करण जौहर, मुगल साम्राज्य और अनारकली / जयप्रकाश चौकसे

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करण जौहर, मुगल साम्राज्य और अनारकली
प्रकाशन तिथि : 10 जुलाई 2018


खबर आई है कि करण जौहर की नजरें अब मुगल हुकूमत पर पड़ी है। कब्रिस्तान में खलबली मच गई है, दफनाए गए बादशाहों, बेगमों और अनाम खिदमतगार करवटें ले रहे हैं और मरकर भी चैन नहीं पाने वाले अभागे दहशत में हैं। करण जौहर की रुचि अकबर से अधिक बीरबल में हो सकती है। उस दौर में किन्नरों ने डाकियों का काम भी किया है और खत उन्हीं के मार्फत भेजे जाते थे। पैगाम कमल के फूल में रखकर नहरों द्वारा अपने गंतव्य तक भी पहुंचाए जाते थे। यह तरीका सलीम और अनारकली ने भी अपनाया था। खत ले जाने के लिए कबूतरों का इस्तेमाल भी होता था। यह खत दूर बसे आशिक के लिए होते थे।

सूरज बड़जात्या ने भी कबूतर का इस्तेमाल अपनी पहली फिल्म में किया था, फिल्म का नाम था 'मैंने प्यार किया'। इस महान 'खोज' पर गीत भी बनाया गया था 'कबूतर जा जा'। सलमान खान को सितारा हैसियत इसी फिल्म से मिली थी। फिल्मकारों को कबूतरों द्वारा पैगाम ले जाना इतना पसंद था कि बोनी कपूर की फिल्म 'रूप की रानी चोरों का राजा' में हीरों के हार के चोरी के दृश्य में भी चोर कबूतर के द्वारा चुराया गया हीरों का हार बाहर भेजता है। पुलिस समारोह में आए लोगों की तलाशी लेती है परंतु हार तो कबूतर ने अपने आका के ठिकाने पर पहुंचा दिया जाता है। सूरज बड़जात्या की फिल्म 'हम साथ साथ हैं' की जोधपुर में आयोजित शूटिंग के समय ही हिरण के शिकार का अफसाना पैदा हुआ था। भगवान श्रीराम भी हिरण के लिए ही गए थे और रावण को सीता हरण का अवसर मिल गया था। हिरण ने महाकाव्य के घटनाक्रम में परिवर्तन उत्पन्न किए।

उज्जैन में रहने वाले कवि चंद्रकांत देवताले ने हिरण का एक स्वरूप अपनी कविता में प्रगट किया है 'पुराने उम्रदराज दरख्तों से छिटकती छालें/ कब्र पर उगी ताजा घास पर गिरती है/ अतीत चौकड़ी भरते घायल हिरण की तरह/ मुझ में से होते हुए भविष्य में छलांग लगाता है/ मैं उजाड़ में एक संग्रहालय हूं/ हिरण की खाल और एक शाही बाघ को चमका रही है उतरती हुई धूप/ पुरानी तस्वीरें मुझ पर तोप की तरह तनी हुई हैं/ भूख की छायाओं और चीखों के टुकड़ों को दबोचकर नरभक्षी शेर की तरह सजा-धजा बैठा है जीवित इतिहा/ कल सुबह झंडा फहराने के बाद, जो कुछ भी कहा जाएगा/ उसे बर्दाश्त करने की ताकत मिले सबको'। इस कविता का शीर्षक था 14 अगस्त। देवताले हम तुम्हें याद करते हैं।

बहरहाल क्या करण जौहर शाहजहां, मुमताज महल, जहांगीर या औरंगजेब से प्रेरित फिल्म बनाएंगे? विडम्बना देखिए कि देश के बंटवारे के समय गैर-सरकारी तौर पर अकबर हमने रख लिया तो औरंगजेब को पाकिस्तान ने हड़प लिया। इस तरह इतिहास के टुकड़े करने का भी बचकाना प्रयास किया गया है परंतु ग़ज़ल पर पाबंदी नहीं लगी और दोहा भी गिरफ्तार नहीं हुआ। चौपाई भी महफूज़ है। उम्मीद तो कम है कि कोई करण जौहर से पहले कहे कि मुगल-काल पर फिल्म बनाने के पहले वे कम से कम एएल बाशम की किताब 'द वंडर दैट वाज़ इंडिया' का खंड दो जरूर पढ़ें। दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पुस्तक संग्रहालय में हर विषय पर ढेरों किताबें हैं। इस विश्वविद्यालय को राजनीति का अखाड़ा बना दिया गया है। इसलिए बताना कठिन है कि लाइब्रेरी किस हाल में है। हुल्लड़बाजों ने पुणे के एक वाचनालय को बहुत हानि पहुंचाई है।

करण जौहर ने मुगलों पर फिल्म बनाने का जो इरादा जाहिर किया है, उससे शम्मी कपूर द्वारा निर्देशित फिल्म 'मनोरंजन' का एक दृश्य याद आता है। फिल्म का हवलदार नायक बदनाम गली में तैनात किया जाता है। उसे एक तवायफ से इश्क हो जाता है और इसे इज़हार करने के लिए वह बतौर हवलदार बनकर नहीं, एक मुगल नवाब बनकर जाना चाहता है। उससे पूछा जाता है कि मुगल अदब की कितनी जानकारी है? वह जवाब देता है कि तमाम उम्र ईरानी रेस्तरां में मुगलई खाना उसने खाया है। करण जौहर का मुगल ज्ञान भी कुछ इसी तरह का होना संभव है कि देशी फिल्में, विदेशी प्रेरणा से विदेश में बैठकर लिखी हैं।

यह एक सुझाव है कि इस फिल्म को लिखने वे हमेशा की तरह लंदन नहीं जाकर, लाहौर जाएं और वहां अनारकली बाजार में स्थित किसी होटल में ठहरें। गौरतलब है कि इतिहासकार कहते हैं कि अकबर के दौर में कोई अनारकली नामक महिला महल में या उनके आसपास थी ही नहीं। यह अफसाना आगा जान हश्र काश्मीरी के एक काल्पनिक नाटक से उठाया गया है। बहरहाल, अनारकली बाजार एक हकीकत है।