करों के भार से सिनेमाघरों पर अस्तित्व का संकट / जयप्रकाश चौकसे

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करों के भार से सिनेमाघरों पर अस्तित्व का संकट
प्रकाशन तिथि :08 अगस्त 2017


अनेक प्रांतों ने फिल्म उद्योग की मांगों पर विचार करके मनोरंज कर समाप्त कर दिया था। जी.एस.टी. लागू होने के बाद प्रांतीय सरकारों ने मनोरंजन कर नियम को पुन: लगाने का विचार किया है और अफसरों ने इसका अनुमोदन भी कर दिया है। इसके साथ ही यह कर लगाने और वसूल करने का अधिकार नगर पालिका, नगर निगम व पंचायतों के अधीन किया जा रहा है जिसका परिणाम यह होगा कि एक ही फिल्म विविध शहरों में विविध प्रवेश दरों पर दिखाई जाएगी। उद्योग के लिए सबसे हानिकारक बात यह है कि शो-टैक्स बढ़ाया जा रहा है। परिणामस्वरूप यह संभव है कि कभी किसी शो में अत्यंत कम दर्शक मौजूद हों तो सिनेमा मालिक को शो-टैक्स अपनी जेब से अदा करना होगा।

भारत में मात्र नौ हजार एकल सिनेमा हैं और उनमें से भी अनेक निकट भविष्य में बंद हो सकते हैं। सिनेमा कोई ऐसा वोट बैंक नहीं है कि सरकार उसे बचाने का प्रयास करे। विगत समय में कपड़ा बाजार भी सरकारों की दमनकारी नीतियों के विरोध में लंबी हड़ताल पर जा चुके हैं परन्तु सरकार के कान पर जूं भी नहीं रेंगी।

गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ हड़ताल को एक शस्त्र के रूप में विकसित किया था। वह शस्त्र इस सरकार ने भोथरा सिद्ध कर दिया है। मौजूदा हुक्मरान यह जानते हैं कि उनका कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने एक धर्म विशेष के मानने वालों के प्रति इतनी नफरत पैदा कर दी है कि अपनी तमाम असफल योजनाओं के बावजूद उन्हें बहुसंख्यक वर्ग के मत प्राप्त होने का यकीन हो चुका है। एक सौ बत्तीस वर्षीय कांग्रेस कोमा में जा चुकी है। आज भी अगर इस दल की शिखर नेता यह हलफिया बयान दे दें कि उनके परिवार का कोई सदस्यत प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं होगा। उनके दल के युवा नेताओं के हाथ बागडोर रहेगी तो कोमा से बाहर आने की संभावना हकीकत में बदल सकती है।

बहरहाल एकल सिनेमा का अस्तित्व कायम रखना जरूरी है क्योंकि साधनहीन वर्ग के मनोरंजन का वह एकमात्र साधन है। साधनहीन वर्ग शास्त्रीय संगीत व कलाओं के प्रदर्शन में रुचि नहीं ले पाता, वह अपनी ओढ़ी हुई नैतिकता के कारण मुजरा देखने भी नहीं जा सकता और अब कोठों पर विशुद्ध मुजरा होता भी नहीं है। अत: उसके पास मनोरंजन का एकमात्र साधन सिनेमा ही बचा रहता है। सिनेमाघर के आस-पास एक बाजार विकसित हो जाता है जिससे व्यापार जगत को लाभ होता है। सिनेमाघरों में अनेक कर्मचारी काम करते हैं। करों के भार से सिनेमाघर बंद हो जाने पर बेकारों की संख्या में वृद्धि होगी। यह भी संभव है कि फिल्म देखने को इतना महंगा कर देने के कारण आम आदमी अपना आक्रोश सड़कों पर प्रदर्शित करेगा। दरअसल फिल्में देखना अपरोक्ष रूप से सरकारों को मजबूती प्रदान करता है क्योंकि अवाम के आक्रोश का शमन हो जाता है जब परदे पर नायक खलनायक की पिटाई करता है।

फिल्म के साथ सरकार के प्रचार के रूप में गढ़े वृतचित्र दिखाए जाते हैं। हुक्मरान की छवि गढ़ने का काम इनके माध्यम से हो रहा है। यह खामोखयाली है कि फिल्म के पहले राष्ट्रगीत के बजाए जाने से अवाम में देशभक्ति की भावना बढ़ती है। सिनेमाघर का बंद होना, इस अर्थ में भी, देश को हानि पहुंचा सकता है। इस समय देशप्रेम को नशे के रूप में फैलाया जा रहा है तो फिल्म देखना उस चखने की तरह हो जाता है जो नशा करने वाले शराब के साथ खाते हैं।

प्राय: जब राही किसी ठिकाने का पता पूछता है तब सिनेमाघर का इस्तेमाल किया जाता है कि फलां सिनेमाघर के पीछे वाली गली में अमुक व्यक्ति रहता है। दुकानों के पते भी इसी तरह बताए जाते हैं। अत: सिनेमाघर स्मृति के गूगल में विशेष महत्व का स्थान रखता है। इस समय सिनेमाघरों का अस्तित्व संकट में एक भीतरी कारण से भी आ गया। वह यह है कि फिल्मकार इतनी ऊबाऊ फिल्में बना रहे हैं कि दर्शक सिनेमा से विमुख होता जा रहा है। 'ट्यूबलाइट', 'जग्गा जासूस' और 'सेजल मेट…' ने बहुत भारी धक्का दिया है। इस समय एक अदद सुपरहिट प्राणवायु का काम कर सकती है। रोटी, कपड़ा और मकान के अभाव के साथ ही जुड़ गया है मनोरंजन का अभाव। आम आदमी स्वयं को चारों ओर से घिरे चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु की तरह महसूस कर रहा है।

सिनेमाघरों में वितरक की ओर से एक प्रतिनिधि टिकट बिक्री के हिसाब-किताब पर निगाह रखता है। वह दर्शक प्रतक्रिया की जानकारी भी वितरक को देता है। सिनेमाघर में सन्नाटे का अर्थ मनोरंजन उद्योग के पेट से जुड़ा है। तालियों की ध्वनि फिल्म संसार की गिंजा है।

लोकसभा और राज्यसभा में माननीय सदस्य केवल एक हाथ टेबल पर मारते हैं। तालियां दोनों हाथों से बजाने पर ही माधुर्य एवं सार्थकता को जन्म देती है। यह एक हाथ से टेबल थपथपाना महज रस्म अदाएगी है क्योंकि जो हुक्मरान मौजूद नहीं है, वह इसका फुटेज अवश्य देखता है। सदस्य के माथे पर पड़े हर बल पर उसकी निगाह है। सदस्यों के मौजूद होने का व्हिप जारी करना कहा जाता है गोयाकि कोड़ा सभी जगह इस्तेमाल किया जाता है।