कमाई के आंकड़े और गुणवत्ता के मापदंड / जयप्रकाश चौकसे

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कमाई के आंकड़े और गुणवत्ता के मापदंड
प्रकाशन तिथि : 28 अगस्त 2013


शाहरुख खान अभिनीत और रोहित शेट्टी निर्देशित 'चेन्नई एक्सप्रेस' राजकुमार हीरानी की आमिर अभिनीत 'थ्री इडियट्स' की बॉक्स ऑफिस कमाई के आंकड़े को पार करने जा रही है, परंतु 'थ्री इडियट्स' की कमाई के रुपए और 'चेन्नई एक्सप्रेस' के रुपए की खरीदने की शक्ति में अंतर है और अंतर का यह सिलसिला दशकों से जारी है। टिकट दर, देश की आबादी, फिल्म देखने की सहूलियत, सामाजिक एवं राजनीतिक स्थितियों में अंतर के कारण कमाई के आंकड़ों का अर्थ बदलता रहता है। ऋषि कपूर ने अपने शिखर दिनों में पाली हिल्स मुंबई में बंगला खरीदा और आज उनका पुत्र रणबीर कपूर उनसे कहीं अधिक मेहनताना लेता है, परंतु वैसा बंगला दस फिल्मों के मेहनताने से भी नहीं खरीद सकता।

जब रुपए की क्रय शक्ति और अन्य बातों के कारण कमाई के आंकड़े ज्यादा कुछ नहीं तय कर सकते तो हम फिल्म की सामाजिक सोद्देश्यता के आधार पर कुछ बातें तय कर सकते हैं। 'थ्री इडियट्स' इस पैमाने पर बहुत महान फिल्म की तरह सामने आती है। शिक्षा के मूल उद्देश्य को रेखांकित करने वाली इस फिल्म के समान ही आदर्श शिक्षा पर गांधीवादी फिल्म भालजी पेंढारकर ने 'वंदे मातरम आश्रम' वर्ष 1927 में बनाई थी। मूक सिनेमा के उस दौर में फिल्म के प्रारंभ में परदे पर उभरी इबारत कहती थी कि जो शिक्षण संस्थाएं जीवन के यथार्थ में आदर्श मूल्यों को स्थापित नहीं करतीं, वे संख्याएं मृत समान हैं। शिक्षा में डिग्री या प्रमाण-पत्र नहीं वरन चारित्रिक विकास की बात महत्वपूर्ण है। 'थ्री इडियट्स' का नायक किसी और के नाम पर डिग्री प्राप्त करता है और अपने अर्जित ज्ञान से पैसा कमाने के साथ समाज सुधार में प्रयुक्त वस्तुओं का उत्पादन करता है।

'चेन्नई एक्सप्रेस' भरपूर मनोरंजन देती है और हास्य के लिए किसी तरह फूहड़ता का सहारा नहीं लेती। वह स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करती है, जिसकी समाज को आवश्यकता है। इस मायने में उसे एकदम बिना उद्देश्य वाली फिल्म भी नहीं कह सकते, परंतु कुछ दशकों बाद यह फिल्म जनता विस्मृत कर सकती है। 'थ्री इडियट्स' लंबे समय तक याद की जाएगी।

शूजित सरकार की 'मद्रास कैफे' भी धन कमा रही है और दर्शकों को लंबे समय तक याद रहेगी, वरन फिल्म इतिहास में कथा कहने के अपने अंदाज के कारण यह फिल्म प्रशिक्षण देने वाली संस्थाओं के पाठ्यक्रम में भी शामिल होगी। वर्तमान के दर्शकों ने विविधता पर अपनी मोहर लगा दी है कि 'बीए पास' भी चल रही है और 'मद्रास कैफे' भी। हिंदुस्तानी सिनेमा का यह मिजाज ही उसका स्थायित्व है और हर कालखंड में इस तरह के अजूबे हुए हैं। मनोरंजन जगत में फॉर्मूले का सत्य यह है कि कोई फॉर्मूला ही नहीं है। यह एक जीवंत उद्योग का प्रथम लक्षण है।

आज देश में नैराश्य के संकेत हैं, परंतु मनोरंजन जगत से मिल रहे संकेत हमें दिलासा देते हैं कि तमाम अंधड़ और तूफानी प्रचार के बाद भी देश में ऊर्जा की कमी नहीं है। कुछ नैतिक मूल्य सतह के नीचे प्रवाहित हैं, अत: नजर न आने पर भी उन्हें आप अस्तित्वहीन नहीं मान सकते। क्या आज का नैराश्य और खोखलापन गुलामी के दिनों से अधिक है? अगर हम उस संकट से उबर पाए और आजादी की पावन बेला में विभाजन की त्रासदी को झेल सके तो कोई कारण नहीं है कि आज इस देश में पुन: जागरण संभव नहीं है। नैराश्य का मात्र एक कारण चिंता उत्पन्न करता है कि किसी एक अवतार से कब तक चमत्कृत होते रहेंगे। गणतंत्र व्यवस्था हर व्यक्ति के नायक होने पर सुचारु रूप से चलती है।