कर्तव्य और प्रेम / पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'
'बतलाते क्यों नहीं?'
'क्या बतलाऊँ, उसकी मृत्यु ऐसी ही बदी थी।'
'कैसे?'
'जेलखाने में, भीषण रोग से पीड़ित होकर।'
'वह कैदखाने में भेजे क्यों गए, उनका अपराध?'
'मुझे तंग न कर बेटी, जा सो रह, मुझे भी नींद आ रही है।'
'नींद आ रही है? फिर वही पुराना बहाना? अच्छा ठहरिए, मैं थोड़ी चाय बनाकर ले आती हूँ। सोने न चले जाइएगा, मैं अभी, अभी आई।'
'ठहर, सुन ले, डोरा - डोराइना!'
बूढ़ा रोवस्की बुलाता ही रह गया। परंतु डोराइना चाय लाने के लिए चली गई। क्षणभर के लिए कोठरी में सन्नाटे का साम्राज्य हो गया। परंतु रोवस्की के हृदय में शांति कहाँ? वह सोचने लगा -
'क्या डोरा को भी दीक्षा देनी होगी? नहीं! नहीं? अवश्य "नहीं।" वह पथ अत्यंत भयानक है। उस पथ के पथिक सब नहीं हो सकते। डोरा पुष्प की तरह कोमल है। उससे फौलाद का काम कैसे लिया जाएगा? जिसे कोमलता की गोद में खेलना चाहिए उसे काँटों में घसीटना क्या उचित होगा?'
सामने की खिड़की से ठंडी हवा का एक झोंका रोवस्की की ओर आया। सहसा उसकी दृष्टि खिड़की की ओर जाते-जाते एक चित्र पर जा पड़ी। चित्र खिड़की के ऊपर दीवार पर लटक रहा था। वह चित्र रोवस्की की मातृभूमि रूस का था। उसमें कोटि-कोटि रूसियों की जननी एक वृक्ष में निर्दयता से कसी हुई दिखलाई गई थी। उसके चारों ओर जारशाही के बहुत से गुलाम संगीनें तानें खड़े थे। मानो कह रहे थे, 'मुँह से आवाज निकली नहीं कि तेरी बोटी-बोटी काट डाली जाएगी।' माता के करुणापूर्ण नेत्रों के सम्मुख उसके कितने ही बच्चे विविध प्रकार से मारे जा रहे थे। कोई आरों से चीरा जा रहा था, कोई मिट्टी का तेल डालकर जलाया जा रहा था, कोई फाँसी पर लटकाया जा रहा था और किसी पर कोड़े बरस रहे थे। किसी देशभक्त की बहन-बेटी की लज्जा की हत्या की जा रही थी! चित्र के नीचे रक्ताक्षरों में लिखा था - 'अपमानिता माता!' अपमानिता माता! रोवस्की अपने को भूल गया। दुखिया माता का ध्यान आते ही उसकी आँखों से आँसू आ गया। वह सोचने लगा -
'जब तक मातृभूमि की छाती पर अत्याचारियों का तांडव नृत्य हो रहा है, जब तक जननी जन्मभूमि के बच्चे "मातृप्रेम" रूपी अपराध के कारण विविध यातनाएँ भोग-भोगकर प्राण-विसर्जन कर रहे हैं, जब तक स्वदेश पर भयंकर विषमता का राज्य है, तब तक सुखभोग की कल्पना कायरता है, आत्महत्या नहीं, मातृहत्या है। इस समय रूस की प्रत्येक संतान का एक - और केवल एक ही - कर्तव्य है। और वह है, माता के उद्धार की चेष्टा। मेरा पुत्र यदि माता के लिए बलि हो गया तो क्या चिंता। किसके ऐसे भाग्य हैं जो मातृपूजन में अपने रक्त का तर्पण करे! मेरी डोराइना यदि जोन ऑव आर्क की तरह माता के उद्धार की चेष्टा कर सके, मेरी डोराइना यदि रणचंडी का रूप धारण कर देशद्रोहियों का नाश कर सके! ओ हो हो!! कैसा गौरवमय - कितना सुंदर यह विचार है!!'
