करोड़पतियों का गरीब देश / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 20 सितम्बर 2018
ताजे आंकड़े जारी हुए हैं कि विगत 8 वर्षों में भारत में करोड़पतियों की संख्या बढ़ी है और इसी के साथ प्रति व्यक्ति कर्ज भी बढ़ा है। भारत में जन्मे हर शिशु पर भारी कर्ज है। यह कर्ज भारतीय सरकार पर है। व्यवस्था को कायम रखने की कवायद में ही देश की पूंजी बहुत हद तक चली जाती है। प्रधानमंत्री कार्यालय में लगभग डेढ़ सौ आला अफसर कार्यरत हैं। उन्हें काल्पनिक विकास के आंकड़े जारी करने होते हैं। वे लोग अपनी इस प्रतिभा से गल्प लिखे तो साहित्य समृद्ध हो सकता है। विगत आठ वर्षों में करोड़पतियों का 'उत्पादन' हुआ है। आम आदमी की हालत बदतर हुई है।
सरकार निरंतर घाटे का बजट प्रस्तुत करती है। इसी घाटे से कर्ज बढ़ रहा है। एक भारतीय संत विचारक ने किसी और संदर्भ में यह कहा था कि उधार लेकर घी खाया करें। यह उन्होंने घी के पौष्टिक होने को रेखांकित करने के लिए कहा था परंतु हम संत वाणियों के शाब्दिक अर्थ से बंधे हैं। इसलिए कर्ज लेते रहें और घी पीते रहें।
अब डॉक्टर कहते हैं कि घी पीने से कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है। घी घातक है। करोड़पति उत्पादन में भी हम चीन से बहुत पीछे हैं। हमारे यहां पैसे और प्रशिक्षण से वकील बजट बनाता है, इसीलिए बजट अदालत में दोषी को निर्दोष बताने की जिरह की तरह लगता है। फिल्म उद्योग मंत्रियों से अपने उद्योग के लिए रियायत मांगने जाता है तो उसे कहा जाता है कि सिनेमाघरों में भीड़ जुटी है और लोकप्रिय सितारों के मेहनताने करोड़ों में दिए जा रहे हैं। सच्चाई यह है कि सिनेमाघरों में केवल सप्ताहांत में भीड़ नज़र आती है। मंत्रीगण भी छुट्टी के दिन ही फिल्म देखते हैं। आजकल कोई बड़ा सितारा मेहनताना लेता ही नहीं है। वह अपने अभिनय के एवज में फिल्म का लाभांश लेता है अर्थात उसका मेहनताना फिल्म के सफल होने पर निर्भर करता है। सितारा मेहनताना सीधा उसके काम के परिणाम से जुड़ा है। इस तरह मंत्रीगण विधायक और सांसदों को भी परिणाम से जोड़े तो उन्हें चंद कौड़ियां ही मिलेंगी। सुना है कि वे अपने रेलवे पास भी बेच देते हैं। चुनाव परिणाम का कोई आकलन नहीं किया जा सकता है, इसलिए वे अपने अच्छे दिनों को जमकर भुनाते हैं। यह स्वाभाविक ही है।
हर देश के करोड़पतियों की संपत्तियां अलग-अलग मूल्य रखती हैं। इस तरह अमेरिका का करोड़पति भारत के करोड़पति से अधिक अमीर है। एक डॉलर अस्सी रुपए के बराबर है और निरंतर उसका मूल्य गिरता जा रहा है। यही हाल रहा तो बोरी भरकर रुपए ले जाने पर चंद डॉलर ही हाथ में आएंगे। एक किस्सा यह है कि एक दफ्तर के करोड़पति ने अपना धन भवन की ऊपरी मंजिल में रखा था। उसका ख्याल था कि मरने के बाद ऊपर जाते हुए ऊपरी मंजिल से अपना धन साथ ले जाएगा। उसके भरोसेमंद और मुंह लगे मुलाजिम ने उसे सलाह दी कि सारा धन बेसमेंट में रखें, क्योंकि लालची, स्वार्थी व्यक्ति स्वर्ग नहीं नर्क जाता है, जिसका रास्ता बेसमेंट की ओर से गुजरता है। क्या स्वर्ग में भी रुपए के अवमूल्यन के कारण हमें अधिक धन देना होगा? क्या अप्सराएं भी धन लेती हैं? क्या यहां के खरे सिक्के वहां खोटे माने जाते हैं?
हर दौर के करोड़पतियों की रुचियां और मिजाज अलग-अलग लग रहें। पुराने दौर के करोड़पति संगीतकारों और कलाकारों को प्रश्रय देते थे। ज्ञातव्य है कि तानसेन अकबर के नौ रत्नों में से एक माने जाते थे। राजा और महाराजाओं ने सृजनशील लोगों को सम्मान और धन दिया है। वर्तमान के करोड़पतियों का कला, साहित्य और संगीत से कोई संबंध नहीं है। वे अपने घर की दावतों और उत्सवों में फिल्म सितारों को आमंत्रित करते हैं। बारहमासी क्रिकेट ने भी खिलाड़ियों को करोड़पति बना दिया है। यह गौरतलब है कि कबड्डी, खो-खो और हॉकी के खिलाड़ी करोड़पति नहीं है। क्रिकेट को राजा का दर्जा और देसी कबड्डी को सेवक का दर्जा दिया गया है। इसी तरह भाषा में भी अंग्रेजी महारानी है शेष सभी दासियां हैं। एक गलत अंग्रेजी लिखने वाला लेखक शुद्ध हिंदी लिखने वाले लेखकों से अधिक धन कमा रहा है। इस नवधनाड्य लेखक के बारे में खुशवंत सिंह ने कहा था कि जब वह अंग्रेजी लिखना सीख जाएगा तभी वे उसकी किताब पढ़ेंगे। आज भी लुगदी साहित्य का बाजार गर्म है। प्रेमचंद अपने दौर में गरीब थे और अपने पुनरागमन में भी गरीब ही रहेंगे। लेखन से करोड़पति बनने के लिए मार्केटिंग का ज्ञान जरूरी है।