कबूतर की फड़फड़ाहट / मनोज श्रीवास्तव
...वेटर, वेटर, वेटर...अरे, ये लोग मेरा ठीक-ठीक नाम भी नहीं ले सकते? सब के सब, वही रोज वाले तो हैं। मैं इनसे कई बार कह चुका हूँ कि मेरा नाम वेटर नंबर नाइन नहीं है। भला, यह भी कोई नाम है। अपने मेनू के नाम तो लोग भूलते नहीं--कटलेट, पिज़्ज़ा, बर्गर, आमलेट, फ़्राई फ़िश वगैरह, वगैरह। पर, 'पीटर' जैसा पिद्दी-सा नाम इन्हें नहीं याद रहता। हाँ-हाँ, सब याद रहता है; लेकिन, अपना अफ़सराना रोब तो ये तभी जमा पाएंगे, जब यह कहकर पुकारेंगे कि--'अबे, वेटर नंबर नाइन, इधर आ'...
पीटर का चेहरा सबेरे-सबेरे बुरी तरह तमतमाया हुआ है। उसका मूड हो रहा है कि वह बाहर जाकर एक और सिगरेट पी ले। पहले भी वह दो बार बाहर जा चुका है और दोनों बार वह आधी सिगरेट भी फूँक नहीं पाया था कि 'बार' का मैनेजर उसे बुला लेता है।
वह सोचता हुआ कब बाहर निकलकर सड़क-पार वाली दुकान से एक पैकेट सिगरेट लेता है और शेड के नीचे खड़ा होकर एक सुलगा लेता है--उसे कुछ पता नहीं। जोरदार कश के बाद धुआँ छोड़ते हुए उसे बड़ा सुकून मिलता है। वह बार-बार कश लेकर दूर तक धुआँ छोड़ता है। उसके चेहरे पर से तनाव धुलता जाता है।
वह आँखें गोल-गोल करके धुओं के छल्लों को बड़े ग़ौर से उसी अंदाज़ से देखता है, जिस अंदाज़ से वह युवतियों के सजीले चेहरों को देखता है। उसे आश्चर्य-मिश्रित सुख का एहसास होता है। वह एकांत आलाप से बाज नहीं आता है--'अहा-हा, क्या तासीर है इनमें? यह सिगरेट भी क्या चीज़ है? भीतर की बेचैनी को खदेड़कर बाहर निकाल फेंकती है। ळााड़ू की तरह ळााड़-बुहारकर मन को साफ़-सुथरा कर देती है।' वह कमीज की पॉकिट से सिगरेट की पैकेट हाथ में लेकर घुमा-घुमाकर बड़े विस्मय से देखता है। 'बाकी बचे नौ पूरे दिन भर के लिए काफ़ी हैं। इनमें इतने धुएँ भरे हैं कि ये दिमाग के सारे कचरे को बाहर निकाल फेकेंगे...'
बेशक! उसे सिगरेट से कितनी मोहब्बत है! आख़िर क्यों न हो? इससे कई फ़ायदों के साथ-साथ, एक फ़ायदा यह भी है कि कश लेते वक़्त उसकी पर्सनैलिटी में चार चाँद लग जाते हैं। मैडम मैरी भी तो यही कहती है कि, 'पीटर! तुम सिगरेट दबाकर बिल्कुल साहब लगते हो।'
उसका चेहरा रोब से भर जाता है। वह दुकान में लगे आइने के सामने खड़ा होकर सीना फुलाता है और जोरदार कश लेता है। फिर, कंधा सीधा करता है और बाएँ हाथ की अंगुलियों से अस्त-व्यस्त बालों को सँवारता है।
मैडम मैरी के ख़्याल से उसका चेहरा खिल उठता है। वह अच्छी तरह मुस्कराता है। मुस्कराने से कटोरे जैसे उसके सफ़ेद-सफ़ेद गाल और भी लटक जाते हैं। नाक और होठों के किनारे की रेखाएँ खिंचकर गहरे लाल रंग की हो जाती हैं। ऐसा लगता है कि उसके गाल कबूतर के पंख जैसे हैं जो उसके मुस्कराने पर फड़फड़ाकर उड़ जाना चाहते हैं। बेशक, नाक का ऊपरी भाग तो सफ़ेद है, पर, नथुना इतना लाल और नुकीला है कि उसे देखकर कोई भी कबूतर की चोंच कह सकता है।
