कब तक काटेंगी लड़कियां सपनों का वनवास? / जयप्रकाश चौकसे

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कब तक काटेंगी लड़कियां सपनों का वनवास?
प्रकाशन तिथि : 27 जून 2019


आमिर खान की फिल्म 'सीक्रेट सुपरस्टार' में नायिका की दादी उसे बताती है कि गर्भ में कन्या होने की बात मालूम पड़ने पर उसकी मां को गर्भपात के लिए मजबूर किया जाने लगा। नायिका की मां घर से भाग गई। वह नौ माह पश्चात नवजात कन्या के साथ घर आई। मां नहीं चाहती कि बेटी के जन्म का यह सच कभी उसे पता चले। फिल्म के क्लाइमैक्स में कमसिन उम्र की नायिका एक पुरस्कार समारोह में अपने जन्म का यह रहस्य उजागर करती है। वह कहती है कि असली सुपरस्टार तो उसकी मां है, जिसने परिवार का विरोध करके उसे जन्म दिया। ज्ञातव्य है कि फिल्म में दुबई में काम करने वाला व्यक्ति छुट्टियों में घर आता है तो किसी भी काम में थोड़ी-सी देर कर देने पर अपनी पत्नी को बेरहमी से पीटता है। वह सबकुछ सहती है, क्योंकि संस्कार के नाम पर महिला को हमेशा हिंसा व अन्याय सहते रहने की बात एक सत्य की तरह स्थापित की जा चुकी है। यहां तक कि वह स्वयं को भी 'अपराधी' मानने लगती है।

अरसे पहले गर्भावस्था में अजन्मे शिशु के लिंग परीक्षण को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है और हर अस्पताल में जगह-जगह यह लिखा होता है कि लिंग परीक्षण नहीं किया जाता। गांव और छोटे कस्बों में यह अभी भी किया जा रहा है। भारत महान में हर नियम को तोड़ने की जन्मजात योग्यता हम में है। कई दशक पूर्व संजीव कुमार और माला सिन्हा अभिनीत फिल्म 'जिदगी' का प्रदर्शन हुआ था। फिल्म में दोनों पुत्र यह तय करते हैं कि मां का उत्तरदायित्व एक पुत्र लेगा और पिता की जवाबदारी दूसरा पुत्र लेगा। इस निर्णय से पति-पत्नी अलग-अलग रहने के लिए बाध्य किए जाते हैं। इस फिल्म में उनकी विवाहित बेटी का पात्र है, जो अपने भाइयों के टुच्चेपन और स्वार्थ की आलोचना करती है तथा माता-पिता दोनों का उत्तरदायित्व स्वयं संभाल लेती है। इस कथा को बाद में 'बागवान' के नाम से बनाया गया, जिसमें अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी ने अभिनय किया। 'बागवान' से कहीं अधिक प्रभावोत्पादक और मर्मस्पर्शी फिल्म 'जिंदगी' है।

हाल ही में बिहार के मुजफ्फरपुर में कुपोषण के कारण कई बच्चों की मृत्यु हो गई और इस पर खाकसार सहित सभी लेखकों ने अलग-अलग अखबारों में अपना दु:ख व्यक्त किया है। सरकार तो एक रस्म अदायगी के तौर पर जांच कमीशन बैठा देगी, जिसकी रिपोर्ट कभी उजागर नहीं की जाएगी। आज इस विषय को पुन: इसलिए उठाया गया है कि पता चला है कि मरने वाले बच्चों में अधिकांश कन्याएं ही थीं गोयाकि कुपोषण भी लिंगभेद के आधार पर किया जाता है। अनुष्का शर्मा अभिनीत फिल्म 'एनएच टेन' में इसी सामाजिक बीमारी पर प्रहार किया गया है परंतु यह कथा का सबप्लॉट है।

शाहरुख खान अभिनीत फिल्म 'चक दे इंडिया' में महिला हॉकी टीम के साथ भेदभाव किया जाता है और उसे अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा से बाहर रखने की साजिश रची जाती है। यह उपेक्षित व साधनहीन टीम भारत के लिए विश्वकप जीतकर लाती है। 'चक दे इंडिया' में मूलकथा तो महिला हॉकी के कोच कबीर की है। पाकिस्तान के खिलाफ मैच में वह एक गोल नहीं करा पाया और उसे 'देशद्रोही' मान लिया गया। बेहतर टीम के जीत जाने जैसे सरल-सीधे तथ्य को भी 'हम' और 'वो' (जैसा कि फिल्म 'मुल्क' में प्रस्तुत किया गया है) के दो भागों में बांट देने के अभ्यस्त हो चुके हैं। विश्व कप क्रिकेट में पाकिस्तान के अंतिम चार में नहीं पहुंचने पर खिलाड़ी कुछ दिन किसी अन्य देश में गुमनामी में रहेंगे और माहौल के ठंडा हो जाने पर रात के अंधकार में स्वदेश लौटेंगे। आज ही आंकड़े प्रकाशित हुए हैं कि अनेक प्रांतों में कन्याओं का जन्म बालकों से कम हो रहा है। दिनेश शुक्ल की कविता की पंक्तियां हैं-

'गढ़कर सुंदर लड़कियां, ईश्वर हुआ उदास/ फिर काटेंगी लड़कियां सपनों का वनवास'। सलीम खां फरीद की पंक्तियां हैं- 'विकसित है विज्ञान तभी तो/ तिलतिल आज हलाल है लड़की/ कोई हल कर दे तो जाने/ अब भी एक सवाल है लड़की'।