कलाकारों के उपनाम की कथाएं / जयप्रकाश चौकसे

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कलाकारों के उपनाम की कथाएं
प्रकाशन तिथि :16 मार्च 2016


एक दौर में लेखक अपने नाम से रचनाएं प्रकाशित नहीं करते थे और लेखन के लिए काल्पनिक नाम का प्रयोग करते थे। प्राय: हुकूमत-ए-बरतानिया की धरपकड़ नीति से बचने के लिए ऐसा किया जाता था। फिर परिपाटी चल पड़ी। हरिवंश राय श्रीवास्तव ने अपने नाम के साथ 'बच्चन' लगाना शुरू किया। उनके वंशजों ने 'बच्चन' को सरनेम बना लिया। विगत दशकों में अमिताभ के साथ बच्चन इस कदर जुड़ा है कि आप उन्हें श्रीवास्तव कहकर संबोधित करें तो शायद वे भी आपको सुने नहीं। उर्दू साहित्य में उपनाम को तखल्लुस कहते हैं। कुछ लेखकों ने जन्म स्थान को सरनेम बना लिया जैसे साहिर लुधियानवी या हसरत जयपुरी। इसी तरह पिछली सदी के चौथे दशक में अभिनेताओं के नाम बदले गए। बॉम्बे टॉकीज नामक विख्यात फिल्म कंपनी की सह-संस्थापक देविका रानी ने अभिनेता यूसुफ खान का नाम दिलीप कुमार रखा।

इसी तरह इंदौर में जन्मे बदरुद्दीन का नाम जॉनी वाकर पड़ा, क्योंकि प्रारंभिक फिल्मों में उन्होंने शराबी का पात्र अभिनीत किया था परंतु यथार्थ जीवन में उन्होंने कभी शराब नहीं पी। इसी तरह नशीले गाने गाने वाले मोहम्मद रफी ने भी कभी शराब का सेवन नहीं किया। दूसरी ओर सहगल शराब के कारण ही असमय चले गए। हिंदी भाषा में लिखने वाले हरिकृष्ण विजयवर्गीय, हरिकृष्ण 'प्रेमी' कहलाए परंतु उनका परिवार सदैव विजयवर्गीय सरनेम का उपयोग करते आया है। लोकप्रिय कवि गोपालदास 'नीरज' के नाम से ही जाने जाते हैं।

अनेक कलाकारों ने अपने उपनाम का प्रयोग अपने बैंक अकाउंट में भी किया है। हंसौड़ कलाकार जॉनी व्हिस्की के पासपोर्ट पर भी यही नाम था और एक कंपनी उन पर कॉपीराइट नियम के अधीन मुकदमा चलाना चाहती थी। इसी तरह परिवार में पुकारने के नाम इतने प्रचलित हो जाते हैं कि नरेंद्र कौर को नानी होने के बाद भी 'गुड्‌डी' कहकर ही संबोधित किया जाता है। जबान पर चढ़ जाने वाले नाम याददाश्त से हटाए नहीं हटते। बंगाल की जेल में अधीक्षक रहे व्यक्ति ने सेवानिवृत्त होने के बाद जेल जीवन संबंधित कहानियां जरासंध के छद्मनाम से लिखी और उनकी 'लौहकपाट' से प्रेरित कथा पर बिमल राय ने नूूतन व अशोक कुमार अभिनीत 'बंदीनी' बनाई, जिसमें धर्मेंद्र ने भी काम किया और यह उनकी प्रारंभिक फिल्मों में से एक थी। नूतन बिमल राय की 'सुजाता' कर चुकी थीं परंतु 'बंदीनी' नूतन के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण सिद्ध हुई, जितनी 'मदर इंडिया' नरगिस के लिए थी। आज की लोकप्रिय अभिनेत्री दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा इत्यादि के नाम इस तरह की कोई कालजयी फिल्म नहीं है और सच तो यह है कि आज उस तरह के फिल्मकार ही नहीं है।

भारतीय समाज और सिनेमा दोनों ही पुरुष प्रधान है। बिमल राय तो ऐसे संवेदनशील फिल्मकार थे कि नारी के हृदय को ही अपनी लोकेशन बना लेते थे। इसी तरह अंग्रेजी के अत्यंत लोकप्रिय लेखक ओ' हेनरी एक बैंक हेराफेरी के अारोप में जेल गए थे। उनका मूल नाम विलियम सिडनी पोर्टर था, लेकिन जेल के गार्ड के नाम पर उन्होंने अपना पेन नेम ओ. हेनरी रख लिया। ओ. हेनरी की अनेक कहानियों से प्रेरित दृश्य फिल्मों में रहे हैं, मसलन एक फिल्म में बच्चा बैंक की भव्य तिजोरी में बंद हो गया और वहां मौजूद एक चोर ने उस न खुल सकने वाली सेफ को खोलकर बच्चे को बचाया। वहां लगी भीड़ में वह पुलिस अफसर भी था, जो सादे कपड़ों में वर्षों से इसका पीछा कर रहा था। घटना के बाद स्वयं चोर अफसर के पास आया और उसने कहा कि वे उसे पकड़ सकते हैं। पुलिस अफसर उसके मानवीय काम से इतना प्रभावित था कि उसने सब कुछ जानकर भी उसे नहीं पकड़ा और कहा कि वह उसे जानता ही नहीं। शत्रुघ्न सिन्हा अभिनीत एक िफल्म में यह दृश्य जस का तस रखा गया है।

इसी तरह ओ' हेनरी की अनेक कहानियों का लाभ अनेक फिल्म लेखकों ने लिया है। ओ'हेनरी ने कहानियों के पारिश्रमिक से अपने कर्ज चुकाए। यह भी कहा जाता है कि उन्हें जुआ खेलने की लत थी और कर्ज भी इसी कारण हुआ था। इसी तरह रूसी लेखक दोस्तोवस्की का पारिश्रमिक भी उनके जुए की लत के कारण लिए कर्ज चुकाने में लंबे समय तक खर्च हुआ।

एक समय में चीनी लोगों को जुआ खेलने की सबसे ज्यादा लत थी और इसीलिए न जीत पाने वाले आदतन जुआर के बारे में कहा जाता है, 'यू डोंट हैव ए चाइनामैन्स चान्स।' कम्युनिज्म से शासित वर्तमान चीन जुए की लत से मुक्त है।