सिगरेट से निपटने के बाद, वह पीछे के पैंट्री रूम में दाखिल होते हुए इस तरह का हाव-भाव बनाता है कि लोगबाग यह समळों कि वह किसी ग्राहक के दिए गए आर्डर को पूरा करने में व्यस्त रहा है। वह कबर्ड खोलकर बंद करता है और इधर-उधर सामान को छेड़ता है। एक तश्तरी में कुछ फ़्राइ फ़िश रखता है और फिर उन्हें वापस कबर्ड में रखते हुए मैनेजर की आँख बचाकर कैंटीन में प्रवेश करता है।
उसे देखकर यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि उसकी आँखें किसी की प्रतीक्षा में बेहद उतावली हो रही हैं। वह स्टाल के बगल में खड़ा होकर बड़ी निश्चिंततापूर्वक अपने कान खुजलाता है। यहाँ मैनेजर की खोजी नज़रें नहीं पहुँच पाती हैं। काम से जी चुरानेवाले दूसरे वेटर भी यहीं आड़ लेकर दम लेना चाहते हैं। सुस्ताना चाहते हैं। लेकिन, यह जगह मुस्तकिल तौर पर पीटर के लिए रिज़र्व है। इस बाबत, वह अन्य वेटरों से तूं-तूं, मैं-मैं भी कर चुका है। जब कोई वेटर यहाँ ज़बरदस्ती घुसपैठ करने की ग़ुस्ताखी करता है तो वह ळाट यहाँ आ धमकता है और अपनी नीली-नीली आँखों को गोल-गोल करके उस वेटर को गुस्से में ऐसे गुरेरता है जैसेकि वह कह रहा हो कि 'अबे सियार की औलाद, शेर की मांद के पास खड़ा होने का अंजाम तुळो पता नहीं है?' वेटर फ़ौरन दुम दबाकर भाग खड़ा होता है।
मैनेजर अपनी काँच की पारदर्शी कैबिन में खड़ा होकर चारो ओर की स्थिति का जायजा लेता है। उसकी नज़र आराम फरमाते पीटर पर पड़ती है। वह जोर से बेल बजाते हुए आदतन चींखता है, "वेटर नंबर नाइन।"
पीटर पर जैसे बम फट पड़ता है। वह इस चेतावनी का अर्थ अच्छी तरह समळाता है। वह हरकत में आने से पहले कुढ़-सा जाता है। उसे अपनी हालत पर तरस आती है। अबे, तूँ कहाँ का शेर है? असली शेर तो उस शीशेदानी में बैठा हुआ गुर्रा रहा है जो अपनी पैनी नज़र से किसी भी वेटर को साँस नहीं लेने देता है। तूँ तो पूरी तरह गीदड़ है। वाकई शेर होता तो सीना तानकर बेख़ौंफ़ इधर-उधर घूमता। आँख बचाकर यहाँ क्यों खड़ा होता?
उसे मैनेजर की दहाड़ सुनने के बाद अपना सत्तर किलो का शरीर दुर्वह्य-सा लगता है। वह कंधा सीधा करता है और गरदन दाएँ-बाएँ घुमाने के बाद इस बोळा को ढोते हुए कैंटीन के बीचो-बीच आ जाता है। वह इधर-उधर देखता है। सभी उसे यानी वेटर नंबर नाइन को धारदार निग़ाहों से घूर रहे हैं। सबसे ज़्यादा ळोंप उसे अपने साथी वेटरों से उठानी पड़ती है जिन पर वह बात-बात में धौंस जमाता है। लिहाजा, उसकी हालत भींगी बिल्ली-सी न बन जाए, इसकी वह भरसक कोशिश करता है। वह पूर्ववत सामान्य बनने का अभ्यास करता है ताकि लोग यह समळों कि मैनेजर की डाँट उसे नहीं, किसी और वेटर पर पड़ी है। चुनांचे, फ़टकार की