कपूर परिवार में तीसरा दादा फाल्के पुरस्कार / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :24 मार्च 2015
18 मार्च 1938 को जन्मे शशि कपूर को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाज़ा जाएगा। कपूर परिवार में यह तीसरा दादा फाल्के पुरस्कार है। सबसे पहले पृथ्वीराज कपूर को पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा हुई परंतु पुरस्कार ग्रहण करने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। इसलिए राज कपूर ने अपने पिता का पुरस्कार स्वीकार किया। 2 मई 1988 को राज कपूर फाल्के पुरस्कार लेने के लिए गए और उनके नाम की घोषणा होने पर वे उठकर खड़े हुए परंतु उन्हें सांस लेने में कष्ट हो रहा था। जब राष्ट्रपति ने यह देखा तो सारा प्रोटोकॉल छोड़कर वे स्वयं चलकर राज कपूर के पास गए। उन्होंने राज कपूर के गले में पुरस्कार की माला पहनाई। तब तक राज कपूर होश में थे, लेकिन उसके ठीक बाद अचेत होकर गिर गए। राष्ट्रपति के लिए आरक्षित एंबुलेंस में उन्हें अस्पताल ले जाया गया। जहां एक माह तक वे संघर्ष करते रहे और 2 जून को उनकी मृत्यु हो गई। आज शशि अस्वस्थ हैं। उन्हें किडनी के रोग के अलावा अन्य बीमारियां भी हैं। एक वर्ष से वे लगभग 10 दिन प्रतिमाह अस्पताल में भर्ती किए जाते रहे हैं। जिस समय उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्राप्त होने की सूचना मिली होगी तब उनकी स्मृति में माता-पिता और राज कपूर की झलक दिखी होगी और वे यादों के गलियारे में चहलकदमी कर रहे होंगे।
वे पृथ्वीराज कपूर की संस्था पृथ्वी थिएटर से जुड़े थे और उन्हीं दिनों लंदन से स्कूलों में शेक्सपीयर के नाटक दिखाने वाली कंपनी भारत आई। कंपनी के मालिक जॉफ्रे केंडल पृथ्वीराज कपूर के घनिष्ठ मित्र थे। उन्हें भारत दौरे के लिए एक हिंदुस्तानी युवक की मदद चाहिए थी। इस तरह शशि कपूर उनके साथ अनेक स्कूलों में गए। उन्होंने कंपनी के नाटकों में भूमिकाएं भी कीं। जॉफ्रे केंडल की पुत्री जेनिफर केंडल से उन्हें प्रेम हो गया। जेनिफर उम्र में उनसे तीन साल बड़ी थीं। दोनों परिवारों की सहमति से उनका विवाह हुआ। इसके बाद अनेक वर्षों तक शशि कपूर फिल्मों में अभिनय के लिए प्रयास करते रहे। जेम्स आयवरी और इस्माइल मर्चेंट की 'हाउस होल्डर' में उन्हें पहला अवसर मिला परंतु वे सितारा बने 'जब जब फूल खिले' से। इसी फिल्म का रीमेक आमिर खान की फिल्म 'राजा हिंदुस्तानी' थी।
शशि कपूर एक दौर में इतने सफल सितारा हो गए कि वे एक दिन में तीन-तीन फिल्मों की शूटिंग करते थे। उन दिनों राज कपूर ने कहा था कि शशि कपूर अब टैक्सी हो गया है। सच्चाई तो यह है कि शशि कपूर फिल्मों में अभिनय से कमाए हुए पैसे से सार्थक फिल्में बनाना चाहते थे। उन्होंने श्याम बेनेगल के साथ 'जुनून', गोविंद निहलानी के साथ 'विजेता', अपर्णा सेन के साथ '36 चौरंगी लेन' और गिरीश कर्नाड के साथ 'उत्सव' जैसी फिल्में बनाई।
जेनिफर केंडल कपूर अंग्रेज होते हुए भी कभी शराब नहीं पीती थीं, मांसाहार नहीं करती थीं। उनके जीवन-मूल्य उच्च श्रेणी के थे। मसलन, शशि कपूर के जन्मदिन पर वे पृथ्वीराज कपूर और उनकी पत्नी को भेंट देती थीं यह कहकर कि संस्कारवान पुत्र को जन्म देने के िए धन्यवाद। जेनिफर ने ही शशि कपूर को प्रेरणा दी और जुहू में पृथ्वी थिएटर की स्थापना हुई। इसी थिएटर के कारण हिंदुस्तानी रंगमंच पर अनेक अच्छे नाटक खेले जा रहे हैं। शशि और जेनिफर ने मिलकर पृथ्वी थिएटर को ऐसी संस्था बना दिया, जिसने अनेक प्रतिभाशाली लोगों को अवसर दिए हैं। उनकी बेटी संजना कपूर ने दो दशक तक पृथ्वी थिएटर चलाया और अभी कुणाल कपूर चला रहे हैं।
शशि कपूर ने अपनी सार्थक फिल्मों में उठाए घाटे को पूरा करने के लिए अमिताभ बच्चन के साथ मसाला फिल्म 'अजूबा' बनाई। इस फिल्म की असफलता ने उन्हें गहरे आर्थिक संकट में डाल दिया। इसके पूर्व 'उत्सव' के प्रदर्शन के समय कैंसर से जेनिफर की मौत हो गई। जेनिफर की अंतिम इच्छा के अनुरूप लंदन में हिंदू रीति से उनका दाह संस्कार किया गया। सच तो यह है कि जेनिफर की मृत्यु के बाद शशि कपूर के जीवन में शून्य आ गया। उन्होंने अपनी संपत्ति को बेचकर सारे कर्ज चुका दिए हैं और आज वे पृथ्वी थिएटर के सामने बने अपने मकान में रहते हैं। कभी-कभी शाम को व्हील चेयर पर बैठाकर उन्हें पृथ्वी थिएटर लाया जाता है। जो राज कपूर के लिए आरके स्टूडियो का स्थान था वही स्थान शशि कपूर के लिए पृथ्वी थिएटर का है।
आज कपूर परिवार को मिले इस तीसरे फाल्के सम्मान के लिए हमें उनके पिता पृथ्वीराज कपूर को नमन करना चाहिए, जिन्होंने अपने परिवार को ऊंचे संस्कार दिए और विगत 85 वर्षों से कपूर परिवार की चार पीढ़ियां मनोरंजन क्षेत्र में सक्रिय हैं। अब इस वर्ष दादा फाल्के पुरस्कार लेने शशि कपूर को व्हील चेयर पर ले जाया जाएगा। तब राष्ट्रपति भवन में बैठकर उनके मन में अपने पिता और बड़े भाई की यादें जाग उठेंगी। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वे पुरस्कार ग्रहणकर सकुशल मुंबई लौट आएं।