इसी समय डोराइना चाय लेकर आई और पिता के सम्मुख प्याला रखती हुई कहने लगी, 'धीरे-धीरे चाय पीते जाइये और मेरे भाई की मृत्यु की कथा सुनाते जाइए। आज बिना सुने न मानूँगी।'
'बेटी!' एक घूँट चाय पीकर, बूढ़े ने कहना आरंभ किया, 'तेरा भाई क्यों पकड़ा गया और क्रूर जार के नाम पर उसकी हत्या कैसे की गई, यह घटना संसार के बहुत कम प्राणियों को मालूम है।'
बीच ही में टोककर डोरा ने कहा, 'सुना है उनका संबंध किसी गुप्त दल से था।'
'हाँ, वह निहिलिस्ट दल का एक प्रधान कार्यकर्ता था। आज से पाँच वर्ष पूर्व दल के एक व्यक्ति को जार ने जीते जलवा दिया था। जलवा दिया था केवल इसलिए कि अधिकारियों को उस पर संदेह था। उससे भेद की बातें पूछी जा रही थीं पर उसने बतलाने से इनकार कर दिया था। उसकी हत्या के संवाद से निहिलिस्टों में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ। उन्होंने जार पर बम चलवाने का निश्चय किया। दल के तीन व्यक्तियों पर उस कार्य का भार दिया गया। उनमें एक तेरा भाई भी था।'
क्षणभर के लिए रुककर रोवस्की चाय पीने लगा। डोराइना ने पूछा - 'क्या अभी तक मास्को में निहिलिस्टों का संघटन है?'
'पहले कहानी सुन!' रोवस्की ने आगे कहना आरंभ किया। 'उस दिन पेट्रोमाड में जार की सवारी निकलने वाली थी। मास्को से तेरा भाई और उसके दोनों साथी जार की हत्या करने के लिए पेट्रोमाड भेजे गए थे। परंतु उनके भाग्य में दुष्ट जार की हत्या का पुण्य नहीं लिखा था। मास्को स्टेशन के जासूसों को तेरे भाई और उसके साथियों पर संदेह हो गया। वे गिरफ्तार कर लिए गए।'
'जेलखाने में उन्हें अनेक प्रकार की यातनाएँ दी गईं। तुझे नहीं मालूम है बेटी, जारशाही के कारागार नरक के प्रतिरूप हैं। इनकी सृष्टि केवल देशभक्तों की दुर्दशा के लिए हुई है। वहाँ पर नाखूनों में सुइयाँ चुभो-चुभोकर, बेंत मार-मारकर, अँगुलियों में तेल से भींगे चीथड़े बाँधकर और उसमें आग लगाकर, उनसे निहिलिस्ट दल की बातें पूछने की कोशिश की गई पर वे पर्वत की तरह दृढ़ एवं मूक रहे। लाचार होकर अधिकारियों ने उनकी हत्या का ही निश्चय किया। वे सब कारागार के तहखानों में डुबोकर मार डाले गए!'
'तहखानों में डुबोकर? क्या उन तहखानों में जल था?' डोराइना ने प्रश्न किया।
'हाँ, यहाँ के कैदखानों में कुछ तहखाने विशेष प्रकार से बनाए गए हैं। उनमें पहले अभागे कैदियों को बंद कर दिया जाता है और फिर पाइप के द्वारा वे जल से भर दिए जाते हैं। बेचारे बंदी, वायु के अभाव एवं जल के आधिक्य से उसी में डूबकर मर जाते हैं। ऐसी ही भयानक मृत्यु तेरे भाई की किस्मत में भी लिखी थी। अब भी उक्त घटना की याद आ जाने से मेरे शरीर में आग लग जाती है। जी चाहता है कि भयंकर प्रलय का रूप धारण कर जारशाही का क्षणभर में सर्वनाश कर डालूँ। पर हाय! इतनी शक्ति नहीं है बेटी, अब मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूँ।'
2
