करण को ओलिम्पिक से बुलावा / जयप्रकाश चौकसे

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करण को ओलिम्पिक से बुलावा

प्रकाशन तिथि : 18 जुलाई 2012

लंदन में ओलिंपिक आयोजन समिति ने फिल्मकार करण जौहर को उद्घाटन समारोह के लिए आमंत्रित किया है। उनके प्रचार विभाग का दावा है कि केवल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उन्हें ही आमंत्रित किया गया है। अगर हम ‘बोल बच्चन’ में अजय देवगन अभिनीत पात्र की भाषा में कहें तो इससे करण जौहर की छाती फूलकर ब्लाउज हो गई है। हमारी मज्जा में गुलामी के दिनों की प्रवृत्तियां ऐसी समाई हैं कि गोरों का आमंत्रण हमें गर्व देता है और ऑस्कर की प्रतिमा से रति करने का भाव फिल्मकार के मन में जन्म लेता है। करण जौहर और मनमोहन सिंह में कोई समानता नहीं है और दोनों के क्षेत्र भी अलग-अलग हैं। अत: इन्हें एक वर्ग में नहीं रखा जा सकता।

बहरहाल, मनमोहन सिंह का दावा है कि विदेशी पूंजी निवेशकों को भारत में गहरी रुचि है। मीडिया और राजनीति में कुछ वर्ग हमेशा चिंतित रहते हैं कि भारत में विदेशी पूंजी निवेश यथेष्ट नहीं हो रहा है। कोई ये क्यों नहीं सोचता कि विदेशी पूंजी से विकास गांधीजी की स्वदेशी की भावना के खिलाफ है। हम आत्मनिर्भरता पर जोर क्यों नहीं देते? हमारे बाजार की मांसपेशियां डॉलर द्वारा ही निर्मित क्यों होती हैं? दरअसल स्वदेशी की संकीर्ण परिभाषा प्रगति-विरोधी और टेक्नोलॉजी-विरोधी होने का भय उत्पन्न करती है। असल मुद्दा यह है कि हम अपने साधनों और सामथ्र्य से आधुनिक भारत का निर्माण क्यों नहीं कर पा रहे हैं।

हमारी छलनी जैसी व्यवस्था में अनेक छिद्र हैं और राष्ट्रीय ऊर्जा का अपव्यय हो रहा है। समाजवाद के आदर्श को इसी भ्रष्टाचार-लिप्त व्यवस्था ने नष्ट कर दिया। फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई) हमारे लिए हॉलीवुड की फिल्मों की तरह है। उसके गिर्द हमारे राष्ट्रीय आलस्य ने एक भ्रामक गरिमामंडल रच दिया है। उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद आज भी जिंदा हैं, परंतु उनके विविध मुखौटों के कारण हम उन्हें पहचान नहीं पा रहे हैं। करण जौहर भी हॉलीवुड से मसाला लेते हैं और मनोरंजन की दुनिया में एफडीआई के कायल हैं।

अधिकांश लोग आलसी और भ्रष्ट हैं, तथा विदेशी पूंजी निवेश की कामना करते हुए भूल जाते हैं कि इस तरह का निवेश करने वाला मुनाफे के साथ देश की ऊर्जा और आत्मसम्मान भी ले जाता है। दरअसल वर्तमान में राष्ट्रहित न सरकार के मन में है और न ही विपक्ष को इसकी कोई चिंता है।

बहरहाल, करण जौहर को यह आमंत्रण संभव है कि दो कारणों से मिला हो। एक तो उन्होंने कुछ फिल्मों की शूटिंग इंग्लैंड में की है और भारत को छोड़कर सभी देश शूटिंग के लिए खास सहूलियतें देते हैं क्योंकि उनके बाजार को इससे मदद मिलती है। एक फिल्मी यूनिट प्रतिदिन औसतन १५ लाख रुपए खर्च करती है। दूसरा कारण यह हो सकता है कि प्रतिवर्ष करण जौहर अनेक बार लंदन जाते हैं और पांचसितारा होटल में महंगा कमरा किराए पर लेते हैं। वे अपने सारे कपड़े-लत्ते और आधुनिक गैजेट्स लंदन से ही खरीदते हैं। अत: यह संभव है कि ब्रिटिश सरकार के फिल्म विभाग ने उनका नाम सुझाया हो।

करण जौहर बचपन में अत्यंत संकोची स्वभाव के शांत बालक थे और दक्षिण मुंबई के श्रेष्ठि वर्ग की संस्था में शिक्षित हुए। उनके मन में श्रेष्ठि वर्ग का आतंक इस कदर छाया रहा कि उन्होंने अपने परिवार की फिल्मों से जुड़े होने की बात भी छिपाकर रखी। आदित्य चोपड़ा से एक मुलाकात के बाद करण उनके सहायक निर्देशक बन गए। ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ के सेट पर काजोल व शाहरुख उनके व्यवहार से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें फिल्म बनाने की प्रेरणा दी। विगत १५ वर्षो में उन्होंने इतनी सफल फिल्में बनाईं कि आज वह मनोरंजन जगत में एक शक्तिके रूप में उभरे हैं।

सारी उम्र दबकर संकोच में लिप्त रहने वाले करण जौहर सफलता के बाद अब अपने पूरे जोश से जी रहे हंै। गोयाकि वह संकोच और संशय के दिनों की कसर पूरी कर रहे हैं। वह विज्ञापन फिल्मों में अभिनय करते हैं, टेलीविजन पर शो करते हैं और नृत्य-तमाशे के जज भी हो गए हैं। उन्हें मीडिया के कैमरे से इश्क हो गया है। अब लाइमलाइट उनके लिए जिंदगी है और तन्हाई से उन्हें डर लगता है। सितारों की सारी मानसिकता उनके व्यक्तित्व में समा गई है। आदित्य चोपड़ा ने अपनी निजता की रक्षा की है और वह उजागर ही नहीं होते, परंतु उनके शागिर्द करण जौहर कुछ भी नहीं छिपाते।

मनमोहन सिंह बचपन से आज तक निहायत ही संकोचशील व्यक्तिरहे हैं। वह तो अपने बचाव में भी सामने नहीं आते। इतना मितभाषी व्यक्तिआज तक सियासत में नहीं आया। करण जौहर की अच्छी या बुरी फिल्म बनाने से देश को कोई फर्क नहीं पड़ता, परंतु मनमोहन सिंह का संकोच और संशय राष्ट्र को क्षति पहुंचा सकते हैं। यह भी अजीब-सी बात है कि नरसिंह राव सरकार में मंत्री बनकर उन्होंने नेहरू की समाजवादी नीतियों को उलटा कर दिया, परंतु नेहरू-परिवार की सहायता से ही वह प्रधानमंत्री बने हैं। आज सारे देश में वाचालता का तूफान आया है, परंतु मनमोहन सिंह खामोश हैं।