करण जौहर की 'तख्त'और बुरहानपुर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 05 दिसम्बर 2018
करण जौहर इतिहास प्रेरित फिल्म 'तख्त' बनाने जा रहे हैं, जिसमें एक दर्जन सितारे अभिनय करेंगे। जाह्नवी कपूर अपने तफल्लुज दुरुस्त कर रही हैं। खबर है कि वह राजकुमारी जैनाबादी की भूमिका करने जा रही हैं, जिन्होंने औरंगजेब का विवाह निवेदन अस्वीकार किया था। जाह्नवी कपूर के दादा सुरेंद्र कपूर, के. आसिफ की 'मुगले आजमalt39 में सहायक निर्देशक थे। मुगल इतिहास में कहीं भी अनारकली का जिक्र नहीं है। उनका जिक्र आगा जान हश्र के नाटक में उपलब्ध है परंतु लाहौर में अनारकली बाजार है तो यह संभव है कि इस नाम की महिला रही होगी। प्राय: इतिहास प्रेरित फिल्मों में प्रदर्शित प्रेम-प्रसंग काल्पनिक होते हैं। औरंगजेब और राजकुमारी जैनाबादी का प्रकरण बुरहानपुर से जुड़ा है, जिसे मुगल बादशाह 'दख्खन का द्वार' कहते थे। बुरहानपुर के इतिहास पर नंदकिशोर देवड़ा और सुरेश मिश्रा ने गहन शोध करके दो पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें खूनी भंडारा नामक स्थान के नक्शे भी खोजकर लगाए गए हैं। इसी जगह से पूरे शहर में पानी उपलब्ध कराया जाता था और खूनी भंडारा में पानी का आना रहस्यमय ही रहा है। इस जल संग्रहण एवं वितरण व्यवस्था की प्रेरणा ईरान से मिली बताई गई है। कभी किसी प्रेम में हताश युवा ने इस स्थान पर आत्महत्या की थी। तभी से पानी के इस संग्रह को 'खूनी भंडारा' कहा जाने लगा। लगभग 350 पृष्ठों की किताब दर्जनों दुर्लभ चित्रों से सजी है। सत्ता प्राप्त करने के लिए जंग सभी जगह लड़ी गई हैं परंतु इससे मुगलों द्वारा ही ईजाद किया ऐसी धारणा प्रचार माध्यमों ने पुख्ता कर दी है और सम्राट अशोक ने अपने भाइयों की हत्या की थी, जिसका जिक्र भी अब नहीं किया जाता। अगर हम महाभारत को गल्प की तरह पढ़े तो उसमें उस काल का इतिहास पढ़ने का आभास होगा और अगर महाभारत को इतिहास की तरह पढ़े तो गल्प पढ़ने का अहसास होगा। तथ्य और कल्पना के बीच एक अत्यंत क्षीण रेखा है।
इस संदर्भ में महान इतिहासकार अर्नाल्ड टॉयनबी का कथन है कि इतिहास नाटक, उपन्यास और कविता की तरह माइथोलॉजी से जन्मा लगता है, जो समय को समझने और समझाने का एक बाबा आदम के जमाने का तरीका रहा है। वयस्कों के स्वप्न, परीकथाएं मिलकर ऐसा कुछ रचती हैं कि यह समझना कठिन हो जाता है कि कहां सत्य समाप्त होता है और कहां से अफसाना शुरू होता है। याद आता है 'मुगले आज़म' का दृश्य, जिसमें शहंशाह अकबर अपने पुत्र सलीम को कहते हैं कि शिल्पकार द्वारा बनाई गई मूर्ति पर से परदा हटा दो और सलीम तीर चलाकर परदा हटा देते हैं। दरअसल, कलाकृति की तरह अनारकली वहां खड़ी की गई थी, क्योंकि मूर्तिकार का काम पूरा नहीं हुआ था। तथ्य जानकर अकबर अनारकली से पूछते हैं कि उसकी ओर चले तीर से वह डरी नहीं, तो अनारकली का जवाब है कि वह अफसाने को हकीकत में बदलते हुए देखना चाहती थी।
मुगलों के भारत आने के सदियों पूर्व सूफी लोग भारत आ चुके थे। उत्तर पूर्व के क्षेत्र की पृष्ठभूमि पर लिखे अमिताभ घोष के उपन्यास 'एंग्री टाइड' में भी सूफी आगमन की पुष्टि की गई है। उस क्षेत्र में इतनी अधिक वर्षा होती है कि बाढ़ आने के कारण वहां के शेर भी वृक्ष पर चढ़ना जानते हैं। जलवायु मनुष्य, जानवर और पक्षियों के स्वभाव बदलने में सक्षम है। राजनीति में कौवे हंस की चाल चलते हैं और कायर शेर की खाल पहनकर दहाड़ते हैं।
बहरहाल करण जौहर तो जैनाबाद और बुरहानपुर के सेट मुंबई में लगाएंगे और यह भी संभव है कि उनकी राजकुमारी जैनाबादी स्विट्जरलैंड में गाती और ठुमकती हुई दिखे। ज्ञातव्य है कि मुगल हरम पर किन्नरों को पहरेदार नियुक्त किया जाता था। वे निरापद समझे जाते थे। करण जौहर की फिल्मों में समलैंगिकता के संकेत होते हैं और मुगलकालीन फिल्म 'तख्तalt39 में उन्हें खुलकर खेलने का अवसर मिलेगा। मुगल काल में तीसरे जेंडर की बड़ी अहमियत थी। बहरहाल, नंदकिशोर देवड़ा की बुरहानपुर पर लिखी किताब में विवरण है कि उस दौर में बुरहानपुर में कुछ फारसी भाषा में लिखने वाले शायर भी हुए हैं। शाहजहां के साथ ईरान के शायर साहब तबरेज़ी ने भी बुरहानपुर की यात्रा की थी और वहां की शायरी से प्रभावित हुए। उन्होंने लिखा-'हजार हैफ़ कि अर्फी व नोई व मंजर, नींद जमा व दाल अयारे बुरहानपुर। कि कूव्वते सुखन व लुत्फ तवा फीदीनंद, नमी शुदंद व तबा बुलेन्दे खुद मगरुर।' उनका अर्थ है कि मुस्लिम व हिंदू शायरों ने साहित्य समृद्ध किया। बहरहाल, शहर और शायर का जिक्र किया जा रहा है तो गुलजार का 'माया मेमसाहब'का गीत है- यह शहर बहुत पुराना है/ हर सांस में एक कहानी/ हर सांस में एक अफसाना या बस्ती दिल की बस्ती है/ कुछ दर्द है, कुछ रुसवाई है/ ये कितनी बार उजाड़ी है, यह कितनी बार बसाई है/ यह जिस्म है कच्ची मिट्टी का भर जाए तो रिसने लगता है/ बाहों में कोई थामे तो आगोश में गिरने लगता है/ दिल में बसकर देखो तो, यह शहर बहुत पुराना है।