रोवस्की की आयु का अधिकांश समय भयंकर क्रांति-कल्पना और राज-परिवर्तन चेष्टा में व्यतीत हुआ था। वह सन 1910 ई. में मास्को के निहिलिस्ट दल का सभापति था। उसके नेतृत्व में मास्को में अनेक राजनीतिक हत्याएँ हुई थीं, अनेक डाके डाले गए थे फिर भी जार की सरकार की नजरों से वह सदैव सुरक्षित था। उसके चेहरे से उसके हृदय की थाह लेना असंभव बात थी। वह बहुत कम बोलता था, हँसता तो शायद था ही नहीं। मास्को में उसे किसी ने कभी खिलखिलाकर हँसते नहीं देखा। उसके शरीर में दानवों का-सा बल था। अर्थशास्त्र, इतिहास, राजनीति और गणित शास्त्र का आचार्य तो वह था ही, साथ ही जासूसी-विद्या का भी पूर्ण पंडित था। हम जिस समय की घटना को लिख रहे हैं उस समय रोवस्की के परिवार में उसकी प्यारी पुत्री डोराइना के सिवा और कोई नहीं था। साठ वर्ष के बूढ़े रोवस्की ने डोराइना को भी माता के चरणों पर अर्पित करने का निश्चय कर लिया।
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मास्को स्थित निहिलिस्ट दल की गुप्त समिति के 9 मुख्य सदस्यों के सम्मुख रोवस्की ने, डोराइना को भी समिति में सम्मिलित कर लेने का प्रस्ताव उपस्थित किया। अपने सभापति के प्रस्ताव को सुनकर उनमें से एक सदस्य बोला -
'डोराइना की दृढ़ता पर आपको पूर्ण विश्वास है?'
रोवस्की - (दृढ़ता से) 'डोराइना क्रांतिकारी रोवस्की की पुत्री है, उसकी नसों में वही रक्त बह रहा है जो मेरी नसों में।'
किसी दूसरे सदस्य ने प्रश्न किया - 'वह प्रतिज्ञा करने और परीक्षा देने के लिए प्रस्तुत है?'
'अवश्य।' रोवस्की ने गंभीरता से उत्तर दिया।
'अच्छा तो डोराइना को दल में मिला लिया जाए पर उसकी परीक्षा इसी सप्ताह में आरंभ हो जाए, जैसा कि हमने आपको कल सूचित किया था। अधिकारियों का एक जासूस हमारे हेड ऑफिस के पास कई दिनों से चक्कर लगा रहा है। डोराइना की नियुक्ति उसी पर होनी चाहिए। एक सप्ताह के भीतर डोरा उसकी हत्या कर डाले।' एक तीसरे सदस्य ने कहा।
रोवस्की - 'अच्छी बात है।'
सर्वसम्मति से डोराइना निहिलिस्ट दल में मिला ली गई। उसे उसकी परीक्षा की सूचना भी दे दी गई और दे दी गई एक सातनली पिस्तौल।
3
'डोरा!'
'बाबा!'
'आज तीन दिन हो गए, कुछ पता लगा, वह कौन है?'
'पता तो लगा, उसका नाम रोमनोविच है और वह मास्को के जासूसी विभाग का अफसर है। पीटर स्ट्रीट के 30 नं. के मकान में रहता है।'
'उससे तूने बात की थी? इन सब बातों का पता तुझे कैसे मालूम हुआ।'
'परसों मैंने उसका पीछा किया था और कल उसके घर पर उससे मिली थी। नौकरी के बहाने मैंने उससे बातें की। आज उसने मुझे बुलाया है। संभवत: कोई काम देगा।'
'ध्यान रहे, चार दिनों के भीतर ही उसकी हत्या हो जानी चाहिए।'
डोराइना ने पिता की अंतिम बात का कोई उत्तर नहीं दिया। थोड़ी देर चुपचाप खड़े रहने के बाद रोवस्की अपने कमरे में चला गया। उसे क्या मालूम कि डोराइना के हृदय में उस समय भीषण संग्राम हो रहा था! वह गई थी रोमनोविच के प्राण लेने की भूमिका तैयार करने और तैयार कर आई अपने गले की फाँसी!!
