कलसी भरलोॅ टाका / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
अंग्रेज के राजोॅ में चाँदी रो टाका चलै छेलै। खनखन टाका। विरतानिया राज के मालिक जार्ज पंचम आरो रानी विक्टोरिया के फोटो रहै छेलै। केकरोह टाका होवोॅ साधारण बात नै छेलै। टाका के मोल अतनैं जादा छेलै कि चार सें छोॅ आना मोॅन धान, आठ सें दस आना मोॅन चौेॅर बिकै छेलै। टाका के अभावोॅ में अनाज सें अनाज बदली केॅ, अनाजोॅ बदला में मनभियार कोय भी चीज बदली केॅ काम चलै छेलै।
बाबू चिनगी रौतोॅ के किरिया-सराध करी केॅ बेटा शिंभू रौत मालिक होलै। शिंभू नै सौसे परिवारोॅ केॅ बैठाय केॅ सीता सें कहलकै-"दीदी, हम्में तोरोॅ छोटोॅ भाय। हमरा जे छै सब तोरोॅ। भाय-बहिन में कोय अन्तर नै होय छै। जमीन, संपत्ति सब तोरोॅ देखलोॅ छै। बसोबास लेली जेॅ जमीन तोंय चाहोॅ लै लेॅ।"
सीता ने कहलकै-"बाबूं ज़रूरेॅ बसोवास जमीनोॅ के बारें में बोललोॅ होतौं। हुनकेॅ इच्छा रोॅ ख्याल रखना छै।" शिंभू बोललै-"पछियारी टोला केॅ उतरवारी कोना पर दस कट्ठा के बारी छै, बाबू वहेॅ बारी तोरा बसोवास लेली दैलेॅ सोचनें छेलै।"
"बाबू केॅ इच्छा केॅ आदेश मानी केॅ धारण करलियै। हम्में जत्तेॅ बाबू केॅ जानलेॅ छियै ओत्तेॅ तोंय सीनी नै जानै सकभोॅ। हुनकोॅ हुकुम सिर-माथोॅ पर। हुनी बहुत आगू सोची केॅ बोललोॅ छै।" सीता कहि केॅ मुस्कैलेॅ।
शिंभू के कनियाय नया-नया एैली छेलै, मतुर छेलै चालाक। वें बातोॅ केॅ
धरलकै-"बाबू आगू रोॅ बात की सोचेॅ पारै ऐकरा में ज़रूर कोय गूढ़ बात छै जेकरा से हमरा सबके कुछ्छु सीखेॅ मिलतै। दीदी केॅ बड़ोॅ होय के नातें सबके बीचोॅ में बताना चाहियोॅ।" ऐकरोॅ बाद तेॅ सभ्भें बतावै के जिद पकड़ी लेलकै।
सीता नें विवश होयकेॅ गूढ़ बात कहना शुरू करलकै-"एक टोला से दोसरोॅ टोला में बसावै के मतलब होलै कि एक दोसरा सें संपर्क नै रहै। नगीचोॅ में रहला सें झगड़ा-झंझट होयके हरदम्मेॅ गुंजाइश रहै छै। तोंय नहियों चाहोॅ तहियो एकदम्मेॅ कोय बात बगलोॅ वाला सें नै छिपै पारै छै। आपनोॅ में अपनापन बनलोॅ रहै यै लेली जे जादा आपनोॅ छै ओकरा दूरे रहना चाहियोॅ। ऐकरा सें सम्बंध रो मिठास बनलोॅ रहै छै।"
अचरज सें आँख आरो माथोॅ घुरैतें शिंभू कहलकै-"तबेॅ नी चौतरा सौसे गाँमोॅ में तोरोॅ गुणोॅ के चरचा छौं। कत्तेॅ दूरोॅ के बात तोंय समझलोॅ दीदी।" माय कहलकै। -"हमरा मुरुख आदमी केॅ समझै में कुछ्छु ने ऐलै। बेगछाय केॅ समझाबोॅ।"
