कलेजे का दर्द / सुधा भार्गव
इकलौता बेटा आस्ट्रेलिया से वापस आ रहा है, बुढ़ापे में उनको सहारा मिलेगा --माँ -बाप की खुशी का ठिकाना नहीं। बाप ने ऊपर की मंजिल के कमरे बाथरूम आधुनिक उपकरणों से सजा दिये ताकि बहू बेटे शान से रहें। पोती करीब चार माह की थी, उसकी परवरिश के लिए एक आया का भी इंतजाम हो गया। बेटा आया, माँ बाप ने उसे कलेजे से लगा लिया। दूसरे दिन चाय -नाश्ते के समय बहू तो नीचे उतर कर आई पर बेटा नही। माँ -बाप ने संतोष कर लिया थकान अभी दूर नहीं हुई है इसीलिए नीचे नहीं आ पाया। शाम को भोजन के समय सब इकट्ठे हुये।
-बेटा, अब तुम बिना किसी चिंता के काम पर जा सकते हो। मैं तो सुबह 8 बजे ही चला जाता हूँ। कहो तो तुम्हें तुम्हारे आफिस छोडता जाऊं। तुम्हारी कार आने में तो समय लगेगा ।
-पापा, आफिस तो मैं चार -पाँच दिनों बाद जाऊंगा।
एक हफ्ता निकल गया पर बेटा सारे दिन बीबी के पास बैठा रहता। ऐसा लगता माँ -बाप से आँखें चुरा रहा है। बाप की अनुभवी आँखें ताड़ गईं और टोक दिया -बेटे तुम अपने काम पर नहीं गए?
-पापा, काम ढूँढना पड़ेगा, आस्ट्रेलिया में मेरी नौकरी छूट गई थी।
-तो जल्दी ढूंढो।
-जल्दी किस बात की है?अभी -अभी तो आया हूँ, साँस तो लेने दो...। काम करने के लिए आस्ट्रेलिया क्या कम था!
-जल्दी है। जानते हो!बाप के कलेजे में सबसे तीखा दर्द कब उठता है?
बेटा कुछ समझ न सका और उत्तर की आशा में उसकी आँखें ठहर सी गईं।
-जब उसका जवान बेटा बाप की रोटी तोड़ता है।