कवितावां / जितेन्द्र कुमार सोनी / कथेसर
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: कथेसर » | अंक: अप्रैल-जून 2012 |
जितेन्द्र कुमार सोनी री कवितावां
अठै पेस है युवा कवि जितेन्द्र कुमार सोनी री दोय सबळी कवितावां। 'रचाव' कविता, कविता री रचणा-प्रक्रिया नै जकै तरीकै सूं प्रगटै वा देखादेखी कविता करणियां सारू अेक मारग-दरसण है। 'नैणां भरल्यूं रंग' मांय कवि रो प्रकृति में डूब जावणो उणरै कविपणै माथै मोहर लगावै। कवि सारू पैली सर्त आ कै उणनै प्रकृति रै अेक-अेक क्रियाकलाप नै रोमांचकता अर अचंभै रै साथै अंगेजणो पड़ै। इयां कै उण सारू कुदरत रो हर कदम नूंवो अर अचरज भर्यो हुवणो चइजै। जकै मांय ओ गुण नीं हुवै बो कवि नीं बण सकै। जातरा करती बगत कवि री निजर साधन री बारी सूं बारै हुवणी चाइजै अर इण दौरान जकी चीज ई बो देखै, बां सूं हिवड़ै में हिलोरां चालणी चाइजै। ओ गुण कवि रो पैलो गुण। ओ म्हनै जितेन्द्र मांय चड़ूड़ो दीखै। -सं.
रचाव
कांई लागै आपनै
रचीज जावै कोई कविता इयां ई
कोई आलीसान कमरां मांय
अेसी री ठंडक अर कॉफी रै घूंट साथै
का आ सोच'र कै चलो आज छुट्टी है
मांड ई नाखां दो-च्यार कवितावांं?
इण भांत ई उपज्या करै कविता!
नीं भायला नीं,
कविता तो उपजै
कदे बस री भीड़ मांय
धक्कां रै बिचाळै
कदे राशन री कतार मांय ऊभां-ऊभां
कदे न्हावतां, गुणगुणांवतां
अर कदे किणी री मुळक माथै रीझ'र
का पछै किणी रै आंसुवां सूं पसीज'र
अै कदे ई, कठै ई
आ जावै है मन मांय बीज री भांत
अर कूंपळ री भांत फूट'र काळजै मांय
मंड जावै कागद री पीठ पर
कई बर टिगट रै लारलै पासै
सिगरेट री पन्नी माथै
का फेर कोई रसीद
का किणी रफ पानै माथै
आडै-टेढै अर मोटै आखरां मांय।
जे संभाळ ली जावै तो
दिख जावै किणी किताब रै पानां माथै
का पछै किणी ब्लॉग का डायरी मांय।
निस तो अै सबदां रा चितराम
दब्या ई रैय जावै
किताबां मांय
का पछै धुप जावै
जेबां मांय।
धुप जावै तो धुप जावै
पण भळै फूट पड़ै
कोई अैड़ै ई माहौल में
आपरै दूणै-चौगुणै वेग साथै।
कविता तो अजर-अमर है।
नैणां भरल्यूं रंग
पौ फाट्यां
देखूं
पोलो ग्राउंड सूं
सूरज उग्यां तक लगोलग
भाखरां माथै बादळां रा रंग
भांत-भंतीला।
बदळै है छिण-छिण अै रंग
आपरो रूप,
जिकां में
म्हारी ओळख रै रंगां सूं अळगा
कीं नूंवां रंग,
ज्यां रो नीं जाणूं म्हैं नांव।
पण चावूं-
चुण-चुण भर लेवूं अै सगळा
नैणां मांय
अर जाय'र छिड़क द्यूं
म्हारै थार री माटी मांय,
अकाळ सूं जूझता घरां माथै,
किणी गरीब रै चूल्है रै असवाड़ै-पसवाड़ै
ओळूं मांय उदास दिलां री भींतां पर।
भर सक्यो जे अै रंग
तो नेहचो राखो
चटकै ही
बावड़ूंलो म्हैं आं रंगां साथै
पाछो आपणी माटी मांय।
(पोलो ग्राउंड आईएएस अकेडमी (मंसूरी) रो अेक भाग है, जिको मुख्य बिल्डिंग सूं डेढ-दो किलोमीटर हेटै है अर ट्रेनिंग री पीटी अठै ही होवै है। चौफेर पहाडिय़ां सूं घिरी इण ठौड़ री सोभा घणी निराळी है।)