शर्म पचाने के लिए वह व्यस्तता का बहाना बनाने में इतना मशगूल हो चुका है कि वह यह भी भूल गया है कि उसे किसी की प्रतीक्षा है। उसे कोई चीज खोई-खोई सी लगती है। वह यह याद करने की चेष्टा करता है कि वह क्या भूल गया है। वह बारी-बारी से कई ग्राहकों के आर्डर लेता है। लेकिन, वह कुछ भूला हुआ है। शायद वह किसी का मेनू याद रखना भूल गया है। वह ग्राहकों के आर्डर पुनः लेता है। हरेक के पास से गुजरता है। अपनी पॉकेट चेक करता है और हाथ पर लगी पुराने चैन वाली स्विस-मेड घड़ी भी देखता है। वह सिर्फ़ घड़ी चेक करता है। अब वह समय भी देखता है। क्या बजा है? पता नहीं। वह ळाुँळालाकर फ़िर समय देखता है। बड़े ग़ौर से। सुबह के साढ़े आठ बजे हैं। उसे एकबैक कुछ याद आता है। वह बेचैन-सा हो जाता है।
हाँ-हाँ, यही तो समय है--मैडम के आने का। चल भई, जल्दी से इन महाशयों के आर्डर पूरा कर दे। अन्यथा, देर होने पर कोई 'अबे-तबे' करेगा तो कोई 'सुन-बे' कहेगा। फ़ालतू में मेरी इज्जत डाउन होगी। वह भी ऐसे समय जबकि मैरी आने वाली है।
वह बड़ी फ़ुर्ती से अन्दर पैंन्ट्री रूम में भागता है।
मैरी कैंटीन में दाख़िल होती है। उसके साथ उसकी हम-उम्र सहेली नैसी भी है। वह किसी भी व्यक्ति को ध्यान से देखे बिना पूरे हाल का जायजा लेती है। लोग उसे आँखें फ़ाड़-फ़ाड़ देख रहे हैं। लेकिन, इससे उसको न तो कोई कौतुहल होता है, न ही जिळ्ाासा। पर, उसे अच्छी तरह पता है कि लोग उस जैसी चिलबिली और मनमौजी लड़की को क्यों आँखें फाड़-फाड़ देखते हैं।
दोनों ही प्राइवेसी रखने के लिए कोने की मेज के आमने-सामने बैठ जाती हैं।
मैरी की ख़ामोशी सभी उपस्थितों को खल रही है। उसकी चंचल फड़फड़ाहट से इस बिल्डिंग का कौन व्यक्ति वाक़िफ़ नहीं है? वह सभी वेटरों को बारी-बारी से देखती है। तभी नैसी एक वेटर को इशारा करती है। मैरी उसे वापस भेज देती है। नैसी उसे सवालिया निग़ाहों से देखती है। बदले में, वह मुस्कराती हैः
'यह मेरा वेटर नहीं है।'
'ऑ ... ... ...'
'देखो, वो आ रहा है।'
'अहा, वेटर नंबर नाइन'
'हाँ, मेरा लकी नंबर।'
'मतलब...'
'मेरे लिए नौ नंबर बड़ा लकी रहा है।'
'अच्छा?'
'हाँ, मेरे कैरियर में नौ नंबर की आश्चर्यजनक भूमिका है।'
'मैं समळाी नहीं...'
'मेरी पैदाईश 18 सितंबर, 1963 को हुई, पहली शादी 9 सितंबर, 1981 को और तलाक़ इसके अगले वर्ष इसी तारीख को। यहाँ, 27 सितम्बर 1990 को स्टेनों उस स्मार्ट बॉस की बनी जो चैंबर नंबर 099 में बैठता है। जिस कंप्यूटर पर मैं काम करती हूँ, उसका नंबर भी 9099 है और यहाँ तक कि यह नौवीं मंजिल है जहाँ मैं नौकरी करती हूँ और जहाँ कैथी के साथ मेरा अफ़ेयर चल रहा है।'
'वाह, क्या कलकुलेशन है? मुळो तो बेहद ताज़्ज़ुब होता है...और हाँ, आज क्या होने वाला है...आज भी तो 9 सितंबर है। देखो कहीं...'
