कल्कि कोचलिन का आत्मविश्वास / जयप्रकाश चौकसे

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कल्कि कोचलिन का आत्मविश्वास
प्रकाशन तिथि : 10 अक्टूबर 2014


उटकमंड में फ्रेंच मां की कोख से जन्मी कल्कि ने लंदन में रंगमंच कला का अध्ययन किया आैर अनुराग कश्यप की 'देव डी' तथा 'दैट गर्ल इन यैलो बूट्स' में अभिनय किया। 'जिंदगी मिलेगी दोबारा' आैर 'ये जवानी है दीवानी' से उन्हें पहचान मिली। वे आज भी स्टार नहीं हैं परंतु कुशल अभिनेत्री मानी जाती हैं। हाल ही में उन्होंने "मार्गरिटा, विद स्ट्रॉ' में अपंग कन्या की भूमिका की है। नाटकों में भी उनका अभिनय सराहा गया है। अब वे अनुराग से की गई शादी से मुक्त है आैर संभवत: कश्यप नुमा फिल्मों से भी आजाद हैं। कल्कि गैर-पारंपरिक चेहरे-मोहरे वाली लड़की हैं आैर यह गैर-पारंपरिक चेहरा एक भरम है। डैनी डेनजोन्गपा को भी हताश करने के प्रयास हुए थे परंतु उन्होंने अपना स्थान बना लिया। आेम पुरी, मिथुन चक्रवर्ती आैर स्मिता पाटिल के प्रारंभिक दौर में उन्हें शंका की दृष्टि से देखा जाता था। दरअसल शक्ल सूरत को भी एक ढांचे में ही देखने की आदत के कारण इस तरह की नकली सरहदें हमारा दिमागी फितूर बन जाती हैं। टाइगर श्रॉफ अपने पिता जैकी की तरह नहीं वरन् मां की तरह दिखते हैं। यह उनकी मेहनत और साजिद नाडियाडवाला का साहस है कि 'हीरोपंती' में उन्हें स्वीकार किया गया। इस भूमिका के लिए पहले अन्य अभिनेताआें ने प्रस्ताव अस्वीकृत कर दिए थे।

अमिताभ बच्चन की प्रारंभिक दर्जन फिल्में असफल रही। 'जंजीर' में उन्हें स्वीकार किया गया। आज चालीस वर्ष के बाद भी वे सक्रिय हैं। सभी खास तरह की शक्लें देखने के आदी हो जाते हैं आैर इस आदत को सिद्धांत बना दिया जाता है। मनमोहन देसाई ने कहा था कि अमिताभ की टांगें लंबी हैं आैर ऊपरी धड़ अपेक्षाकृत छोटा है। बाद में सफल अमिताभ के साथ उन्होंने कई फिल्में की। उगते सूर्य को सभी प्रणाम करते हैं। फिल्मकार वह जो उफक पर लाली देखकर सूर्य आगमन का अनुमान लगा ले। मार्लन ब्रेन्डो ने कहा था कि सितारा बनने के बाद अभिनय करना आसान हो जाता है। तात्पर्य था कि आम दर्शक के कबूल करने के बाद कलाकार जो भी करे, स्वीकार किया जाता है। जनता की स्वीकृति से कलाकार का आत्म-विश्वास बढ़ जाता है। कामयाबी से आपको सुर्खाब के पर लग जाते हैं आैर पहले जो चेहरा पसंद नहीं था वह सपनों में बस जाता है।

अवाम की स्वीकृति मनोरंजन आैर राजनीति दोनों में महत्वपूर्ण है। अवाम कैसे कब किसको स्वीकार करता है - अबूझ पहेली है। क्या अधिकतम की पसंद सचमुच काबिलियत का उच्चतम पैमाना है? क्या अधिकतम लोगों की राय गलत नहीं हो सकती? कई बार अधिकतम लोग भी हिप्नोटाइज हो जाते हैं। हवा कुछ ऐसी चलती है कि खोटा सिक्का चल पड़ता है। क्या पूरे जर्मनी में अधिकतम ने हिटलर को अनन्यतम नेता नहीं स्वीकार किया? अधिकतम की पसंद कभी-कभी पूरी मानवता के लिए खतरनाक साबित होती है। इरफान, के. के. मेनन आैर नवाजुद्दीन भी पारंपरिक पैमाने वाले चेहरे नहीं हैं परंतु आेम पुरी की तरह उन्हें भी स्वीकार किया गया है।

चेहरे-मोहरे के ये मानदंड फिल्मों से अधिक आम जीवन में कहर ढाते हैं। शादी के बाजार में गैर-पारंपरिक चेहरे वाली लड़की के विवाह में दहेज की मोटी रकम देनी पड़ती है। इसी विकृत सोच के कारण भारत में रंग गोरा करने वाली क्रीम का विशाल व्यापार खड़ा हो गया है आैर आश्चर्य यह कि सांवले-सलोने कृष्ण के देश में सांवला रंग कैसे एक कमतरी बना दिया गया है आैर सांवली कन्याआें के अवचेतन में अपने रंग का हौवा बस गया है। उनका आत्म-विश्वास तोड़ा जा रहा है। क्रीम बेचने वाली कंपनियों की सफलता उनके विज्ञापन देने की शक्ति पर टिकी रहती है। करोड़ों कमाने वाले सितारे भी रंग गोरा करने की क्रीम का विज्ञापन करते हैं आैर उन्हें कोई अपराध बोध भी नहीं है। दरअसल हमारी फॉर्मूला सोच ने ही कई उद्योगों को पनपाया है।