करोड़पतियों और कंगलों का उत्पाद / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 26 अगस्त 2019
दुनिया में अरबपतियों की सूची जारी की गई है। सबसे अधिक अरबपति अमेरिका में हैं। चीन नंबर दो पर और जापान नंबर तीन पर है। भारत को छठा स्थान प्राप्त हुआ है। इस तरह की सूचियों में कभी गरीबों की संख्या नहीं दी जाती, क्योंकि आसमान में तारों की संख्या नहीं बताई जा सकती। सूरज, चांद और अन्य ग्रह उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। पूरी दुनिया में अरबपतियों की संख्या मात्र 2252 है। सिनेमा उद्योग में बमुश्किल आधा दर्जन सितारों की आय करोड़ों में है परंतु चरित्र भूमिकाएं अभिनीत करने वालों को मामूली मेहनताना मिलता है तथा फिल्म दृश्यों में भीड़ जूनियर कलाकारों द्वारा जमाई जाती है और उन्हें 300 प्रति दिन ही मिल पाता है। आर्थिक खाई विकराल समस्या है। सभी मनुष्यों के पास समान धन नहीं हो सकता परंतु मुट्ठी भर लोगों के बाद अधिकतम संपदा हो और अधिकतम का गुजारा न्यूनतम में चले, इसे दूर किया जा सकता है। रोटी, रोजी, कपड़ा और मकान सभी को हासिल हो, यह किया जा सकता है। एक धनाढ्य व्यक्ति के पास दर्जनभर मर्सेडीज कारें होती हैं तो उसके सेवकों के पास मारुति 800 या कम से कम दोपहिया स्कूटर तो होना चाहिए।
गुरुदत्त की फिल्म 'मिस्टर एंड मिसेज 55' में नायिका अमीर परिवार की कन्या है, जिसके वयस्क होते ही वह अपने पिता की संपत्ति की उत्तराधिकारी बन जाती है और नायक एक अखबार में कार्टून बनाता है। नायिका की सरपरस्त दंभी महिला नायक से पूछती है कि क्या वह कम्युनिस्ट है तो वह जवाब देता है कि वह कार्टूनिस्ट है। दंभी महिला कहती है कि एक ही बात है गोयाकि साम्यवाद और व्यंग्यकार समान है। असमानता व अन्य आधारित व्यवस्था ने साम्यवाद के साथ छाया युद्ध जारी रखा है। समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों को पूंजीवाद पालता है और उन्हें व्यापकता प्रदान करता है। चीन में करोड़पतियों की निरंतर बढ़ती संख्या रेखांकित करती है कि साम्यवादी साधनों से वह पूंजीवादी लक्ष्य ही हासिल करना चाहता है।
23 अगस्त को प्रसारित 'कौन बनेगा करोड़पति' के एपिसोड में विशेष आमंत्रण पर सिन्धुताई सपकाल आईं थीं। उन्होंने बताया कि जब उनके पति ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया तब वे शमशान भूमि के निकट ही रात व्यतीत करती थीं। याद आता है राज कपूर की 'राम तेरी गंगा मैली' की नायिका भी अपने को लोलुप पुरुषों से बचाए रखने के लिए रात शमशान भूमि में ही काटती थी। तथ्य और कल्पना इसी तरह गलबहियां करते नजर आते हैं। व्यवस्था एक साथ दो उत्पाद पैदा करती है। उद्योगपति नेता को चुनाव जीतने के लिए धन और संसाधन उपलब्ध कराता है और नेता मंत्री बनते ही उद्योगपति को धन कमाने के लाइसेंस उपलब्ध कराता है। यह दुष्चक्र सदियों से जारी है और गरीबी इसी का बाय प्रोडक्ट है। अतः गरीबी और करोड़पतियों का उत्पादन किया जाता है। सारिका में प्रकाशित मराठी लेखक की कथा से प्रेरित फिल्म 'साथ-साथ' रमण कुमार ने बनाई थी। मूल कथा का नाम 'कोलम्बस' था। फिल्म का नायक युवा छात्र नेता है, साम्यवाद उसका आदर्श है। उसके जोश और आदर्श से प्रभावित छात्रा उससे प्रेम करने लगती है। विवाह के पश्चात वह प्रकाशन का व्यवसाय प्रारंभ करता है। रिश्वत देनी पड़ती है और कालांतर में वह धनवान बन जाता है। उसकी पत्नी उसके नैतिक पतन से क्षुब्ध होकर उसे छोड़ना चाहती है। कुछ इसी तरह भारत में साम्यवाद में विश्वास करने वाले पूंजीवादी पद पर चल पड़ते हैं। फारुख शेख और दीप्ति नवल अभिनीत इस फिल्म के गीत जावेद अख्तर ने लिखे थे।
गीत लेखन में उनका प्रवेश इसी फिल्म से हुआ। एक गीत इस तरह है- 'क्यों ज़िंदगी की राह में मजबूर हो गए, इतने हुए करीब कि दूर हम दूर हो गए'। एक अन्य गीत है,'ये मेरा घर, ये तेरा घर, अगर किसी को देखना है तो मांग ले मेरी नजर तेरी नजर'। किताब 'गॉडफादर' और उससे प्रेरित फिल्म में इस आशय की बात कही गई है कि हर करोड़पति की अलमारी में एक कंकाल छुपा होता है। गोयाकि अमीरी का रास्ता अपराध की गलियों से ही बनता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि हर अरबपति अनिवार्यत: इसी मार्ग से गुजरा है। अजीम प्रेमजी जैसे अपवाद भी हैं, जिन्होंने अपनी अपार संपत्ति समाज सुधार के काम में लगा दी। टाटा औद्योगिक संस्थान भी सामाजिक सदस्यता के कार्य करते हैं। दरअसल साधारणीकरण नहीं किया जा सकता कि हर धनवान बुरा है या हर गरीब अच्छा है। फिल्मों ने बहुत भ्रम फैला दिए हैं। नायक गरीब और नायिका का अमीरजादी होने का फॉर्मूला बन गया है। अच्छे और बुरे लोग सभी क्षेत्रों में सक्रिय हैं।