पीटर के अप्रत्याशित रूप से आ-टपकने पर नैसी के शब्द मुँह में ही ज़ब्त हो जाते हैं।
पीटर बड़ी आत्मीयतापूर्वक मुस्कराता है--'हैलो, वेटर नंबर नाइन।'
वह मैरी से मुखातिब है। नैसी को नज़रअंदाज़ करता हुआ मैरी को अपनी नज़रों से पूरी तरह आत्मसात करना चाहता है। जैसेकि वह कह रहा हो कि मेरा सरोकार सिर्फ़ तुमसे है। यह कौन है जो तुम्हारे साथ है? तुम्हारी सहेली कितनी भी ख़ूबसूरत हो, इससे मुळो क्या फ़र्क पड़ता है? हालाँकि वह बेशक! तुमसे आकर्षक है; पर, मैं उसे बिल्कुल नापसंद करता हूँ। मैं तुम्हारे सिवाय किसी दूसरी लड़की को नहीं जानता। सड़क पर, बाजार में, स्टेशन पर, पार्क में, गली में, लिफ़्ट में और कहीं भी मैं बेशुमार लड़कियाँ देखता हूँ। एक-से बढ़कर एक। पर, मैं उनसे कोई वास्ता नहीं रखता, कुछ भी नहीं...'
मैरी उसकी आँखों में अपनी निग़ाहें उड़ेलते हुए बड़े अर्थपूर्ण ढंग से पलक ळापकाती है जैसेकि उसने सब कुछ समळा लिया हो, सब कुछ स्वीकार कर लिया हो। वह आँखों की इस भाषा से भली-भाँति परिचित है।
पीटर आत्मसंतोष की साँस लेता है। उसने बचपन में पक्षियों को देखकर उड़ने की अदम्य इच्छा अब पूरी कर ली है। बचपन में, उड़कर आसमान छूने की आशा से वह दोनों हाथों को पंख की तरह हिलाता था; लेकिन, उसकी इच्छा उस समय पूरी नहीं हो पाई थी। आज वह पूरी हो गई है। वह जी-जान से उड़ रहा है। बादलों को छूकर उनकी शीतलता को हृदयंगम कर रहा है। टिमटिमाते सितारों से आँखें मिचमिचाकर बातें कर रहा है। सूरज की रंगबिरंगी किरणों में स्नान कर रहा है। इंद्रधनुष पर खड़ा होकर ऊपर अंतरिक्ष में छलांग लगाना चाहता है, जहाँ वह और मैरी ठंडे-ठंडे समीर में तैर रहे होंगे और नीचे सुदूर जमीन पर लोगों का उपहास उड़ा रहे होंगे जो उन्हें इतना खुश देखकर उनसे ईर्ष्या कर रहे होंगे।
'पीटर दि ग्रेट! कहाँ खोए हो?' मैरी की आवाज़ उसकी कल्पना के पंखों को छू देती है। उसके संवेदनशील पंख उसके सम्मोहन में उड़ना भूलकर उसकी हथेलियों में आ गिरते हैं। वह अपना होश बरकार रखने की भरसक कोशिश करता हैः
'मैडम, क्या लाऊँ?'
'जो जी चाहे ले आओ, मेरे लकी नंबर।'
'क्या मैं आपका लकी नंबर हूँ?'
'हाँ, तुम्हारा नौ नंबर मेरे लिए बड़ा लकी है।'
'वो कैसे?'
'यह नंबर बड़े महान, भाग्यशाली और दृढ़ इच्छा और मज़बूत इरादे वाले व्यक्तियों का होता है। वो जो सोचे, जो कहे, वही होता है। जो चाहे, जो छू ले, वही मिल जाता है।'
नैसी ठहाके मारकर हँसने लगती है--
'नंबर नाइन, ख़बरदार मेरी सहेली को मत छूना।'
नैसी के व्यंग्य-कटाक्ष से उसका रोम-रोम सिहर उठता है।
'आप भी मेरी औकात से बाहर की बात करती हैं।'
'क्यूँ? औकात तो बनाने से बनती है। मेरा मन कहता है कि यह लकी नंबर तुम्हें बहुत ऊँचा आदमी बनाएगा।'
पीटर का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। उसकी महत्त्वाकांक्षा कुलांचे भरने लगती है। भावावेश में उसके गाल पंख की तरह फड़फड़ा उठते हैं। चेहरे पर भावों के ज्वार-भाटे में उसका आत्मविश्वास स्पष्ट रूप से ळालकता है। 'हुँह, औकात! इस नैसी को अपनी औकात दिखाऊँगा। इससे मैरी को इतनी दूर ले जाऊँगा कि वह मैरी के संसर्ग के लिए तरस जाएगी। मैरी के ऐशो-आराम से ईर्ष्या करने लगेगी। तब मैं इसका स्वागत हिकारतभरी मुस्कराहट से ही किया करूँगा।'
