कभी किसी विचार को अलविदा ना कहना / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 04 दिसम्बर 2014
अनेक क्षेत्रों में बिक पाने वाले माल को री-साइकिल किया जाता है। कूड़े-कचरे को नष्ट करने की प्रक्रिया से ऊर्जा पैदा की जाती है। दरख्तों से गिरे सूखे पत्तों से भी ऊर्जा पैदा की जा सकती है। प्रकृति भी तत्वों को री-साइकिल करती है। धरती की वाष्प से बादल बनकर बरसते हैं। याद आता है "अनोखी रात' का गीत "नदी मिले ताल के जल से, ताल मिले कौन से जल से, कोई जाने ना'। रद्दी कागजों की लुगदी से खिलौने बनाए जाते थे, बहरहाल फिल्म उद्योग में भी फिल्मों और विचारों को री-साइकिल करते हैं। आमिर खान के ताऊ नासिर हुसैन लखनऊ से एक कहानी लाए थे पांचवें दशक में और उसे री-साइकिल करके जाने कितनी सफल फिल्में रचीं। उनकी एक दावत में रणधीर कपूर ने उनकी बिरयानी की प्रशंसा की और पूछा कि आप एक ही कहानी को परिवर्तन के साथ बनाते हैं। नई कथा क्यों नहीं लिखते? नासिर साहब का जवाब था कि आपको मेरी बिरयानी पसंद आई और आप बार-बार इसे खाने का निवेदन कर चुके हैं। जब तक फॉर्मूला सफल है, बदलने की आवश्यकता नहीं गोयाकि उनके लिए फिल्में बनाने और बिरयानी पकाने में अंतर था। अधिकांश सफल फिल्मकार लजीज खाना बनाने में निपुण रहे हैं। कुछ ने लजीज खाने फिल्म बनाने में अंतर बनाए रखा।
बहरहाल 3-4 दशक पूर्व यश चोपड़ा के सहायक रमेश तलवार ने "दूसरा आदमी' फिल्म राखी, ऋषि कपूर, नीतू सिंह के साथ बनाई थी। राखी शशि कपूर से प्रेम करती थी जो अकाल मृत्यु का शिकार होता है। कालांतर में विधवा राखी को ऋषि कपूर में शशि की झलक का भ्रम होता है और वह प्यार करने लगती है, पर युवा ऋषि तो युवा नीतू सिंह को प्यार करता है। बाद में बनी यश चोपड़ा की "सिलसिला' में भी जया शशि को खो देती है तो उसके छोटे भाई अमिताभ को विवाह करना पड़ता है जबकि वह रेखा से प्यार करता था। रिश्तों की भुलभुलैया पर अनगिनत फिल्में विश्व में बनी हैं। रिश्तों की कहानियों की री-साइकिलिंग भी होती है। यहां विषयों की री-साइकिलिंग की आलोचना नहीं की जा रही क्योंकि पूजनीय प्रकृति भी यही करती है पर फ्रेम दर फ्रेम कथा चुराना इससे अलग बात है।
करण जौहर अगले वर्ष रणबीर कपूर, अनुष्का शर्मा, ऐश्वर्या राय के साथ फिल्म बनाएंगे। रणबीर-अनुष्का से उम्र में ऐश्वर्या बड़ी हैं परन्तु उनका लावण्य कायम है। कथा के बारे में कोई जानकारी नहीं है। अनुमान है कि रमेश तलवार की "दूसरा आदमी' को कुछ परिवर्तनों के साथ पुन: लिखा गया है क्योंकि करण "कभी-कभी' और "सिलसिला' को अपनी देखी श्रेष्ठ फिल्में मानते हैं। उनका प्रशिक्षण भी यश चोपड़ा के फिल्मी आंगन में ही हुआ। वे आदित्य चोपड़ा के सहायक थे "दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' में जो 12 दिसंबर को मराठा मंदिर, मुंबई में प्रदर्शन के 20 वर्ष पूरे कर रही है। उपरोक्त अनुमान सही है तो रणबीर का ऐसी भूमिका करना जो उसके पिता ने कभी की थी, भी प्राकृतिक री-साइकलिंग लगती है। इसके पहले भी करण रिश्तों की भूलभुलैया रच चुके हैं। "कभी अलविदा ना कहना' भी रिश्तों के कचूमर को प्रस्तुत करती थी। हम यह भी कह सकते हैं कि किसी भी पुराने माल को कभी अलविदा कहना। शाहरुख के साथ करण ने अनेक फिल्में कीं और सफलता के प्रारंभिक दौर में दावा किया कि वे शाहरुख के बिना किसी फिल्म की कल्पना नहीं कर सकते। इस अहद को वे अलविदा कह चुके हैं। वे बॉक्स ऑफिस शास्त्र के सच्चे स्टूडेंट हैं और खिताब के हकदार भी हैं। उनके सिनेमाई स्कूल में कभी-कभी कुछ-कुछ अजीब भी होता है। मसलन उनकी पहली फिल्म की अबोध हिन्दू बालिका सेवानिवृत्त मुस्लिम महिला के घर महत्वपूर्ण सूचना प्राप्त करने जाती है तो उसे प्रभावित करने के लिए नमाज भी अदा करती है। इस छोटे से दृश्य में पात्र की मासूमियत का हरण कर लिया। इसी तरह "स्टूडेंट ऑफ इयर' के प्राचार्य के पात्र को समलैंगिक बताने का औचित्य नहीं था। उसके मृत्यु के क्षण में समलैंगिकता का आग्रह कि अगले जन्म में मिलोगे, उस क्षण की गरिमा का क्षरण है।
वेद व्यास ने तो भीष्म के अंतिम क्षण में अंबा को अगले जन्म में मिलने का आश्वासन नहीं दिया। बहरहाल तीन सफल सितारों से सजी फिल्म बनेगी और सफल भी होगी। रमेश तलवार भी टिकट खरीदकर देखेंगे। यह लेख काल्पनिक आकलन मात्र है।