कमाल के कलाम / संजय कुमार अवस्थी

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जब तक यह पृथ्वी है तब तक तो जीवन चक्र चलता ही रहेगा। सृष्टि का क्रम नहीं बदलता, पूर्ण, पूर्ण में ही विलीन होता है, इन्हीं पंच तत्त्वों से फिर एक पूर्ण जीवन आकार लेता है। सर्जन और संहार के क्रम में ही इस प्रकृति का इतना सुंदर रूप है। 84 वर्ष की पूर्ण आयु थी पर उस आयु में भी इतने क्रियाशील कर्मठ प्रेरणादायी, सीखने और सिखाने के लिए उद्यत व्यक्ति का अचानक इतिहास बन जाना, हृदय पर ऐसा आघात दे गया जिससे उबरना बहुत मुश्किल है। 27 जुलाई 2015 का दिन, बरसात के मौसम में बिना बरसात के जैसे दिन होते हैं, वैसी ही गर्मी और उदासी थी, मेरे मित्र श्री विमान बसु (प्रसिद्ध विज्ञान लेखक) ने मुझे 8 बजे रात फोन कर बताया कि दु: खद समाचार है डॉ. कलाम को हृदयाघात हुआ है उन्हें शिलाँग में अस्पताल ले जाया गया है। मैं अचानक गहन वेदना के कोहरे में अपने आप को पाने लगा, कुछ हिम्मत की, इन्टरनेट में न्यूज माध्यमों को तलाशने की, कहीं से आशा की खबर मिल जाए. कुछ देर में खबर मिली कि आचार्य कलाम इस दुनिया रूपी रंगमंच में अपनी आखिरी उपस्थिति दे अलविदा कह गए.

आचार्य ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसा महामानव जब दुनिया से जाता है तो ऐसा विशाल खाली स्थान छोड़ जाता है, जिसे भरना मुश्किल होता है। मैं एक साधारण-सा भौतिकशास्त्र का शिक्षक और कहाँ आचार्य कलाम-सा विराट व्यक्तित्व, पर मुझे उनसे तीन बार मिलने का, देखने का और बात करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ। विज्ञान भारती द्वारा आयोजित भारतीय विज्ञान सम्मेलन 2007 में वे विद्यार्थियों से संवाद करने और प्रदर्शनी को देखने आए थे। वे काफी देर रहे, छोटे से छोटे विज्ञान मॉडल को पूर्ण जिज्ञासा के साथ देखा, जानकारी हासिल की ऐसे जैसे कुछ जानते न हो, न वह मॉडल विज्ञान के उस स्तर के थे जिसे प्रो.कलाम जानते थे, फिर भी सबको प्रोत्साहित करना, सबकी रचनात्मकता की सराहना, ऐसा प्रो.कलाम-सा विशाल हृदय वाला महापुरुष ही कर सकता था।

15 अक्टूबर 1931 को पवित्र तीर्थ रामेश्वरम् के एक गरीब मुस्लिम परिवार में जन्मा, चार भाइयों एवं एक बहन में सबसे छोटा बालक, बड़ा होकर एक किंवदंती बन जाएगा, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। रामेश्वरम् के समुद्र तट पर उड़ते पक्षियों को निहारते कलाम ने कब अपनी कल्पनाओं को उड़ान दी, कब अपने सपनों को पंख लगाए, कब अपनी जिज्ञासाओं से प्रेरित विज्ञान की राह पकड़ी, वह सब एक ऐसा इतिहास है जो युगों-युगों तक आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। गरीबी का बचपन, समाचार पत्र बेच कर परिवार की आर्थिक मदद के कठिन मेहनत के कार्य के बाद भी उन्होंने अपने हृदय में 'जानने की इच्छा' की अग्नि को बुझने नहीं दिया। कुशाग्र बुद्धि पर विद्यालय की परीक्षा में सामन्य परिणाम, इसके बाद भी अपनी मेहनत और सीखने की इच्छा से उन्होंने राह की बाधाओं से घबराना नहीं सीखा था। जहाँ जो मिला उससे सीखा, परिवेश को देखा और आत्मसात किया और अपने गुरुओं की सीख से प्रेरणा ले 'चरेवैति-चरेवैति' का मंत्र ध्यान में रखा। चाहते थे तो उड़ना अर्थात् पायलट बनना पर रुचि गणित और भौतिकशास्त्र में भी थी। मद्रास के सेंट जोसफ महाविद्यालय से भौतिकशास्त्र में स्नातक उपाधि प्राप्त की, पर समझ में आया कि ज्ञान का वह क्षितिज जो उनकी जिज्ञासाएँ दिखाती थीं, वहाँ तब ही पहुँच पाएँगे, जब ऐरोस्पेस इंजीनीयरिंग की उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाएँगे। बचपन से ही उड़ते पक्षी जिज्ञासा जगाते थे, खुद उड़ना चाहते थे तथा उस उड़ने की प्रौद्योगिकी का ज्ञान हासिल करना चाहते थे। 1955 में मद्रास इन्स्टीट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी में प्रवेश लिया। वहाँ जब वे अपनी कक्षा के आवंटित प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे थे तो अधिष्ठाता उनके कार्य से संतुष्ट नहीं थे, उन्होंने कलाम को तीन दिन का समय दिया अपना प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए, नहीं तो उनकी छात्रवृत्ति रोक दी जाएगी, ऐसा डर दिखाया। कलाम ने दिए गए समय के अंदर उत्कृष्ट कार्य करके दिखाया तब डीन ने कहा कि "मैंने तुम्हें इस तरह की समय सीमा इसलिए दी, जिससे की तुम एक अभियंता के जीवन में आने वाली चुनौतियों के तनाव को समझ सको और चुनौतियों को पुरा कर सको"।

