कप्तान आर. बाल्की की वापसी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :26 जून 2015
आर. बाल्की की नई फिल्म में अर्जुन कपूर और करीना कपूर काम कर रहे हैं और खबर है कि आर.बाल्की इस बार एक रोमांटिक कॉमेडी बना रहे हैं। आर.बाल्की की पहली फिल्म 'चीनी कम' में अमिताभ बच्चन और तब्बू ने अभिनय किया था। यह फिल्म अत्यंत मनोरंजक थी। उनकी दूसरी फिल्म 'पा' अभिनव प्रयोग था और अमिताभ बच्चन के विलक्षण अभिनय के कारण यह यादगार फिल्म बन गई थी। इन दोनों फिल्मों में उनके नायक अमिताभ बच्चन थे और आर.बाल्की का संपूर्ण नियंत्रण था। उनकी तीसरी फिल्म 'शमिताभ' में अमिताभ बच्चन और धानुष ने अभिनय किया था। धानुष दक्षिण के लोक्प्रिय सितारे हैं। आनंद एल. राय की 'रांझणा' में उन्होंने भावना की तीव्रता प्रदर्शित की थी और उन्हें अखिल भारतीय लोकप्रियता प्राप्त हुई। इनके साथ फिल्म में सारिका व कमल हासन की छोटी बेटी ने अपनी पहली ही फिल्म में बहुत प्रभावित किया था।
आर.बाल्की ने धानुष को छोटे कस्बे का ईश्वरीय कमतरी का शिकार गूंगा बनाया था और बचपन से उसकी महत्वाकांक्षा सितारा बनने की थी। मजेदार घटनाक्रम उसे सहायक निर्देशिका से मिलाता है, जो टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर धानुष का चेहरा और बेवड़े अमिताभ की आवाज का मिलाप करके एक अजूबे की रचना करती है। फिल्म में क्रिश्चियन कब्रस्तान में रहने वाला अमिताभ असफल कलाकार रहा है और उसकी आवाज के कारण उसे अस्वीकृत किया गया था। यह घटना अमिताभ के यथार्थ जीवन से प्रेरित थी कि उन्हें आकाशवाणी में उद्घोषक के रूप अपनी आवाज के कारण कभी अस्वीकृत किया गया था जबकि बतौर एक्टर उनकी आवाज के अनगिनत दीवाने हैं। वह शराबी और कुंठित जीवन जी रहा है परंतु धानुष की आवाज बनकर अभूतपूर्व सफलता मिलती है। हालांकि, यह गुमनामी में करना पड़ता है। सफलता मिलते ही आवाज और चेहरे के बीच अहंकार का द्वंद्व प्रारंभ होता है। इसका एक अर्थ यह भी है कि आम जिंदगी में मनुष्य का चेहरे और वाणी में अंतर होता है। मन में कुछ होता है और बोलते हम कुछ और हैं तथा इस द्वंद्व में असीमित मानवीय ऊर्जा का नाश होता है। सामाजिक परिस्थितियां अवाम को अभिनय के लिए मजबूर करती है। हमारी समाज संरचना कुछ ऐसी है कि ठकुरसुहाती मान्यता प्राप्त है। चमचागिरी राष्ट्रीय शगल है। हमने विचारों में अंतर को मित्रों और दुश्मनों के खांचों में क्यों बांट रखा है?
बहरहाल, एक खोजी पत्रकार सबूत इकट्ठे कर रहा है कि चेहरा और आवाज अलग-अलग व्यक्तियों की है। एक में अमिताभ कहता है कि भरी सभा में पत्रकार के कुछ कहने के पहले हम सच बता दें और धानुष की ईश्वरीय कमतरी और संघर्ष को लोग सहज रूप से स्वीकार करेंगे परंतु इस विचार को अंजाम देने के पहले कार दुर्घटना में धानुष की मृत्यु, एक प्यारे पात्र की मृत्यु ने फिल्म को बॉक्स आफिस पर असफल कर दिया। फिल्म में रार्बट डी नीरो के पोस्टर से अमिताभ की बातचीत और एक कब्र से लंबा वार्तालाप अवाम को उबाऊ लगा। आर.बाल्की एक जीनियस हैं और मैं उनका उतना ही बड़ा प्रशंसक हूं, जितने वे बच्चन साहब के परंतु मुझे लगता है कि 'चीनी कम' और 'पा' उन्होंने 'कैप्टन ऑफ शिप' की तरह रची परंतु 'शमिताभ' उन्होंने अमिताभ बच्चन के प्रशंसक रूप में गढ़ी और शायद इसी कारण फिल्म का संतुलन डगमगा गया। बहरहाल अब वे अर्जुन कपूर और करीना के साथ फिल्म बना रहे हैं और दोनों ही कलाकार उनका सम्मान करते है, अत: 'कप्तान' की वापसी अवश्यंभावी है। दिलीप कुमार ने अपने कॅरिअर के पहले पंद्रह वर्ष अमिया चक्रवर्ती, बिमल राय, रमेश सहगल और मेहबूब खान जैसे निर्देशको के साथ काम किया, जिनका वे सम्मान करते थे, अत: वे फिल्म दर फिल्म मंजते चले गए परंतु बाद में 'दिल दिया, दर्द लिया' गोपी इत्यादि फिल्म के निर्देशकों से वे बड़े सितारे थे, तब तक वे निर्देशक के निर्देशक बन चुके थे और इस दौर में उनके अभिनय में कोई सुर्खाब के पर नहीं लगे। फिल्म निर्देशक का माध्यम है और जब तक वह कैप्टन ऑफ शिप है उसकी यात्रा बिना विघ्न संपन्न होती है। जब दो लोग हुक्म चलाते हैं, वह टाइटैनिक की तरह दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है।