कल की नारी / कल्पना रामानी
शाम को चाय का कप लेकर दक्षा लॉन में बैठी ही थी कि डोर-बेल बजी। कप रखकर उसने दरवाजा खोला तो बेटी तान्या के साथ आई हुई महिलाओं को देखकर सवालिया नज़रों से तान्या की ओर देखा-
“माँ, ये सब महिला-मुक्ति अभियान दल की सदस्य हैं, आपकी समस्या पर विमर्श के लिए मैंने इन्हें बुलाया है”।
आप इन सबकी आपबीती और मुक्ति के लिए संघर्ष की कथा सुनेंगी तो जान जाएँगी कि आज की नारी अबला या अशक्त नहीं रही जो पति का बेवजह अत्याचार सहन करती रहे”।
आज फिर माँ-पिता के कमरे से कहासुनी की ऊँची आवाज़ें आने के बाद पिता को बाहर जाते और माँ को गीले नैन पोंछते हुए उनकी युवा बेटी तान्या ने देख लिया था।
दक्षा ने सबको आदर से अंदर बिठाकर तान्या को चाय बनाने के लिए अंदर भेजा फिर महिलाओं की ओर मुखातिब होकर संयत स्वर में बोली -
“आप सभी बहनों का विमर्श-वार्ता के लिए हार्दिक स्वागत है लेकिन पहले मैं अपनी दो बातें आपके समक्ष रखूँगी। पहली यह कि मैं आज की नहीं कल की नारी हूँ जो हर हाल में घर-परिवार तोड़ने नहीं जोड़ने में विश्वास और परिस्थितियों को अपने हौसलों से बस में करने की क्षमता रखती है। दूसरी यह कि अगर आप सब अपने मौजादा हालात से पूरी तरह संतुष्ट हैं तो मैं भी आपके इस अभियान में शामिल हो जाऊँगी”।