कमाल है न बरसात / रश्मि

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बरसात कहाँ-कहाँ बरसती है...

कभी-कभी गरीब की छत से बरसती है तो कभी-कभी अमीर की तिजोरी में बरसती है।

कभी-कभी बादलों से बरसती है तो कभी-कभी माँ की आँखों से बरस जाती है।

कभी-कभी प्यार भरी नज़रों से बरसती है तो कभी-कभी नफरत की बारूदों से बरसती है।

कभी-कभी इंसानियत की एक आह! से बरसती है तो कभी-कभी धर्म के चौराहों पर बरसती है।

कभी-कभी बुज़ुर्ग के टूटे छातों पर बरसती है तो कभी-कभी युवाओं के अरमानों पर बरसती है।

कमाल है न बरसात... सैकड़ों बूंदों-सी... अलग-अलग रूपों में बरसती है।