सीता बेगछाय केॅ समझैलकै-"हड़िया के छनमन आरोॅ गंधोॅ सें पता लागी जाय छै कि बगलोॅ में की खाना बनलोॅ छै। तोंय माँस बनैलेॅ छोॅ, हमरा सामरथ नै छै, हम्में घांटोॅ बनेलें छी, हम्में माड़ेॅ-भात खाय रेल्होॅ छी। तोरा खैलोॅ जैतौं आरो तोंय हमरा केॅ रोज खिलाबेॅ पारै छोॅ। एक-दू रोज खिलैभोॅ, फेरू आँखेॅ-मुँह अन्हार। यहेॅ सोची केॅ बाबू सारोॅ-बहनोय जैनहोॅ प्रेम सें भरलोॅ रिस्ता केॅ अतना दूरोॅ में राखलकै कि सम्बंध चललै वहोॅ ठीक, नै चललै वहोॅ ठीक। केकरोह सें कोय मतलब नै। तोंय खैलेॅ छै अपना घरोॅ में, हम्में भूखलोॅ छी अपना घरोॅ में।"
सीता केॅ ई दूरदर्शी बुद्धि पर सबकेॅ अचरज होलै। सभ्भेॅ दिल खोली केॅ हाँसलै भी। सीता एक बात लागलेॅ कहलकै-"आबै वाला दिनोॅ में हमरा सीनी के गुजरला के बाद बाल-बच्चा आपस में झगड़ै नै। मारपीट, खून, दंगा-फसाद ने हुअेॅ, यै लेली जे जमीन देभोॅ ओकरा कचहरी जाय केॅ हमरा नामें केवाला करी देॅ। बगलोॅ में बारी के पछियें जे सतकठिया धानोॅ रो खेत छौं, उ$ ठो हम्में मांगै छियौं। वहोॅ साथें लिखी देॅ। उ$ जमीन लेला सें पछिये, सरकारी सड़क तांय जाय-आबै के रास्ता होय जैतेॅ।"
शिंभू रौत हाँसलै-"हमरा दीदी केॅ कोकड़ी तक में बुद्धि भरलोॅ छै। अखनियेॅ सें दू रास्ता बनाय रोॅ बुद्धि भिड़ाय देलेकै। एक रास्ता पछियारी टोला के बीचोॅ सें घुरी केॅ सरकारी सड़कोॅ में जैतेॅ आरो दोसरोॅ जमीन सतकठिया सड़कोॅ सें एकदम लागलोॅ।" "भाय, सब तोरोॅ किरपा। हम्में तेॅ मरलोॅ, टूटलोॅ, करमजरुवोॅ तोरा ठियां एैलोॅ छियौं। सवासीनोॅ केॅ आखिरी आस हर-हमेशा नैहरोॅ के ही रहै छै। दैवोॅ के डांगोॅ रो डँगेलोॅ तोरोॅ बहिन हारी-पारी केॅ नैहरोॅ के डगर पकड़नें छै।" सीता के आँखी सें ढ़ेर सीनी लोर भरभराय केॅ गिरी गेलै।
शिंभू उठलै आरो सीता जै ठियां बैठली छेलै वही ठियां जमीनोॅ पर बैठी केॅ दीदी के आँखी रो लोर पोंछते हुअें कहलकै-"बहुतेॅ कानी चुकलोॅ छोॅ दीदी। आबेॅ नै कानोॅ। हम्में तेॅ तोरोॅ बुद्धि के तारीफ करतें हाँसी केॅ बोललिहौं। तोरोॅ ई भाय कहियोॅ बेगानोॅ नै होतै, ई माय केॅ छूवी केॅ वचन दै छियौं।"
