कराहटें / विकेश निझावन
Gadya Kosh से
बूढ़ी सास बार-बार कराह रही थी—“अरे, कोई है…एक गिलास पानी ही दे दो…।” सास की आवाज़ को अनसुना कर बहू ने बेटे को पढ़ाना शुरू कर दिया—“टू वन्ज़ आर टू, टू टूज़ आर फ़ोर…।” सास के कराहने की आवाज़ पुन: आई तो बहू ने अपना स्वर और ऊँचा कर लिया—“टू वन्ज़ आर टू, टू टूज़ आर फ़ोर!” बार-बार दादी की कराहटें सुन पोता बोल उठा,“मम्मी, दादी…!” “तो तुम्हारा ध्यान टेबल्ज़ की तरफ़ है ही नहीं! अगर इस बार तेरे नाइन्टी परसेंट नम्बर न आए तो देख…मैं तेरी जान ले लूँगी।” कहते हुए मम्मी ने कसकर उसका कान मरोड़ा। पोते की चीख सुनकर दादी ने कराहना बंद कर दिया था।