लंच टाइम हो चुका है। पीटर का चेहरा किसी द्वंद्व युद्ध में विजय पाने जैसे हर्षातिरेक से खिला हुआ है। उसे आज किसी की परवाह नहीं है। उस शीशेदानी वाले के शेर की भी नहीं। वह यहाँ धौंस जमाकर बातें करेगा। यह भी नहीं जाहिर नहीं होने देगा कि वह एक अदना-सा वेटर है। वेटर तो वह यहाँ अपनी मर्जी से बना है। उसे तो अच्छे-अच्छे ऑफ़र मिले थे। वह कोई सुपरवाइज़र या मार्केटिंग इंस्पेक्टर होता। हाँ, वह न्यूयार्क के एक मर्चेंट कंपनी में कुछ समय पहले ही सीनियर सेल्समैन का ऑफ़र ठुकरा चुका है। आख़िर, वह कोई जाहिल देहाती तो है नहीं। सीनियर स्कूल का सार्टिफ़िकेट है उसके पास। वह आगे ग्रेजुएट भी करना चाहता था। पर, उसके पिता के एक आयरिश अभिनेत्री के साथ पोलैंड चले जाने के बाद और उसकी माँ द्वारा एक शिप कैप्टेन के साथ शादी कर होनोलुलू में बस जाने के बाद वह यहाँ एकदम अकेला रह गया था। उसकी महत्त्वाकांक्षा दफ़्न हो गई थी। उस समय उसकी उम्र ही क्या रही होगी? यही कोई चौदह-पंद्रह साल की। यह तो उसका दमदार मनोबल था जो वह अकेला ही बीहड़ संघर्ष करता रहा। उसे पूरा यकीन है कि एक न एक दिन वह न्यूयार्क का बड़ा आदमी बनकर रहेगा। आख़िर, मूँगा भी तो गंदे सागर में ही पैदा होता है। अब्राहम लिंकन की तरह...
वह अपने नौ नंबर की बेल्ट पर बड़े प्यार से हाथ फेरता है। वह इसकी तिलस्मी तासीर को आज़माएगा। उसे मैडम मैरी की भविष्यवाणी पर अटूट विश्वास है। क्यों न हो? वह भी तो यही चाहती है कि पीटर कोई बड़ा आदमी बने। हर लड़की अपने प्रेमी के बारे में ऐसा ही चाहती है। उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती है। उसे भी तो उससे बड़ा प्यार है। इसका अन्दाज़ा तो वह बहुत पहले ही लगा चुका है। समय आने पर वह इस प्यार को हक़ीक़त में बदल कर रहेगा।
उसके चेहरे पर चमक है, कुछ तनाव की लकीरें भी खिंची हुई हैं। वह टी0 एस0 इलियट की एक कविता में मनहूस प्रेमी अल्फ़्रेड प्रूफ़्रॉक की तरह प्रेम को प्रस्तावित करने में अधिक समय नहीं लगाएगा। वह इसे अब नहीं टालेगा। हाँ, वह अंतिम निर्णय ले चुका है। वह आज ही इस भीड़ में उसका हाथ चूमकर उसे सीने से लगा लेगा। शाम को सन टॉप होटल में उसके साथ डिनर करेगा। रात किसी हसीन नाइट क्लब में गुजारेगा। उसके साथ डांस करेगा। रोमांस करेगा। फिर, इसी सप्ताह, उससे शादी कर लेगा।
उसके चेहरे का कबूतर फड़फड़ाकर अपनी उत्तेजना प्रकट करता है। उसकी आँखें नीले नाइट बल्ब की तरह टिमटिमा उठती हैं। तभी मैरी के प्रवेश से वह एकदम उमंगित हो उठता है। पर, वह हैरान हो उठता है। उसके साथ यह आदमी कौन है? बाँह में बाँह डाले हुए। कौन हो सकता है? कोई यांकी (न्यूयार्कवासी) तो नहीं लगता! पहले तो कभी देखा नहीं। इस बिल्डिंग में भी नहीं। जरूर कोई स्वीडिश या आयरिश होगा। लेकिन, दोनों की पहचान पुरानी लगती है। देखो, दोनों आपस में कितने निर्विकार भाव से घुल-मिलकर बातें कर रहे हैं!