रोमनोविच गौर वर्ण का बलिष्ठ एवं सुंदर युवक था। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में स्त्रियों को मुग्ध कर लेने वाली मादकता थी। पहली ही भेंट में सुंदरी डोराइना का हृदय रोमनोविच की मुट्ठी में चला गया। वह उसके रूप-यौवन पर मुग्ध हो गई। रोमनोविच का व्यवहार भी डोराइना के प्रति अत्यंत प्रेमपूर्ण हुआ। अस्तु डोरा के स्त्री-हृदय ने, कोमल प्रकृति ने, उसके कानों में कहा - 'ऐसे सुंदर, ऐसे मनोरम, ऐसे अद्वितीय पुरुषरत्न की तू हत्या करेगी? यह तो हृदय में छिपा रखने की चीज है। देख, इसका नाश न करना!' डोराइना किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। उसके हृदय में प्रेम और कर्तव्य का द्वंद होने लगा।
4
डोराइना के दुर्बल नारी-हृदय ने कर्तव्य को ठुकराकर प्रेम का आदर किया। उसने अपने प्रियतम रोमनोविच की रक्षा करने का निश्चय कर लिया। परीक्षा के सात दिनों में से छह दिनों तक वह बराबर रोमनोविच के हृदय की थाह लेती रही। रोमनोविच का व्यवहार बड़ा ही मधुर एवं प्रेमपूर्ण रहा। वह अनेक प्रकार से डोराइना के प्रति अपना प्रेम प्रकट करता था। एक दिन तो उसने यहाँ तक कह दिया कि - 'मेरी! (डोरा ने रोमनोविच को अपना परिचय इसी नाम से दिया था) मैं तुम्हारी ही तरह सुंदरी और विदुषी युवती से ब्याह करना चाहता हूँ। रोमनोविच की इस बात ने डोराइना के हृदय पर जादू-सा प्रभाव डाला। उसने अपने मन में, रोमनोविच से बातें बता देने का पूर्ण निश्चय कर लिया।'
वह परीक्षा का अंतिम दिन था। सायंकाल के समय कपड़े पहनकर डोराइना ज्यों ही रोमनोविच के यहाँ जाने को तैयार हुई त्यों ही रोवस्की ने बुलाकर उससे कहा, 'देख, आज अंतिम दिन है। बिना काम पूरा किए आज न लौटना। अरे! तेरा चेहरा उदास क्यों हो गया? क्या तू हत्या से डरती है?'
पिता की तीव्र दृष्टि के सम्मुख डोराइना अधिक काल तक न ठहर सकी! वह, 'आज सब काम समाप्त करके ही लौटूँगी।' कहकर चली गई।
डोरा का उदास मुख देखकर रोमनोविच ने पूछा -
'आज इतनी उदास क्यों हो मेरी?'
'तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ?'
'खुशी से कहो!'
'जो कुछ मैं कहूँगी उसे तुम्हें गुप्त रखना पड़ेगा। बोलो किसी से कहोगे तो नहीं?'
'मेरी शपथ खाओ कि किसी से न कहोगे।'
'तुम्हारी शपथ मैं किसी से भी न कहूँगा।'
'अच्छा सुनो! मेरा असली नाम "मेरी" नहीं डोराइना है। मैंने आज तक तुम्हें धोखा दिया था पर अब नहीं दे सकती। तुम मेरे प्रियतम हो - प्राणाधार हो।'
'डोराइना!' आश्चर्य मुद्रा से रोमनोविच ने पूछा, 'तुमने आज तक अपना नाम किसलिए छिपाया था? तब तो जो कुछ तुमने अपनी जीवनी बतलाई थी वह भी गलत ही होगी। तुम्हारी बात समझ में नहीं आ रही है मेरी!'
'अब मजे में समझाकर कहती हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है, तुम मुझसे विश्वासघात न करोगे। मैं स्थानीय निहिलिस्ट दल की एक सदस्या हूँ। दल की तरफ से मेरी नियुक्ति तुम्हारी हत्या करने के लिए हुई है।'
'अच्छा!' अधिक आश्चर्य से रोमनोविच ने कहा, 'तब तो तुम बड़ी भयानक स्त्री मालूम पड़ती हो।'
'बड़ी भयानक? भयानक स्त्री होती तो अब तक कभी की तुम्हारी हत्या कर चुकी होती। यह देखो! पिस्तौल मुझे दी गई है। मुझे आज्ञा मिली थी कि सात दिनों के भीतर ही तुम्हें मार डालूँ। आज वही सातवाँ दिन है। मैं तुम्हारी हत्या नहीं कर सकती, तुम्हें देखने से मेरे हृदय में क्रोध के स्थान में प्रेम उत्पन्न हो जाता है। तुम मेरे सर्वस्व हो!'
