कलियां मांगी, कांटों का हार मिला / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 22 अगस्त 2019
यह आश्चर्य की बात है कि बायोपिक बनने के दौर में फिल्मकार साहिर लुधियानवी के बायोपिक बनाने का विचार नहीं कर रहे हैं। प्रेम कहानियों से प्रेरित फिल्में हर दौर में बनती रही हैं परंतु अमृता प्रीतम और साहिर की प्रेम-कथा जाने कैसे अनदेखी रही है। रणवीर कपूर और आलिया भट्ट को लेकर साहिर और अमृता की प्रेम-कथा बनाई जा सकती है। इस तरह की फिल्म के लिए खय्याम साहब संगीत रच सकते थे परंतु उनका निधन हो गया है। संगीतकार एआर रहमान इस महान प्रेम-कथा के साथ न्याय कर सकते हैं। संगीतकार प्रीतम अभी तक इस तरह के अवसर का इंतजार कर रहे हैं। जावेद अख्तर के संबंध साहिर साहब से बड़े गहरे रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि जावेद अख्तर के पिता जां निसार अख्तर साहिर साहब के बड़े करीबी मित्र रहे हैं। साहिर साहब प्रायः जावेद अख्तर की भी सहायता करते रहे हैं। एक बार जावेद अख्तर को किसी अन्य व्यक्ति के लिए लिखने के लिए सौ रुपए का मेहनताना मिला। जावेद अख्तर सौ रुपए साहिर साहब को देने के लिए उनके निवास स्थान पहुंचे परंतु साहिर साहब का निधन हो गया था। यह घटना 25 अक्टूबर 1980 को हुई।
अमृता प्रीतम साहिर साहब से तीन वर्ष बड़ी थीं परंतु प्रेम में उम्र का अंतर कोई मायने नहीं रखता। अंग्रेजी भाषा में बनी फिल्म 'फोर्टी कैरेट वुमन' में एक 17 वर्षीय युवा को 40 वर्ष की महिला से प्रेम हो जाता है परंतु उम्र के अंतर के कारण महिला उस युवा से दूरी बनाए रखती है। उस महिला से वर्षों पूर्व तलाक लिया हुआ पति उसे समझाता है कि सच्चे प्रेम में उम्र की खाई कोई मतलब नहीं रखती। इसी तरह एक और महान फिल्म का नाम है 'समर आफ फोर्टी टू'। कथा दूसरे विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी है, जिसमें एक 17 वर्ष का युवा 42 वर्षीय विधवा से प्रेम करता है, जिसका पति जंग में मारा गया है। दरअसल, हर व्यक्ति के जीवन में एक 'समर आफ फोर्टी टू' होता है जिस पर तथाकथित लोकलाज का हव्वा स्याह बादल की तरह छाया रहता है। इस हव्वे के परखच्चे उड़ाए गए हैं फिल्म 'बधाई हो' में जिसमें नीना गुप्ता ने यादगार भूमिका अभिनीत की है। दरअसल, अमृता प्रीतम अपने सारे डर से मुक्त होकर मुंबई आई थीं और वे साहिर साहब से विवाह भी करना चाहती थीं परंतु एयरपोर्ट पर ही उन्होंने किसी अखबार में यह 'फेक न्यूज' पढ़ी कि उन दिनों साहिर साहब अपने संगीतकारों की एक पार्श्वगायिका से ही अपने गीत गवाने का इसरार करते हैं। उस पार्श्वगायिका का नाम सुधा मल्होत्रा था। इस तथाकथित प्रेम की फेक न्यूज से घबराकर अमृता प्रीतम दिल्ली लौट गईं। यहां तक कि उन्होंने साहिर साहब से फोन तक पर बात नहीं की। इस प्रकरण में 'फेक न्यूज' से अधिक गहरी बात यह है कि अमृता प्रीमत को खुद पर यकीन नहीं था। प्रेम में विश्वास सबसे बड़ा संबल है।
ज्ञातव्य है कि साहिर साहब की मां की शादी एक सामंतवादी परिवार में हुई थी। उस परिवार में अपनी बहू के साथ प्रायः अन्याय व हिंसा की जाती थी। साहिर साहब की मां अपने परिवार के सामंतवादी व्यवहार से अपने पुत्र को बचाने के लिए उस घर से भाग गई। साहिर साहब अपनी मां से बेहद प्रेम करते थे। अपने वामपंथी विचारों के कारण उन्होंने अपने जन्म के समय दिए गए नाम 'अब्दुल हई' को भी त्याग दिया और साहिर लुधियानवी नाम को अपनाया। कुछ लोगों का विचार है कि साहिर साहब ने विवाह नहीं किया, क्योंकि उन्हें भय था कि पत्नी और मां के बीच खटपट हुई तो वे मां का ही साथ देंगे और अलग किस्म का 'गृहयुद्ध' शुरू हो सकता है। शिशु के जन्म के समय ही गर्भनाल काट दी जाती है। इसी डोर से शिशु गर्भस्थ अवस्था में मां से जुड़ा होता है परंतु कुछ रिश्तों में यह कॉर्ड काटने के बाद भी कटती नहीं है। ज्ञातव्य है कि साहिर साहब अपनी मां के निधन के बाद अधिक समय तक जीवित भी नहीं रहे।
गुरुदत्त की 'प्यासा' की सफलता के बाद साहिर साहब ने यह निर्णय लिया कि वे संगीतकार को दिए जाने वाले मेहनताने के बराबर रकम गीत लिखने के लिए लेंगे। इसी कारण सचिन देव बर्मन और साहिर साहब की टीम टूट गई। गुरुदत्त ने 'कागज के फूल' के गीत कैफी आजमी से लिखवाए। बड़ी छोटी-छोटी बातों से महान सृजन टीम टूट जाती है औहर गुनगुनाना पड़ता है 'बिछड़े सभी बारी बारी...।'
फिल्म जगत में आने से पहले ही साहित्य जगत में साहिर साहब सितारा हैसियत रखते थे। उनके काव्य संग्रह को युवा लड़कियां तकिए के नीचे रखकर सोती थीं। उन्हें उम्मीद होती थी कि सपने में साहिर साहब से मुलाकात संभव है। साहिर साहब ऐसा ख्वाब बने रहे, जिस पर अमृता प्रीतम का कॉपीराइट रहा है।