उसकी आँखों की चमक गुल हो जाती है। नीली आँखें गाढ़ी नीली होकर उदास हो जाती हैं। इसके पहले कि वह आदमी मेज पर विराजमान होने के बाद किसी और वेटर को आवाज़ देता, पीटर उससे मुख़ातिब होता है, 'जी सा'बजी...'
मैरी उसे कोई लिफ़्ट नहीं देती है। न तो उसे देखती है, न उसको किसी डिश के लिए आर्डर देती है। पीटर का अधीर मन भंवर में फ़ँसे एक भौंरे की तरह सागर-तल पर बैठता जाता है। उसकी इच्छा है कि मैरी उसे एक नज़र देख भर ले। भले ही बातें न करे। आँखों से कोई इशारा तक न करे। लेकिन, यह क्या? वह तो किसी भारतीय स्त्री की तरह अपनी नज़रें ळाुकाए हुए है। उसने भारतीय स्त्रियों की कई कहानियाँ पढ़ी-सुनी है। वे पति के सिवाय, किसी अन्य पुरुष से आँखें मिलाना भी पाप मानती हैं। आयरिश औरतें भी बंद डब्बे की तरह होती हैं। दूसरों से तो अपने ज़ेहन के बारे में कुछ भी बताना अपराध समळाती हैं। बस खुलती हैं तो सिर्फ़ अपने मंगेतर से या पति से।
पीटर ग़मग़ीन हो जाता है। उसे वह गुपचुप आयरिश लड़की अच्छी तरह याद है जो उसके पिता के जीवन में आई और कोई बड़ा लफ़ड़ा खड़ा किए बग़ैर उन्हें भगा ले गई। सचमुच, उसकी चुप्पी पीटर की माँ को उस मुर्दा बम की तरह लगती थी जिसका बारूद अचानक फट पड़ा। उसकी माँ उसके विस्फ़ोटक परिणाम से बाल-बाल बच पाई थी। क्योंकि उसके ग़म में शरीक होने वाला एक परदेसी उसे तत्काल ही मिल गया था। अब तो उसकी निष्ठुर माँ भी अपने नए पति के साथ ख़ूब मजे से होगी। दोनों को ही पीटर की क्या चिंता होगी? पीटर तो न्यूयार्क का ऐसा कुत्ता है, जिसे कोई पालतू बनाना नहीं चाहता। शायद, यह मैरी भी नहीं...
पर, पीटर परिस्थितियों के सामने इतनी आसानी से घुटने टेकने वाला नहीं है। हाँ, वह इस बत्तीस साल की आयु में कोई मुस्तकिल नीड़ तलाश रहा है जिसमें एक चहकती बुलबुल भी हो। पर, वह बुलबुल मैरी के सिवाय कोई और नहीं हो सकती। हो भी कैसे सकती है? पूरे न्यूयार्क में तो बस एक ही बुलबुल है--मिस मैरी। दूसरी लड़कियाँ तो ऐसी पंछियाँ हैं जिनकी बू 'सी-बीच' पर बस्साते घोंघों, मूँगों, स्पंजों, शैवालों और समुद्री घासों से भी बुरी है। जिनकी सड़कों और पब्लिक स्थानों पर फड़फड़ाहट, कोयलाखानों में डायनामाइटों के विस्फ़ोटों से भी ज़्यादा कर्णघातक है। जिनकी मौज़ूदगी तेजाबी बारिश की तरह मानसिक शांति का अपरदन कर देती है। आख़िर, वह मैरी को खोकर अपना जीवन नरक क्यों बनाना चाहेगा?
अन्तर्भूत भावनाओं के धक्कमपेल से उसके नथुने फड़फड़ा उठते हैं। उसके गाल सूर्ख लाल हो जाते हैं। रक्त-प्रवाह इतना बढ़ जाता है कि गरम-गरम साँसें बाहर निकलने लगती हैं। उसके चेहरे का कबूतर पंख फैलाकर मुक्त आसमान में उड़ जाना चाहता है।
लेकिन, यह क्या? उसके पंख जैसे बाँध दिए गए हों। वह अशक्त हो गया। जमीन से ऊपर एक ईंच भी नहीं उड़ पा रहा है। कोई आवाज ़उसके कानों में गरम तेल उड़ेलकर उसके ख्यालों को चटाकर चूर कर देती है--
'मैं कम से कम तीन बार तुमसे व्हिस्की के लिए कह चुका हूँ। आख़िर, तुमलोग खोए कहाँ रहते हो? सुनते क्यों नहीं? प्लीज़ व्हिस्की...'