क्षणभर रुककर डोराइना कहने लगी, 'प्यारे, चलो हम दोनों कहीं भाग चलें। ऐसे स्थान पर भाग चलें, जहाँ न तो निहिलिस्टों का भय हो और न जार की चिंता! चलोगे?'
धूर्त रोमनोविच ने डोराइना की सरलता से लाभ उठाने की इच्छा से कहा -
'प्रिये! मैं यहाँ से भाग चलने को तैयार हूँ। परंतु भागने के पूर्व तुम्हें एक बात बतानी होगी। यहाँ पर निहिलिस्टों का अड्डा कहाँ पर है?'
भय से काँपकर डोराइना ने कहा -
'यह प्रश्न मुझसे मत पूछो, हाथ जोड़ती हूँ, इसका उत्तर मुझसे मत माँगो। मुझे प्रतिज्ञा से भ्रष्ट न करो।'
रोमनोविच ने कहा - प्रेम में प्रतिज्ञा कैसी? तब तो जान पड़ता है, तुम्हारा प्रेम भी तुम्हारे उस नाम की तरह बनावटी। तुम्हें मेरे प्रश्न का उत्तर देना ही होगा। बिना इसका उत्तर पाए मैं तुम्हारी किसी भी बात पर विश्वास न करूँगा।
हतभागिनी डोरा, रोमनोविच के प्रश्न का उत्तर देने ही जा रही थी कि पिस्तौल की आवाज सुनाई पड़ी! देखते-देखते तीन गोलियाँ रोमनोविच के शरीर में प्रविष्ट कर गईं!! वह जहाँ-का-तहाँ ढेर हो रहा!!!
डोराइना ने पीछे फिरकर देखा, उसका पिता तीन क्रांतिकारियों के साथ खड़ा था। वह मारे भय के मूर्च्छित हो गई!
5
गुप्त समिति के सब सदस्य एकत्र थे। सभापति के आसन पर वृद्ध रोवस्की बैठा हुआ था। सामने जंजीरों से जकड़ी हुई डोराइना खड़ी रो रही थी। कमरे के कोने में काठ का भयानक क्रूस रखा था। सभा में घोर निस्तब्धता थी। सबकी दृष्टि सभापति के मुख की ओर थी, सब पिता का पुत्री के प्रति न्याय देखने के लिए उत्सुक थे। रोवस्की ने भयंकर दृष्टि से डोराइना की ओर देखकर कहा -
'डोराइना!'
डोराइना के रोदन की गति बढ़ गई, हिचकियाँ बँध गईं।
'अपराधिनी डोराइना? विश्वासघातिनी डोराइना! इस समय तू मुझसे दया की आशा न रख। जन्मभूमि का शत्रु - चाहे वह मेरा हृदय ही क्यों न हो - मुझसे दयाभिक्षा नहीं पा सकता। तुझे मालूम है, विश्वासघात का दंड क्या है?' क्रुद्ध रोवस्की ने पूछा।
रोती हुई डोराइना ने कहा, 'क्षमा बाबा!'
'चुप रह! कौन है तेरा बाबा? देश के शत्रुओं से मिलकर तूने मेरे मुख में अमिट कालिमा पोट दी है। तू कुल-कलंकिनी है। तेरे अपराध का दंड केवल मृत्यु है। तैयार हो जा मरने के लिए।'
एक सदस्य से रोवस्की ने पूछा -
'सब ठीक है?'
'जी हाँ।'
'अच्छी बात है।' रोवस्की ने कहा, 'ले जाओ, मेरे शरीर के इस भीषण पाप को क्रूस पर चढ़ा दो। जल्दी करो, इसके हाथ और पैरों में मेरे सामने ही कीलें ठोंक दी जाएँ।'
रोवस्की के सामने ही डोराइना क्रूस में जड़ दी गईं। पुत्री के निवेदन और रोदन का कर्तव्यशील पिता के हृदय पर कुछ भी प्रभाव न पड़ा। उस स्थान को छोड़ने के पूर्व रोवस्की ने डोराइना के गले में एक तख्ती लटकाकर उस पर उसी के रक्त से लिख दिया -
'विश्वासघात का फल!'