कमाई के साधन / संतोष भाऊवाला
आज वह तडके ही उठ गई थी। उसके घर के कोने की मिटटी में कुछ रंग बिरंगे फूल उग आये थे। सोचा, उन्हें बेच कर जो पैसे आयेंगे, उनसे थोड़े और बीज लाकर बोएगी तो अगली बार ढेर सारा कमा कर अपनी गरीबी दूर कर पाएगी। बाजार की ओर चल दी, मंडी में सभी अपनी अपनी दूकान लगा कर बैठे थे। फूटपाथ भी खचाखच भरी हुई थी, एक कोने में थोड़ी सी जगह देख कर तार तार हुआ कपड़ा बिछा कर बैठ गई। इंतज़ार कर रही थी, ग्राहक का.... तभी पालिका अधिकारियों का पदार्पण हुआ और अफरा तफरी मच गई, आनन् फानन में सभी फल, फूल, सब्जी वालों का सब कुछ मिटटी में मिल गया, उसे कुछ समझ में आता, उसके पहले ही उसकी छोटी सी सपनो की दुनिया भी उजड़ चुकी थी। वह धीरे धीरे लगभग रेंगते हुए घर की ओर जाने लगी, तभी कानो में आवाज आई, माइक पर नेता जनता को संबोधित कर रहे थे ……आप सभी को रहने के लिये आवास दिया जायेगा, कमाई के साधन जुटाए जायेंगे, सरकार की नयी योजना के तहत कोई भी गरीब अब गरीब न रहेगा।