कलाकार नायडू की लीला में रिनायर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 02 जनवरी 2021
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कलाकार लीला नायडू की आत्मकथा प्रकाशित हुई है। ज्ञातव्य है कि लीला को अंतरराष्ट्रीय फैशन मैगज़ीन ने विश्व की 5 सुंदर महिलाओं में एक माना था। सभी सूचियों में जयपुर की महारानी हमेशा शिखर पर रही हंै। लीला नायडू की चुनिंदा फिल्मों में से ऋषिकेश मुखर्जी की ‘अनुराधा और आर. के. नय्यर की नानावटी प्रकरण से प्रेरित फिल्म ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ भी है।
ज्ञातव्य है कि यूरोप के फ़िल्मकार रिनायर ने अपनी ‘रिवर’ नामक फिल्म की शूटिंग कोलकाता में की थी। लीला नायडू की आत्म-कथा में विवरण है कि रिनायर का यह कहना था कि मनुष्य को ऊब जाने से बचना चाहिए। जब आप छोटी-छोटी बातों में रुचि लेना बंद कर देते तब ऊब दबे पांव आपकी विचार शैली में प्रवेश कर जाती है। फिल्म की शूटिंग प्रक्रिया में बचे हुए काम को पेच वर्क कहा जाता है। ग़लतियों को दुरुस्त करने के यह किया जाता है। लीला की किताब का नाम पेच वर्क है। स्पष्ट है कि अभिनय द्वारा लीला जो अभिव्यक्त नहीं कर पाईं उन्होंने इस किताब में लिखा है। ऊबने से बचने के लिए कोई शौक होना चाहिए।
सृजनधर्मी लोग ऊब जाने पर कुछ और लिखने लगते हैं। शरद जोशी की एक किताब जो संभवत: उन्होंने ऊब जाने के समय लिखी का नाम है ‘बैठे ठाले’। साहिर लुधियानवी ने ‘फिर सुबह होगी’ में गीत लिखा है, ‘जो बोर करें यार को उस यार से तौबा।’ संभवत: लतीफेबाजी ऊबने से ही विकसित हुई है। किसी सभा में लंबा भाषण सुनते हुए व्यक्ति कागज पर कुछ बेतरतीब आकृतियां गढ़ता है। जिसे डूडलिंग कहा जाता है। किशोर कुमार के गायन की यूडलिंग से यह अलग बात है। लीला नायडू को हिंदी बोलने में कठिनाई होती थी। उनकी मातृभाषा फ्रेंच थी। लीला के पिता वैज्ञानिक थे। नोबल पुरस्कार पाने वाले के प्रमुख सहायक रहे। लीला नायडू की आत्मकथा ‘पेच वर्क’ किंडल पर उपलब्ध है। इस विषय की जानकारी मुझे कुमार अंबुज से मिली है। ऋषिकेश मुखर्जी की ‘अनुराधा’ का संगीत पंडित रविशंकर ने दिया और गीत शैलेंद्र ने लिखे थे। एक गीत था, ‘हाय रे वो दिन क्यों ना आए, सूनी मेरी बीना, संगीत बिना सपनों की माला मुरझाए, मैं तो जागी थी सो गईं मेरी अखियां।
लीला नायडू ने अपनी आत्मकथा जुबानी कही और अन्य लेखक ने लिखी। ऋषि कपूर की ‘खुल्लम-खुल्ला’ भी उन्होंने कही और पत्रकार मीना अय्यर ने लिखी है। केवल महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथाएं अपने हाथ से लिखी हैं। बोली गई रचनाओं में लिखने वाला अपना दृष्टिकोण भी शामिल कर लेता है।
अकिरा कुरुसावा की एक फिल्म में 4 लोगों ने एक अपराध घटित होते देखा है। अदालत में उनके द्वारा दिए गए बयान से आभास होता है मानो चार अलग-अलग घटनाएं घटी हैं। सुनी हुई बातों का विवरण देने वाला अपना दृष्टिकोण शामिल कर लेता है। हर भाषा का अपना ग्रामर और अपने मुहावरे होते हैं। कुटैव शब्द का समानार्थी शब्द अंग्रेजी भाषा में नहीं है।
शब्दों के उच्चारण का तरीका ही असलियत अभिव्यक्त करता है। इसका उदाहरण फिल्म ‘पीके’ में प्रस्तुत है। जब अन्य ग्रह से आया व्यक्ति अनुष्का शर्मा अभिनीत पत्रकार पात्र से जेल में बात करता है। किसी घटना को सुनकर व्यक्ति ‘अच्छा’ 3 तरह से बोल सकता है। एक तरीके में खेद अभिव्यक्त होता है। दूसरे में आश्चर्य और तीसरे में अविश्वास। अन्य ग्रह से पृथ्वी पर आया पात्र कहता है कि उनके ‘गोला’ में भाषा नहीं है। एक व्यक्ति कुछ सोचता है और बात दूसरे तक पहुंच जाती है। निदा फ़ाज़ली का शेर है, ‘मैं रोया परदेस में भीगा मां का प्यार, दिल ने दिल से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार।’