कला और प्रतिबद्धता / शरद जोशी
कोयल का कंठ अच्छा था, स्वरों का ज्ञान था और राग-रागनियों की थोड़ी बहुत समझ थी। उसने निश्चय किया कि वह संगीत में अपना कैरियर बनाएगी। जाहिर है उसने शुरुआत आकाशवाणी से करनी चाही।
कोयल ने एप्लाय (आवेदन) किया। दूसरे ही दिन उसे ऑडीशन के लिए बुलावा आ गया। वे इमर्जेंसी के दिन थे और सरकारी कामकाज की गति तेज हो गई थी।
कोयल आकाशवाणी पहुँची। स्वर परीक्षा के लिए वहाँ तीन गिद्ध बैठे हुए थे। ‘क्या गाऊँ?’ कोयल ने पूछा।
गिद्ध हँसे और बोले, ‘यह भी कोई पूछने की बात है। बीस सूत्री कार्यक्रम पर लोकगीत सुनाओ। हमें सिर्फ यही सुनने-सुनाने का आदेश है।’
‘बीस सूत्री कार्यक्रम पर लोकगीत? वह तो मुझे नहीं आता। आप कोई भजन या ग़ज़ल सुन सकते हैं।’ कोयल ने कहा।
गिद्ध फिर हँसे। ‘ग़ज़ल या भजन? बीस सूत्री कार्यक्रम पर हो तो अवश्य सुनाइए?’
‘बीस सूत्री कार्यक्रम पर तो नहीं है।’ कोयल ने कहा।
‘तब क्षमा कीजिए, कोकिला जी। हमारे पास आपके लिए कोई स्थान नहीं है।’ गिद्धों ने कहा।
कोयल चली आई। आते हुए उसने देखा कि म्यूजिक रूम (संगीत कक्ष) में कौओं का दल बीस सूत्री कार्यक्रम पर कोरस रिकॉर्ड करवा रहा है।
कोयल ने उसके बाद संगीत में अपना कैरियर बनाने का आइडिया त्याग दिया और शादी करके ससुराल चली गई।