आदमी उस पर अफ़सराना रोब ग़ालिब करता है। मैरी आदमी की आँखों में शिकायतें उड़ेल देती है, निःशब्द शिकायतें...ये वेटर ऐसे ही ख़फ़्तुलहवास होते हैं...सातवें आसमान पर शीशमहल में विचरण करते हैं।
पीटर इस शिकायताना अंदाज़ को बख़ूबी पढ़ लेता है। मैरी उसकी तरफ़ से अपनी अनदेखी निग़ाहें फेर लेती है। ... ... ...
पीटर आपे में नहीं है। शाम ढलने से पहले ही, वह सारी सिगरेटें फूँक चुका है। उसके चेहरे पर खिन्नता उन सागरीय लहरों की तरह है, जिनके नीचे व्हेल मछलियाँ शिकारी मछुआरों के दाहक चूनों को खाने के बाद कलबलाने और बिलबिलाने लगती हैं। मरने के पहले अपने मुँह बाहर निकालकर चिघ्घाड़ने लगती हैं। उसके बाद मछुआरों के बरछों के प्रहार से सागर पर उतरा आती हैं, रक्त से लाल हुए पानी में।
उसका चेहरा सूर्ख़ शोरबे जैसा हो जाता है। उसके साथी उसे ऐन्टोनी के नाम से नवाज़ते हैं। किंतु, वह ऐन्टोनी की भूमिका में कैसे आ पाएगा? वह तो इंग्लैंड की एलीज़ाबेथयुगीन किसी प्रेमी की तरह है...पेनेलोप के प्रेमी फिलिप सिडनी की तरह। लेकिन, सिडनी की तरह भी नहीं हो सकता। पेनेलोप तो सिडनी के प्रेम-ताप से मर्मस्थल तक पिघल चुकी थी। मैरी को तो उसके प्रेम के बारे में...। नहीं, नहीं, वह मैरी के प्रेम के बारे में कोई अंतिम निर्णय कैसे बना सकता है? पर, पीटर, ऐन्टोनी कभी नहीं बन सकता। ऐन्टोनी को तो खुद क्लियोपेट्रा ने अपने प्रेमपाश में बाँधा था। ऐन्टोनी ने क्या पहल की थी? कुछ भी नहीं। हाँ, वह क्लियोपेट्रा के सौन्दर्य-जाल में फँसता चला गया था। खिंचता चला गया था। उसके बाद अपने राष्ट्रीय कर्त्तव्य से विमुख हो गया। क्लियोपेट्रा ने उसे अपने अंतःपुर में प्रेम के बहाने ऐसे कैद कर रखा था जैसेकि उसने उसे कोई सजा दी हो। जैसे वह अपनी प्रजा को देती थी। पीटर ऐसी सजा से घृणा करता है। वह अपने देश के साथ गद्दारी नहीं कर सकता। गद्दार तो उसका बाप था जो एक विदेशी लड़की से शादी करके विदेश में बस गया। अपनी मातृभूमि को भूल गया। अपनी संतान--पीटर को अनाथ कर गया। अब उसकी हालत न्यूयार्क में धुआँ उगलती चिमनियों के ऊपर से गुजरने वाली पंछियों की तरह है जो विषाक्त धुएँ पीने के बाद, पछाड़ खाकर जमीन पर गिर पड़ती हैं। तड़प-तड़पकर जान गवां देती हैं। लेकिन, देश की सरजमी को नहीं त्यागतीं।
पीटर किन्हीं विरोधाभासों के बीच द्वंद्व कर रहा है। उसके चेहरे पर हर्ष और विषाद की लकीरें समानान्तर खिंची हुई हैं। कुछ पाने और कुछ छोड़ने के भाव उद्वेलित हो रहे हैं। वह सामने बैठी मैरी को ध्यान से देखता है। वह अभी-अभी उसी आदमी के साथ दाख़िल हुई है। साथ में कुछ यार-दोस्त भी हैं जो देखने में संभ्रांत नागरिक जैसे लगते हैं। वे शायद कोई विशेष अवसर आयोजित करना चाहते हैं। बहरहाल, इससे पीटर को क्या लेना-देना है? वह तो एक नाचीज-सा वेटर है। फिर, यहाँ कुछ भी हो। कोई तूफ़ान आए या भूचाल! भले ही कोई फिलिस्तीनी इस बिल्डिंग में घुसकर कोई विस्फ़ोट करे! कोई जापानी हेरोइन या स्मैक की तस्करी करे! कोई चीनी इस बार की नीलामी करना चाहे! उसे कोई एतराज नहीं होगा।
एतराज भी क्यों हो? आख़िर, यह पूरी बिल्डिंग भी तो किसी चीनीवासी की ही है। चीनियों का तो यहाँ जमावड़ा है। बार का स्टाफ़ भी इनसे भरा पड़ा है। शीशेदानी वाला शेर भी तो चीनी है। स्साला! अमरीकियों पर रोब गाँठता है। पीटर इस चीनी शेर से बेहद नफ़रत करता है। वह ऐसे सभी दोगली नस्ल वाले अमरीकियों से नफ़रत करता है। देखो, वह कितने ताव से चला आ रहा है!