पायलट बनने को सपना पूरा होता-होता रह गया, क्योंकि केवल नौ स्थान उपलब्ध थे और उनका नम्बर दसवाँ था। पर इसमें भाग्य देवता का कोई खेल ही था, उन्होंने कलाम साहब के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान सोच रखा था, राष्ट्रनिर्माता बनने का। इंजीनीयरिंग में स्नातक हो, 1960 में प्रो.कलाम ने भारतीय रक्षा एवं अनुसंधान संगठन (DRDO को अपनी सेवा, वैज्ञानिक के रूप में देना प्रारम्भ किया। अपनी इस नवीन पदस्थापना में उन्होने छोटा होवर क्राफ्ट बना अपनी क्रियाशीलता प्रदर्शित की। पर उनका मन (DRDO में नहीं लग रहा था। प्रो.कलाम आचार्य विक्रम साराभाई के अध्यक्षता में निर्मित समिति INCOSPAR के भी सदस्य थे। ईश्वर ने उनकी मन की आवाज को सुना और उनका स्थानांतरण 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO में हो गया। आचार्य सतीश धवन के मार्गदर्शन में उन्होंने भारत के महत्त्वाकांक्षी स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान, SLV3 की योजना के प्रोजेक्ट डायरेक्टर बन, कार्य करना प्रारंभ किया। उनके इस प्रोजेक्ट के सहयोगी डॉ. पी. के. मेनन (वर्तमान में मुख्य वैज्ञानिक एवं कार्यपालन अधिकारी, ऑप्टीमल सिंथेसिस इनकारपोरेटेड़) बताते हैं कि उनका काम था उस डाटा को संकलन करना जिससे SLV3 की क्षमता एवं कार्य को परखा जाता। वह आगे कहते हैं कि प्रो.कलाम सबसे पहले कार्यालय आते और सबसे अंत में जाते। उनके साथ काम करने वाले युवा, उनके जैसा करने का प्रयास करते पर प्रो.कलाम की दिनचर्या का अनुसरण बहुत ही कठिन कार्य था।

SLV3 की प्रथम उड़ान असफल सिद्ध हुई. उन्होने डाटा के संकलनकर्ता से इस असफलता का कारण पूछा, उत्तर मिला पर कठिन काम का उचित प्रतिफल न मिलने से प्रो.कलाम गहन निराशा में डूब गए. उन्होंने अपने प्रेरणा स्रोत आचार्य सतीश धवन जी से कहा कि वे उन्हें इस असफलता के लिए दोषी माने। प्रो.कलाम कभी भी अपनी सोच पर जिद नहीं करते थे, वे हमेशा समूह में कार्य करना पसंद करते थे। वे अपने समूह के छोटे से छोटे सदस्य की सलाह पर ध्यान देते थे। यदि उन्हें यदि किसी का व्यवहार पसंद नहीं आता तो वे गुस्सा नहीं होते थे केवल कहते थे 'You are a funny guy I say' A प्रथम उड़ान की असफलता के बाद, प्रो. धवन ने एक आदर्श नेता के तौर पर सारी असफलता अपने सिर ली। SLV3 की द्वितीय उड़ान सफल रही और आचार्य कलाम के सपनों को उड़ान मिल गई. उन्हें पदम भूषण से नवाज़ा गया, पर अब तक इस तरह के पुरस्कार ISRO के विज्ञानियों को नहीं मिले थे, जिससे ईर्ष्या का भाव उत्पन्न हुआ। प्रो.कलाम, इस पुरस्कार के बाद भी नम्र बने रहे, वे वैसे ही थे, पर इससे उन्हें आगे कार्य करने में कुछ परेशानियाँ तो आईं।

