करीना कपूर: जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां... / जयप्रकाश चौकसे

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करीना कपूर: जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां...
प्रकाशन तिथि : 09 अक्तूबर 2019


करीना कपूर खान ने कहा है कि वे अपने बुढ़ापे तक अभिनय जारी रखेंगी। मृत्युपर्यन्त अभिनय करते रहने की उनकी कामना उनके दादा राज कपूर के लिए लिखी शैलेन्द्र की पंक्तियां याद दिलाती हैं, 'जीना यहां मरना यहां इसके सिवा जाना कहां/ जी चाहे जब हमको आवाज़ दो, हम हैं वहीं हम थे जहां/ जीना यहां मरना यहां ...कल खेल में हम हों न हों गर्दिश में तारे रहेंगे सदा/ भूलोगे तुम, भूलेंगे वो, पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा/ होंगे यहीं अपने निशां, इसके सिवा जाना कहां, जीना यहां मरना यहां ...'। करीना कपूर के जन्म के पहले रणधीर कपूर ने तीन पीढ़ियों की सोच की खाई पर 'कल, आज और कल' बनाई थी, जिसमें एक गीत था, 'जब हम होंगे साठ साल के और तुम होंगी पचपन की, बोलो प्रीत निभाओगी क्या, तब भी अपने बचपन की।' आज पिता तेहत्तर के करीब हैं और माता बबीता भी इतनी ही उम्र की हैं, कुछ महीनों का फर्क है। उन्होंने निराले अंदाज से अपनी प्रीत निभाई है, क्योंकि दोनों अलग-अलग रहते हुए एक-दूसरे से संपर्क बनाए हुए हैं और प्रति सप्ताह शाम का खाना किसी रेस्तरां में साथ खाते हैं। उन्होंने दूरी बनाते हुए निकटता को कायम रखा है।

चेम्बूर स्थित राज कपूर के बंगले के अहाते में नीम और पीपल के दो वृक्ष साथ-साथ चिपके हुए से लगे हैं। विपरीत स्वभाव वाला युग्म ही उनके रिश्ते को भी बयां करता है। लोनी का सौ एकड़ का फार्म हाउस बेचने के लिए वे मजबूर किए गए थे, परंतु आरके स्टूडियो बेचने का निर्णय उनका अपना था। रणधीर कपूर प्रतिदिन चेम्बूर से बांद्रा आते हैं, जहां उनकी पत्नी और दोनों पुत्रियां अपने अलग-अलग मकानों में रहते हैं। उन सबका परस्पर संपर्क और साथ बना हुआ है।

ज्ञातव्य है कि करीना कपूर को राकेश रोशन ने अपने पुत्र ऋतिक को अभिनय क्षेत्र में प्रवेश कराने वाली फिल्म 'कोई मिल गया' के लिए अनुबंधित किया था। मुंबई के स्टूडियो में आठ दिन शूटिंग भी करनी थी। शूटिंग का सबसे लंबा चलने वाला दौर फुकेट द्वीप में करने के लिए पानी के एक जहाज में यूनिट के लिए आरक्षण किया गया था। करीना अपना स्वतंत्र मेकअप मैन ले जाना चाहती थीं, जबकि किफायत के लिए पहचाने जाने वाले निर्माता राकेश रोशन अपनी मेकअप टीम द्वारा ही सारे कलाकारों का मेकअप करवाते थे। इसी विवाद के चलते करीना ने फिल्म छोड़ दी थी।

जेपी दत्ता अभिषेक बच्चन को 'रिफ्यूजी' के लिए अनुबंधित कर चुके थे। ज्ञातव्य है कि जेपी दत्ता 'धरम करम' में रणधीर कपूर के सहायक निर्देशक थे। उन्होंने कुछ दिन राज कपूर के सहायक के दौर पर भी 'बॉबी' के निर्माण के अंतिम चरण में काम किया था। अत: करीना कपूर को 'रिफ्यूजी' में लिया गया। इस फिल्म में संगीतकार अनु मलिक ने अलका याग्निक से दो गीत गवाए थे और उन गीतों में अलका याग्निक ने लता के समकक्ष खड़ा होने का प्रयास किया था। दु:ख है कि टेलीविजन पर दिखाए युवा गायकों के कार्यक्रम में वे गीत नहीं गाए जाते। अनु मलिक प्रतिभाशाली हैं। ज्ञातव्य है कि उनके पिता सरदार मलिक भी प्रतिभाशाली संगीतकार थे परंतु उन्हें अवसर कम मिले। इस दुखद घटना का अर्थ अनु मलिक ने यह निकाला कि उन्हें अपने पिता की लीक से हटकर काम करना है। विफलता का भय व्यक्ति को मनचाहा काम ही नहीं करने देता। ज्ञातव्य है कि रणधीर कपूर की पत्नी बबीता की मां फ्रांस की रहने वाली थीं और करीना पर अपनी नानी का कुछ प्रभाव है। यह जेनरिक प्रभाव है। उसके सौंदर्य में भारत और फ्रांस की झलक देखी जा सकती है। करीना अत्यंत अनुशासित व सक्षम कलाकार हैं। वे आउटडोर शूटिंग में अपने मैकअप मैन के साथ ही अपने भोजन बनाने वाले को भी साथ ले जाती हैं। उनके भोजन में घी, तेल, फैट नहीं होता। वे नमक और शकर भी अत्यंत अल्प मात्रा में ग्रहण करती हैं। वे योगासन भी करती हैं। इसी अनुशासन व फिटनेस के प्रति घोर आग्रह के कारण वे बुढ़ापे तक अभिनय कर सकती हैं। असली समस्या यह है कि उम्रदराज पात्रों का आकल्पन करने वाले लेखक कहां मिलेंगे?

करीना कपूर अगाथा क्रिस्टी की उम्रदराज जासूस मिस मारपल की भूमिका बखूबी अभिनीत कर सकती हैं। अगर भविष्य में सोनिया गांधी की बायोपिक बनती है तो करीना इस भूमिका का निर्वाह कर सकती हैं। चार्ल्स डिकेन्स के 'द ग्रेट एक्सपेक्टेशन्स' की उम्रदराज सनकी बुढ़िया की भूमिका भी उन्हीं के लिए लिखी हुई लगती है। करीना कपूर की नानी और दादी दोनों ही विलक्षण सौंदर्य की धनी रही हैं और वे कृष्णा कपूर बायोपिक भी अभिनीत कर सकती हैं। कृष्णा कपूर बायोपिक में रणधीर कपूर और बबीता भी काम कर सकते हैं परंतु राज कपूर की भूमिका के लिए अभिनेता चुनना अत्यंत कठिन होगा। ऋषि कपूर और नीतू का पुत्र रणवीर कपूर प्रतिभाशाली है और कोई भाई-बहन कहानी में रणवीर कपूर और करीना कपूर कमाल कर सकते हैं। अपनी यादों में हम प्राय: अपने बचपन, किशोरावस्था और युवावस्था को याद करते हैं परंतु बुढ़ापे की कल्पना करने से भी भयभीत रहते हैं। यह पलायन का ही एक स्वरूप है। बुढ़ापे में सतह के नीचे छिपे सत्य भी दिखने लगते हैं परंतु हम सत्य अभिव्यक्त करने से घबराते हैं। बुढ़ापा सत्यम शिवम सुंदरम है।