मैनेजर शीशे की कैबिन से बाहर निकलकर हाल के बीच में बने चबूतरे पर खड़ा हो जाता है। ऐसा यहाँ प्रायः होता है। आमतौर से नवविवाहित दंपतियों को बधाई देने के लिए मैनेजर इस ऊँचे स्थान से ऐलानिया लहजे में उन्हें बधाई देता है। आज भी कुछ ऐसा ही होने जा रहा है। पीटर के कान खड़े हो जाते हैं। अच्छा! वह ख़ुशनसीब दंपती है कौन?
'भद्रजनों! आपको यह जानकर, बड़ी खुशी होगी कि आज यहाँ आयरलैंड के प्रसिद्ध नाविक नेता, सर बेंजामिन पधारे हुए हैं...' मैनेजर की घोषणा से सभी खामोश हो जाते हैं।
तभी, तालियों गड़गड़ाहट से छत फड़फड़ा उठती है। मैरी के साथ वाला आदमी खड़ा होकर नेताओं के अंदाज़ में सभी का अभिवादन स्वीकार करता है।
मैनेजर फिर बोलता है--'और इससे भी बड़ी खुशी की बात यह है कि उन्होंने चार घंटों के अपने अमरीकी प्रवास में, यहीं की एक लड़की से प्यार किया, रोमांस किया और शादी भी की। उस भाग्यशाली लड़की का नाम है--मिस मैरी...'
मैरी, बेंजामिन से लिपटकर और हाथ उठाकर सभी की बधाइयाँ स्वीकार करती है। तालियों की गूँज से छत फिर से अचानक बज उठती है-- बेसुरे आर्केस्ट्रा की तरह।
पीटर अपने कानों को हाथों से भींच लेता है। उसे मैरी के चेहरे पर विदेशीपन का रंग साफ़ दिखाई देता है। ऐसा ही कुछ उसने अपनी माँ के चेहरे पर होनोलुलू जाते हुए देखा था। यही रंग वह उन सभी अमरीकी स्त्रियों के चेहरे पर देखेगा जो विदेशी पुरुषों से शादी रचाकर विदेश चली जाएंगी। लेकिन, पीटर किसी विदेशी लड़की से शादी नहीं रचाएगा। उसे तो किसी कोयला खान में काम करने वाले मजदूर की लड़की से शादी करनी है जिसका मन अमरीकी जमीन में रचा-बसा हो। जो उसे सिगरेट पीते समय स्मार्ट न कहे। जो उसके 'नौ' के अंक का उपहास न उड़ाए। जिसके चेहरे पर उसकी माँ और इस मैरी की तरह विदेशीपन का रंग न चढ़ा हो।
पीटर के चेहरे पर अतीव संतोष ळालकता है। उसकी नीली-नीली आँखें फिर से चमकने लगती हैं। उसकी नाक कबूतर की चोंच की तरह सूर्ख़ चमकदार है। पर, उसके गालों का कबूतर अपने पंख फैलाकर फड़फड़ाना नहीं चाहता।