्थकता लाईं। एक बार शशि कपूर भी राह भटक गए थे। कृष्णा जी ने शशि और जेनिफर के संबंध सुधारे। कृष्णा जी की जेष्ठ पुत्री रितु नंदा अपनी मां का सबसे बड़ा संबल रही। राज कपूर से आज्ञा लेकर ऋषि कपूर अपने विवाह का निमंत्रण पत्र सुनील दत्त और नरगिस के घर ले गए। ऋषि कपूर के विवाह के अवसर पर नरगिस दशकों बाद आर के स्टूडियो आईं। उस रात श्रीमती कृष्णा कपूर नरगिस से बोलीं कि उन्हें मिथ्या अपराधबोध नहीं पालना चाहिए। उनका पति तो इतना प्रेमल स्वभाव के हैं कि नरगिस नहीं होती तो कोई और होता। राज कपूर आदतन आशिक मिजाज रहे।

बहरहाल श्रीमती कृष्णा कपूर के हास्य का माद्दा सबसे अधिक था। एक बार एक माइनर शल्य चिकित्सा के लिए उन्हें ब्रीच कैंडी अस्पताल ले जाया जा रहा था। ऑपरेशन थिएटर पहुंचने के बाद एक गलियारे से गुजरना पड़ा था। उन्होंने खाकसार से कहा था कि श्रीमती कृष्णा कपूर के ऑटोग्राफ ले लें क्योंकि वे थिएटर जा रही हैं, मानो अभिनय करने जा रही हों।

एक बार अमेरिका प्रवास में सितारे डैनी ने राज कपूर और श्रीमती कृष्णा कपूर को डिनर के लिए आमंत्रित किया। डैनी स्वयं स्वादिष्ट भोजन बनाते थे। उन्होंने कोई सेवक नहीं रखा था। बहरहाल उस रात करवा चौथ थी। श्रीमती कृष्णा कपूर चांद के दर्शन के बाद ही भोजन करती थीं। राज कपूर बहुमंजिला इमारतों के जंगल में कृष्णा कपूर को चांद दर्शन के लिए ले गए। इस प्रक्रिया में वे डैनी के घर 2 घंटा लेट पहुंचे। सारी बात समझने के बाद डैनी ने दोबारा खाना पकाया। दरअसल श्रीमती कृष्णा कपूर को विदेश में भारतीय संस्कार के दूतावास का उच्चतम अधिकारी होना चाहिए था। राज कपूर इस बात से खिन्न थे कि श्रीमती कृष्णा कपूर अपनी दाल में एक चम्मच शुद्ध घी का सेवन प्रतिदिन करती थीं। जुबिन मेहता राज कपूर के घर सात्विक भोजन के लिए आमंत्रित थे। मिसेज जुबिन ने कृष्णा जी के सलवार सूट की प्रशंसा की। श्रीमती कृष्णा कपूर ने आनन-फानन में दर्जी बुलाया और मेहमानों के विदा लेते समय एक सलवार सूट तैयार था। राज कपूर ताउम्र किराए के कवेलू वाले पुराने मकान में रहे। श्रीमती कृष्णा कपूर की जिद के कारण पुराने मकान मालिक से निवेदन किया गया कि वह मकान बेच दे। राज कपूर उस मकान में 1946 से किराएदार थे। मकान मालिक ने 1946 का भाव ही लिया। उसका कहना था कि उनके लिए गर्व की बात रही कि राज कपूर उनके किराएदार थे।

श्रीमती कृष्णा कपूर की महिमा कुछ ऐसी थी कि उन्हें देखकर मन में भक्ति भाव भर जाता था। एक बार शिर्डी के पुजारी ने मंदिर के द्वार खोले। उन्हें आश्चर्य हुआ कि श्रीमती कृष्णा बाबा की मूर्ति के चरणों में सिर रखकर सो रही थीं। यह घटना “मेरा नाम जोकर’ की असफलता के समय की है। श्रीमती कृष्णा किसी ना किसी के हाथ 100 प्रति माह शिर्डी भेजती रहीं। खाकसार भी उनके नाम पर 100 रुपए मंदिर में देने गया था। पुजारी को जैसे ही मालूम होता कि व्यक्ति श्रीमती कृष्णा कपूर ने भेजा है। तुरंत ही दर्शन कराए जाते थे। श्रीमती कृष्णा कपूर की निष्ठा और सादगी सबको प्रभावित करती थी। राज कपूर की सृजन शक्ति की मेरुदंड रहीं श्रीमती कृष्णा कपूर ने 1 अक्टूबर 2018 को देह त्यागी। श्रीमती कृष्णा कपूर तो नदी की भांति बहती रहीं और नदी पर कोई नरगिस घाट बन गया तो कोई वैजयंती माला घाट बन गया। उनके किसी घाट पर काई नहीं जमी। आरके स्टूडियो बेचा गया, लोनी स्थित फार्म हाउस भी बेचा गया परंतु श्रीमती कृष्णा कपूर का बंगला कायम है। जिसकी साफ सफाई सेवक करते हैं। कभी-कभी रणधीर कपूर वहां जाते हैं भावों की जुगाली के लिए। विगत 3 वर्षों से वे बांद्रा में रह रहे हैं।