सीता स्थिर बैठली रहलै बाँयां गोड़ोॅ के अंगूठा सें मांटी कुरेदतें हुअें। अँचरा सें लोरोॅ केॅ पोछलकै आरो बोललै-" तोरोह लखेॅ-लाख नै छौं भाय। यै राजोॅ में सभ्भैं थूकोॅ सें सत्तू सानै छै। ऐकरोॅ जे वाजिब दाम हुअेॅ हमरा सें लै लेॅ। बाबू के किरिया में भी अच्छेॅ खरचा होय गेलोॅ छौं।
"तोंय दाम अखनी कहाँ सें देभोॅ दीदी। तोरोॅ भी तेॅ हक छै। तोंय दाम दै के बारे में नै सोचोॅ।"
" हमरो बात मानोॅ। काल दिनोॅ लेली बाल-बच्चा केॅ उलहनोॅ सुनै के रास्ता नै छोड़ोॅ। खरचा पूरा करै लेली चौधरी सें वहेॅ जमीन बेचै के बात भी करै छेलोॅ। चौधरी नै, हमरे दै देॅ उ$ जमीन, वाजिब दामोॅ में। आपनोॅ चीज आपनै ठियां रहि जैतेॅ। तोरा दाम देलियै ई पता केकरोह नै चलेॅ।
"दाम दै केॅ जमीन लेल्होॅ, ऐकरा सें हमरोॅ गौरवेॅ बढ़तै। तोंय बड़ी छोॅ दीदी। तोरोॅ बुद्धि समना में हम्में माथोॅ टेकेॅ छियौं।" शिंभू ने माथोॅ दीदी के गोड़ोॅ पर झुकाय देलकै।
सीता हाँसलै आरो शिंभू के माथा पर प्यारोॅ सें हाथ फेरतें हुअें कहलकै-"लजाबोॅ नै जे दाम चौधरी कहै छौं, बोलोॅ आरो जौं नै बेचभेॅ तेॅ कोय दोसरा के जमीन ही दिलवाय देॅ।" "
सबकेॅ ताज्जूब होय रेल्होॅ छेलै कि अत्तेॅ टाका सीतां कहाँ से लानतै। बिहारी केॅ तेॅ लागै कि ई जनानी भी अजीबेॅ छै। देहोॅ पर बढ़ियां सें कपड़ा लै केॅ तेॅ घरोॅ सें ढ़ेर आवेॅ पारलै आरो टाका रो बात करै छै। वहाँ के जमीनोॅ पर तेॅ जमींदारोॅ के नीलामी होवोॅ तय छै। जमीन के दामोॅ सें बेशी तेॅ लगान होय गेलोॅ होतै। तबेॅ यैं लानतै टाका कहाँ से?
शिंभू बोललै-"दीदी जमीन तेॅ बेचै लेॅ ही पड़तै। दस वरसोॅ सें बेशी होय गेलै। जमीनोॅ के लगान कचहरी में जमा करै लेॅ पड़तै। कुछ्छु देन भी गिरी गेलौ छै। की कहियौं दीदी, जमीनोॅ के उपजा सें जमीनोॅ के लगान नै पूरै छै। जमीन बेचिये केॅ लगान दै लेॅ पड़ै छै।"
गिरस्त-मजूरोॅ के ई हाल सीता चौतरा में देखनेॅ छेलै। चाही के भी कुछ्छु नै बोलेॅ पारलै सीता। माय कहलकै-"बाबू ने उ$ जमीन सीता केॅ बसोवास लेली दै के बात कहि केॅ मरलोॅ छै। सीता के पास जौं टाका छै तेॅ चौधरी वै जमीनोॅ केॅ घरवारी कहि केॅ सत्तर टाका दाम लगाय छै। सतकठिया लगाय केॅ सीता एक सौ एक टाका दैकै जमीन अपना नाम लिखाय लौेॅ। ऐकरा में कोनोॅ हिजहुल्लेॅ के बात नै छै।"
