कवितावां / ओम नागर / कथेसर
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: कथेसर » | अंक: अक्टूबर-दिसम्बर 2012 |
तरक्की
अेक दन छो ज्ये
ठलाठल भरी मोटर मं बी
गैलरी बीचै उंभी
टाबर हाळी बायर नै देख’र
आपू-आप उठ बैठ्यो होवै छो
सीट पै बैठ्यो मोट्यार।
अर आज भल्यांई
काख मं टाबर ल्या
भड़भटा खाती रैवे वां ई बायर
गैलरी बीचै
पण सीट को ठाकर मोट्यार
भायला सूं मोबाइल पै
बांचतो दीखै छै फड़
कै कतनी तरक्की कर ली ऊँ नै
स्हैर मं आ’र।
भरम
गाडो थम्यों न्हं कै
मिट जावै छै
दूजै पाड़ै
गाडा पींदे
चालबा हाळा गंडक को
संदो भरम।
भरम की भींत ढसतां ई
लाल बत्ती माथा पै धर’र
सहचन्नण मं
तारां तोड़बा हाळो मनख बी
पांच बरस पाछै
खाबा लाग जावै छै
गळी-गळी भड़भटा
सूंघतो फरै छै
वोटां की सौरम।
अर भरम की टांट्याँ
उड़ जावै छै
बखत का बरबूळ्याँ मं।
हूँस
वा तीतरी
पाखड़ां बाळ’र बी राजी छै
चमनी की बात्ती कै ओळै-दोळै
फरक्यां पै फरक्यां
फरक्यां पै फरक्यां
लगा’र
काळी सूम हो’र
धरणी पै पड़ै तो बी
मजैज सूं ।
अठी दूणी तीतर्यां
लगाबा लाग जावै छै
बात्ती कै ओळी-दोळी
फेरू फरक्यां पै फरक्यां।
ज्यां तांई न्हं हो जावै गी संदी
अेक कै पाछै अेक
काळी सूम।
डूंड
कराड़ां-पूर
नद्दी मं
बहैता
मनख कै लेखे
कम न्हं होवै
डूंड को सायरो।
ज्यें लगाद्यै छै
कराड़ै
जिनगाणी की नाव।