कल्कि कोचलिन: बूंद-बूंद भूमिकाएं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 13 अगस्त 2019
कलाकार कल्कि कोचलिन का जन्म भारत में हुआ और यहीं वे पलीं तथा किशोरावस्था से ही रंगमंच से जुड़ गईं। कल्कि कोचलिन के माता-पिता फ्रांस में जन्मे थे और लंबा समय उन्होंने भारत में गुजारा। कल्कि कोचलिन ने फ्रांस की यात्रा की परंतु वहां उन्होंने असहज महसूस किया। फ्रांस एक महान सांस्कृतिक विरासत का धनी देश है और उन्होंने अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बड़ा सहेजकर रखा है। कल्कि कोचलिन भारत में सहज महसूस करती रही हैं। यहां तक कि वर्तमान की असहिष्णुता में भी वे विचलित नहीं हुईं। अपने शफ्फाक गोरे रंग के कारण उनकी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं हो पाया। उन्हें बड़ा संतोष है कि फिल्म 'लाइफ विद ए स्ट्रॉ' में उन्हें सेरेब्रल पाल्सी बीमारी से ग्रस्त पात्र की भूमिका मिली, जिसके हृदय में शारीरिक अंतरंगता के लिए हूक उठती है और वह उसे पूरा भी करती है। अयान मुखर्जी की रणवीर कपूर और दीपिका पादुकोण अभिनीत सार्थक फिल्म 'ये जवानी है दीवानी' में कल्कि कोचलिन अभिनीत पात्र के विवाह के अवसर पर वर्षों से बिछड़े मित्र मिलते हैं और रिश्तों के नए स्वेटर पुराने स्वेटर से उधेड़े ऊन के रेशों से बनाए जाते हैं। अयान मुखर्जी की इस फिल्म में सभी कलाकारों ने अपना श्रेष्ठ प्रस्तुत किया था।
'सर्पेन्ट एंड द रोप' नामक उपन्यास के लेखक राजा रामा राव भी ताउम्र फ्रांस में ही रहे थे। महान चित्रकार एसएस रज़ा भी अधिकांश समय फ्रांस में रहे थे। फ्रांस की क्रांति से ही गणतंत्र व्यवस्था के मूल्यों का जन्म हुआ है। क्रांति की सफलता के बाद सार्वजनिक चौराहों पर उन लोगों का सिर धड़ से अलग किया गया, जिनका किसी भी प्रकार का संबंध सामंतशाही से रहा है। बाद में हुए शोध से यह जानकारी मिली कि बहुत बड़ी संख्या में मासूम लोग इस नरसंहार में मारे गए थे। मसलन एक परिवार के सारे सदस्यों को इसलिए कत्ल किया गया कि क्वीन मैरी एंटोनेट का स्कार्फ उनके घर पर मिला। वे बेचारे तो मार्ग के किनारे खड़े क्वीन को यात्रा करते हुए देख रहे थे और हवा के एक बेबाक लापरवाह झोंके ने क्वीन का स्कार्फ उनके हाथों में थमा दिया। हवा पर कोई मुकदमा कायम नहीं किया जा सकता। ज्ञातव्य है कि भिक्खु नामक लेखक ने एक किताब में क्वीन मैरी एंटोनेट का जीवन चरित्र प्रस्तुत किया है और वह अन्य सामंतवादी परिवार के सदस्यों से अलग मानवीय करुणा से शासित महिला रही हैं।
फ्रांस की क्रांति के कालखंड पर अनेक उपन्यास लिखे गए हैं। चार्ल्स डिकेंस के उपन्यास 'द टेल ऑफ टू सिटीज' एक क्लासिक रचना है। मैडम तुसाद की आत्मकथा अत्यंत रोचक है। वे अनेक कष्ट सहते हुए जैसे-तैसे लंदन पहुंच पाई थीं। आज उनके म्यूजियम अनेक देशों में हैं और लोकप्रिय लोगों के मोम के पुतले उन म्यूजियम में लगे हैं। सलमान खान, शाहरुख खान और ऐश्वर्या राय के मोम के पुतले एक ही स्थान पर लगे हैं। रात में म्यूजियम बंद हो जाने पर वे मोम के पुतले आपस में बतियाते जरूर होंगे। बर्फीली हवा में पानी की बूंदों की तरह जमा हुए शब्द किसी दिन पिघलकर अवाम को सुनाई देंगे।
ज्ञातव्य है कि कल्कि कोचलिन ने अनुराग कश्यप की 'देव डी' में चंद्रमुखी की भूमिका अभिनीत की थी। यह फिल्म एक महान उपन्यास का मखौल उड़ाने का प्रयास थी। इसके एक दृश्य में पारो अपने देव को साइकल पर बैठाकर खेत की ओर ले जाती है। वह अपने साथ बिस्तर भी लाई है। बहरहाल, अनुराग कश्यप और कल्कि का विवाह हुआ पर वह मात्र कुछ समय ही बना रहा और दोनों का तलाक हो गया। दूध की जली कल्कि कोचलिन ने छाछ भी फूंक-फूंक कर पीने का प्रयास नहीं किया।
एक लेख में भारतीयता की खोज और 'आधारहीन' नागरिकों की व्यथा-गाथा का विवरण है। कुछ नागरिकों को उस स्थान से खदेड़ने का प्रयास हो रहा है, जहां उनकी पांच पीढ़ियां जन्मी और सानंद रहीं। ज्ञातव्य है कि इसी विषय पर राज कपूर ने पटकथा लिखी थी 'मैं कौन हूं' परंतु यह फिल्म नहीं बन पाई। इस फिल्म के लिए लीला नायडू से उन्होंने चर्चा भी की थी। नागरिकता की संकीर्ण पड़ताल में हो रहे अन्याय पर एक पटकथा बोनी कपूर के पास भी है परंतु प्रदर्शन पर व्यावसायिक हुल्लड़बाजों के फसाद के भय से वे निर्माण नहीं कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि लेखक रस्किन बॉण्ड भी ताउम्र भारत में ही रहे हैं। 'पूरा विश्व ही एक कुटुंब है' के महान आदर्श को जन्म देने वाले देश में ही वर्तमान में संकीर्णता की हवा बहाई गई है।