SLV3 की सफल उड़ान का ज्ञान और अनुभव ने राष्ट्र को सुरक्षा प्रदान करने हेतु अदभुत मिसाइल प्रणाली के विकास का मार्ग प्रशस्त किया। प्रो.कलाम ने SLV3 की प्रथम स्टेज की प्रणाली की सहायता से 'री एण्ट्री प्रयोग' को, करने हेतु तैयारी प्रारंभ की। इस गुप्त प्रोजेक्ट का नाम दिया गया 'Rex' अपने विश्वस्त सहयोगियों के साथ, मिलकर गुप्त योजना पर काम करते हुए भारत की अचूक मिसाइल 'अग्नि' कुछ वर्षों बाद इस योजना के प्रतिफल के रूप में सामने आई. बाद में ध्रुवीय प्रक्षेपण यान पर कार्य करने का दायित्त्व प्रो.कलाम को दिया गया। उस समय के इसरो के वरिष्ठ विज्ञानियों की स्वाभाविक ईर्ष्या ने काम को मुश्किल किया था और तत्कालीन इसरो के चेयरमेन ने उनका स्थानांतरण बैंगलोर के मुख्यालय में कर दिया। दो इंजीनियर एवं एक टाइपिस्ट की टीम और काम था PSLV की उड़ान को सफल बनाना। काम बहुत मुश्किल था, पर प्रो. सतीश धवन की प्रेरणा और दृढ़ता ने प्रो.कलाम को राह दिखाई. प्रो.धवन ने चुनौती रखी कि एक वर्ष में यह काम पूरा होना चाहिए. दिसम्बर 1981 में PSLV की डिजाईन बनकर सामने आई. आज जो हमारा PSLV सफलता के झंडे गाड़ रहा है उसकी मूल डिजाइन प्रो.कलाम की टीम ने ही बनाई थी। बाद में DRDO के अंतर्गत इन्टीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम की अध्यक्षता करते हुए प्रो.कलाम ने भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए आवश्यक मिसाइलों की शृंखला देश को दी। उनके इस कार्य ने उन्हे 'मिसाइल मैन' की पदवी लोगों ने दी। भारत के प्रथम परमाणु परीक्षण के समय भी प्रो.कलाम थे एवं द्वितीय परीक्षण के तो वे योजनाकारों में से थे। बहुत ही कम लोग जानते हैं कि प्रो.कलाम ने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.सोमा राजू के साथ मिलकर कम कीमत का कोरोनरी स्टेंट 'कलाम-राजू स्टेंट' बनाया। इसके अलावा 2012 में इन दोनों ने एक टेबलेट कम्प्यूटर 'कलाम-राजू टेबलेट' , ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य रक्षा हेतु बनाया।

2002 में प्रो.कलाम ने अपनी नवीन भूमिका, भारत के राष्ट्रपति के रूप में प्रांरभ की। अद्भुत थे राष्ट्रपति कलाम, लोग उन्हे जनता का राष्ट्रपति कहते हैं। उन्होंने इस पद के शृंगारिक आडम्बरों से हटकर एक सर्व सुलभ, सर्वप्रिय राष्ट्रनेता की छवि प्रस्तुत की। 2007 में अपने इस दायित्त्व से कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्होंने अपनी क्रियाशीलता को विराम नहीं दिया और बहुत ही कठिन कार्य हाथ में लिया वह था, युवाओं को प्रेरित करना ऐसे युवा तैयार करना जो देश में विकास की गति बढ़ाएँ, देश को विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सहायता से परम वैभव तक ले जाएँ। प्रो.कलाम ने 2020 तक भारत को महाशक्ति बनाने के रोड मैप पर काम करना प्रारंभ किया। स्थान-स्थान पर व्याख्यान देना, युवाओं के बीच रहने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ना, सीखना और सिखाना यही उन्होंने अपना ध्येय बनाया। उन्हेंन्हे सीखने में आनंद आता था और लोगों को राह दिखाने में भी। अंत समय में वे व्याख्यान देने वाले थे 'रहने योग्य ग्रह पृथ्वी का निर्माण'। वे बदलते परिवेश, पर्यावरण तथा प्रकृति की चिंता करते थे। उन्हें लगता था कि समाज में सकरात्मक सोच बढ़े, नकारात्मक प्रकृति का नाश हो। संसद में सांसदो के व्यवहार और गतिरोध की भी वे चिंता करते थे। प्रो.कलाम की मृत्यु पर डॉ.कस्तूरी रंगन कहते हैंः उनमें ज्ञान और जिज्ञासा की अतीव प्यास थी, ऐसा व्यक्ति मैंने भारत में या कहीं और नहीं देखा। वह सबसे अलग थे। उनका अध्यापन से प्यार, शिक्षा और ज्ञान से प्यार, नव विचारों के अन्वेषण का लगाव, सब अद्भुत था, क्योकि वे कलाम थे।

डॉ. कलाम-सा अद्भुत विज्ञानी एवं भारतमाता के गर्व की रक्षा करने वाले सपूत की कमी सदैव भविष्य की पीढ़ियाँ, अनुभव करती रहेंगी।