माय के निर्णय पर कोय कुछ्छु नै बोललै। माय बोललेॅ छेलै सौ आना सच्चेॅ। सीता उठी केॅ सवासीन वाला घरोॅ सें एक बक्सा जेॅ रखरखाव नै होय के कारण बदरंग आरो चिटफुटरोॅ होय गेलोॅ छेलै, निकाली केॅ लै लानलकै। ओकरा में गोलमझौला आकार केॅ एक ठोॅ ताँबा के कलसी छेलै। ई वहेॅ कलसी छेलै जे माय-बापेॅ बेटी विदाय बखती सीता के देनें छेलै। सीता ने कलसी के मुँह खोली केॅ जमीनोॅ पर झुनझन झनाक करतें खोली देलकै। चाँदी रो टाका सौसे ओसरा पर छिरियाय गेलै। फागुनी अल्हड़ हवा में खनखन के शब्द गूँजलै। माय ई कहतें हुअें ऐंगना के किवाड़ लगाय लेॅ दौड़लै-"पगलाय गेली छैं की गे सीतिया। रातैं लूटी लैतोॅ यै गाँमोॅ के लोगें।"
टाका देखी केॅ सबसें जादा अचरज होय रेल्होॅ छेलै बिहारी केॅ। 'अत्तेॅ टाका यै लानलकै कहाँ से' सोची केॅ बिहारी के माथोॅ घूमै लागलै।
सीता सधलोॅ-संयत वाणी में बोललै-"घरनी सें घोॅर सजै छै। मरदाना तेॅ कमावै लेॅ जानै छै मतुर खरचा सें काटी केॅ जोगै वाली जनानी ही सही घरनी छेेकै। कमैलोॅ तेॅ छेकै हमरा मालिकैेॅ रोॅ आरो हमरा ससुरोॅ के मतुर एक-एक टाका बड़ी जतनोॅ से मस मारी केॅ दाँतोॅ पर दाँत धरि केॅ कृपण बनी केॅ जोगलियै हम्में। जे आय सही बखतोॅ पर बहुत बड़ोॅ विपत में काम एैलेॅ। दूध बेची केॅ हिनी दूनी बापुतें जे हमरा लानी केॅ दै छेलै ओकरा सें बचाय-बचाय केॅ दस बरसोॅ में अतना टा पैसा जमा करनें छियै।"
सभ्भै के आँखों में सीता लेली ओकरोॅ ई बुधियारी पर श्रद्धा आरो गौरव के भाव छेलै। सीतां प्यारोॅ से पुकारी केॅ भाय से कहलकै-"भाय रे! टाका गिनी केॅ आपनोॅ टाका लै लेॅ आरो जे टाका बचै ओकरा सें हमरोॅ एकदम साधारण मांटी रोॅ छोटोॅ रंग रहै लायक घोॅर बनाय देॅ। गाय-भैंसी लेॅ एक ठो छोटोॅ गुहाल भी होना ही चाहियोॅ।"
टाका शिंभू आरो बिहारी मिलीकेॅ गिनलकै। छोटोॅ छेलै कलसी तहियोॅ एक सौ तेरासी टाका होलै। माय केॅ आँखी में लोर आबी गेलै। कानी-कानी बोलेॅ लागलै-"तबेॅ नी, बाप कखनू तोरा नै भूलै छेलै। मरौ बखती ठोरोॅ पर तोरे नाम। विपतोॅ में छौ हमरोॅ बेटी, रे शंभुआ, जलदी जोॅ। लानी देॅ हमरा बेटी केॅ, याहीं हमरा बगलोॅ में लानी केॅ बसाव हमरा सीता केॅ। रोजे, साँझ-भियान देखवोॅ आपनोॅ लक्ष्मी बेटी केॅ।" फलें, फूलें गे बेटी. युग-युग जीयें। राज करें। " अतना कही केॅ माय नें बेटी केॅ गला सें लगाय लेलकै।